साहित्य जगत में इनसे महान कोई नहीं, आज है प्रेमचंद की पुण्यतिथि
`कथा सम्राट` के नाम से प्रसिद्ध मुंशी प्रेमचंद की आज पुण्यतिथि है. आज ही के दिन यानी 8 अक्टूबर को सन् 1936 में यानी आजादी मिलने से 11 साल पहले ही उनका देहांत हो गया था. आईए एक नजर डालते हैं मुंशी प्रेमचंद के जीवन पर, जिनके नाम से हिंदुस्तान का बच्चा बच्चा वाकिफ है.
नई दिल्ली: मुंशी प्रेमचंद और भारतीय साहित्य एक दूसरे के पूरक हैं. हिंदी पट्टी में आपको शायद ही कोई ऐसा शख्स मिले, जिसने मुंशी प्रेमचंद की कहानियां नहीं पढ़ी हों. बनारस में पैदा हुए प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय था. उन्हें लोग नवाब राय के नाम से भी जानते थे.
वास्तविक जीवन पर आधारित साहित्य ने मुंशी प्रेमचंद को अमर बनाया
अजीब राय और आनंदी देवी के घर में नवाब राय 31 जुलाई 1980 को पैदा हुए थे. उन्हें हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में से एक माना जाता है. बंगाल के प्रख्यात लेखक शरदचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि दी थी. ऐसा इसलिए था क्योंकि मुंशी जी ने अपने जीवन काल में हिंदी लेखन की ऐसी विधा विकसित की, जो उनकी मृत्यु के बाद अभी तक हिंदी लेखकों का मार्गदर्शन कर रही है.
दरअसल प्रेमचंद जी का लेखन यथार्थवादी था. वह भारतीय जीवन के मुताबिक चरित्रों की रचना करते थे. जिसकी वजह से उनके प्रशंसकों और पाठकों की संख्या लगातार बढ़ती गई. जितने लोगों ने प्रेमचंद की कथाएं और कहानियां उनके जीवन काल में पढ़ी हैं, उससे ज्यादा लोग उन्हें उनके निधन के बाद पढ़ते आए हैं.
मुंशी प्रेमचंद ने ऐसे वक्त में लेखन शुरु किया, जिस काल में हिंदी लेखन में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था. संपादन की सुविधा उपलब्ध नहीं थी. आपको लगातार लिखना होता था उन्हें सुधारना होता था. इस प्रक्रिया में कागजों का ढेर लग जाता था. लेकिन इसके बावजूद मुंशी जी ने कालजयी रचनाएं गढ़ीं.
मुंशी प्रेमचंद ने अपने जीवनकाल में 15 उपन्यास, 300 से ज्यादा कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तकें और हजारों पन्नों के लेख, संपादकीय, भाषण आदि की रचना की. लेकिन उन्हें वास्तविक पहचान उपन्यासों और कहानियों से ही मिली. हिंदी और उर्दू दोनों पर उनका समान रुप से अधिकार था.
युगांतकारी साहित्य रचना के साथ रुढ़ियों के खिलाफ भी किया संघर्ष
उत्तर प्रदेश के वाराणसी के पास लमही गांव में पैदा हुए मुंशी प्रेमचंद का बचपन बहुत मुश्किलों में बीता. सात वर्ष की उम्र में माता को खो दिया और 14 साल की उम्र में पिता को. पूरा बचपन भयंकर गरीबी में बीता. ना तो पहनने के लिए कपड़े न होते थे और न ही खाने के लिए पर्याप्त भोजन. सिर पर सौतेली मां, उनके दो बच्चों के साथ साथ पत्नी का भी बोझ था. किसी तरह 10वीं तक पढ़ाई की.
आर्थिक परेशानियों के कारण पत्नी साथ छोड़ गई. तब जाकर उन्होंने एक विधवा महिला शिवरानी देवी से विवाह किया. उस जमाने में यह बहुत बड़ा कदम था. अंग्रेजों का समय था और पूर्वी उत्तर प्रदेश में रुढ़िवादिता का बोल बाला था. लेकिन अपनी लेखनी से समाज को आदर्श दिखाने वाले मुंशी प्रेमचंद ने अपने निजी जीवन से भी समाज के सामने उदाहरण पेश किया.
दिल में दबी थी देशभक्ति
मुंशी प्रेमचंद ने महात्मा गांधी के आह्वान पर 1921 में नौकरी छोड़ दी थी. उस समय वह स्कूलों के डिप्टी इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत थे. इसी दौरान उन्होंने देशभक्ति से ओत प्रोत पांच कहानियों का संग्रह सोजे वतन लिखा. यह काफी मशहूर था. लेकिन इसमें समाहित वतनपरस्ती के भावों ने अंग्रेजी सरकार के कान खड़े कर दिए. उनका यह कहानी संग्रह जब्त कर लिया गया. यह संग्रह उर्दू में नवाब राय के नाम से छपा था. लेकिन अंग्रेजी सरकार के उत्पीड़न से बचने के लिए उन्होंने बाद में प्रेमचंद के नाम से लिखना शुरु कर दिया.
प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन
मुंशी प्रेमचंद ने 1901 मे उपन्यास लिखना शुरू किया और कहानी लेखन की दुनिया में 1907 में उतरे. 1923 में उन्होंने सरस्वती प्रेस की स्थापना की और 1930 में हंस का प्रकाशन शुरु किया. अपने जीवन काल में प्रेमचंद ने 'मर्यादा', 'हंस', जागरण' तथा 'माधुरी' जैसी कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया. जीवन के अन्तिम दिनों(1933-34) में वह बॉम्बे में रहे. लेकिन इसके पहले का उनका पूरा समय उत्तर प्रदेश में वाराणसी और लखनऊ के बीच बीता. प्रेमचंद जी को आधुनिक कथा साहित्य का जन्मदाता कहा जाता है. उन्हें उपन्यास सम्राट और कथा सम्राट जैसे खिताब भी हासिल हैं. उनकी कहानियों में मनुष्य के जीवन संघर्ष का सच्चा चित्रण दिखाई देता है. उनकी कई कथाओं में ग्रामीण और ऐतिहासिक भारत के चिंतन व आदर्शों का भी वर्णन है.
आज ही के दिन यानी 8 अक्टूबर को सन् 1936 में जलोदर के कारण उनका देहांत हो गया था. भारतीय साहित्य और संस्कृति के गौरव मुंशी प्रेमचंद को जी हिंदुस्तान का नमन.