लद्दाख सीमा विवादः चीन से हुई सभी वार्ताएं असफल ही रहीं, जानिए कब क्या-क्या हुआ
10 मई को हुई झड़प के बाद एक अस्थाई समझौता तो हो गया था, लेकिन वास्तव में कुछ भी शांत नहीं था. चीनी सैनिक अपनी सीमा में जरूर थे, लेकिन उनकी हर गतिविधि पर नजर रख रही भारतीय सेना ने महसूस किया कि LAC के उस पार सैन्य हलचल कुछ अधिक ही बढ़ी है.
नई दिल्लीः अप्रैल से जारी तनातनी 10 मई को एक सैन्य झड़प के मुकाम पर पहुंची जिसमें सैकड़ों सैनिक घायल हुए. इस तनावपूर्ण घटना से यह तो अच्छी तरह सामने आ गया कि भारत के सामने केवल पश्चिम और उत्तर की पाकिस्तानी सीमा पर ही नहीं बल्कि उत्तर-पूर्व की चीनी सीमा पर भी स्थिति आर या पार ही रहने वाली है. एक तरफ LOC से सीजफायर होते हैं तो LAC से झड़प की शक्ल में युद्धक स्थिति बनी रहती है.
LAC के भौगोलिक मापदंड पर एक नजर
134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग त्सो झील हिमालय में तकरीबन 14,000 फुट से अधिक की ऊंचाई पर स्थित है. इस झील का 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में पड़ता है, जबकि 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में आता है. वास्तविक नियंत्रण रेखा इस झील के बीच से गुजरती है.
इसमें गौर करने की बात है कि पश्चिमी सेक्टर में चीन की तरफ से अतिक्रमण के एक तिहाई मामले इसी पैंगोंग त्सो झील के पास होते हैं.
LAC पर बढ़ने लगीं सैन्य गतिविधियां
10 मई को हुई झड़प के बाद एक अस्थाई समझौता तो हो गया था, लेकिन वास्तव में कुछ भी शांत नहीं था. चीनी सैनिक अपनी सीमा में जरूर थे, लेकिन उनकी हर गतिविधि पर नजर रख रही भारतीय सेना ने महसूस किया कि LAC के उस पार सैन्य हलचल कुछ अधिक ही बढ़ी है.
12 मई को LAC पर चीनी हेलिकॉप्टरों की गड़गड़ाहट सुनी गई. सीमा पर चीनी हेलीकॉप्टर दिखाई देने के बाद भारतीय लड़ाकू विमानों ने उड़ान भरी. इस तरह विमानों के उड़ान भरने की घटनाएं बीच-बीच में आती रहीं, जिनसे स्पष्ट हो गया कि सीमा पर सेनाएं स्पष्ट आमने सामने हैं.
गलवान घाटी में चीन ने गाड़े तंबू
इस बीच पर अंतरराष्ट्रीय आरोप, कोरोना को लेकर विरोध और कई तरह के गतिरोधों का चीन ने सामना किया. लेकिन उसकी नजर समूचे उत्तर-पूर्व में थी. उसने ऐवरेस्ट की ओर देखना शुरू किया और इसी के साथ 20 मई को सामने आया कि चीन ने गलवान घाटी इलाके में काफी संख्या में तंबू गाड़े हैं जिसके बाद भारत की इस क्षेत्र पर कड़ी नजर बनी हुई है.
इसकी प्रतिक्रिया में दोनों ही देशों के अतिरिक्त सैन्य बल यहां तैनात कर दिए गए.
लद्दाख पहुंचे थे सेना प्रमुख
भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवाणे हर स्थिति से वाकिफ थे. 9 मई की झड़प के बाद सीमा पर शांत स्थिति तो थी, लेकिन तनाव बना हुआ था. इस बीच सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवाणे लद्दाख पहुंचे और उन्होंने स्थिति का जायजा लिया.
सेना प्रमुख के पहुंचने स्थिति की जटिलता सामने आने लगी और एक तरह मौन तैयारियां शुरू हो गईं.
...और चीन अचानक पलटी खा गया
तनावयुक्त माहौल, आमने-सामने वाली स्थिति बनी हुई थी. इसी बीच चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत के साथ कोई सीमा विवाद नहीं है. भारत के साथ सीमा पर हालात नियंत्रित और स्थिर हैं. यह बात बड़ी ही अजीब थी.
आश्चर्य था कि चीन चीन के विदेश मंत्रालय ने ये भी कहा कि भारत के साथ हर मुद्दे का हल चर्चा से करेंगे. वहीं भारत में चीन के राजदूत ने भी कहा है कि दोनों देश बातचीत के जरिए मतभेदों को सुलझाएंगे. चीन के राजदूत ने कहा, मतभेदों का असर भारत और चीन के संबंधों पर नहीं पड़ेगा.
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तनाव के बीच पीएम मोदी ने ले बैठक
इस तरह अपनी स्थिति पलटने की वजह भी भारत का एक डट कर मुकाबला करने का माद्दा रहा. लद्दाख में चीन से बढ़ते तनाव के बीच पीएम मोदी की अहम बैठक हुई थी. जिसमें पीएम मोदी ने कहा कि लद्दाख से हमारे इंच भर भी पीछे हटने का सवाल नहीं है.
चीन ने और बढ़ाई सैन्य क्षमता
30 मई को सामने आया कि सीमा के भीतर अपनी तरह 30 किमी की दूरी पर चीन लगातार भारी संख्या में सैनिकों और तोपों की तैनाती बढ़ाता जा रहा है. चीनी सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास सैन्य शक्ति के निर्माण में लगी हुई थी. पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में हर स्थान पर बटालियन और ब्रिगेड स्तर पर भारतीय और चीनी पक्ष एक-दूसरे से बात कर रहे थे और इस बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकल सका था.
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चीन पर चौतरफा दबाव, तो भारत को ही लगा कोसने
एक-डेढ़ महीने में लद्दाख मामला वैश्विक हो गया. दुनिया के विशेषज्ञों ने भारत-चीन सैन्य-गतिरोध को भांपते हुए किसी भी अप्रत्याशित स्थिति से बचने की दिशा में चीन को चेतावनी दी कि इस स्थिति से बचा जाए,
जानकारों ने राष्ट्रपति शी जिंगपिंग से कहा कि कोरोना के आरोपों से घिरे चीन को आलोचना से बचने के लिए इस तरह की कोशिश नहीं करनी चाहिए. ऐसा करने से चीन पर ही उसका उलटा असर पड़ेगा और चीन को भारी नुकसान होगा.
इसके बाद 5 जून को चीन को चीनी सरकार ने अपने मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित कराया कि भारत को अमेरिका या किसी और देश के उकसावे में नहीं आना चाहिए.
6 जून को हुई वार्ता
जून में भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर बातचीत कर हल निकालने और मसला सुलझाने पर सहमति बनी. इसके लिए चुसुल सेक्टर में LAC से 20 किमी. दूर वार्ता की गई. लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की इस बाचतीत का स्पष्ट हाल सामने है कि बातचीत नहीं बनी. इस वार्ता में विषय रखा गया था कि शांति पूर्ण तरीके से विवाद को सुलझाया जाए.
14 कॉर्प के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीन के दक्षिण शिनजियांग सैन्य क्षेत्र के कमांडर मेजर जनरल लियू लिन के नेतृत्व में बातचीत की.
अफसोस यह बातचीत कोई हल नहीं दे सकी. इसके बाद चीन ने 8 जून को ईस्टर्न लद्दाख के आसपास अपने हेलीकॉप्टर्स की हलचल बढ़ा दी थी. चीनी सेना ने लद्दाख के पास मौजूद चीनी सैनिकों की मदद करने के उद्देश्य से हेलीकॉप्टर्स भेजे गए.
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दूसरी वार्ता 10 जून को हुई
सीमा विवाद के इस मसले में दूसरी वार्ता 10 जून को रखी गई. पूर्वी लद्दाख के पास भारतीय सीमा के अंदर हुई इस बातचीत में एक बार फिर मेजर जनरल स्तर को लोग आमने-सामने रहे. इस बार सीमा विवाद सुलझाने के साथ लद्दाख में दोनों ओर बढ़ रहे सैनिक दल भी कम करने पर बात हुई.
इसमें जोर रहा कि पूर्ववत स्थिति बरकरार रहे, लेकिन इस वार्ता बैठक के बाद भी तनाव में कमी नहीं हुई. इसके बाद 12 जून को गलवान क्षेत्र में समस्याग्रस्त जगहों के मामलों को हल करने के लिए मेजर जनरल स्तर की वार्ता हुई थी.
15 जून की दरमियानी रात जो घटना सामने आई है, वह शोर मचाकर कह रही है कि हर स्तर की बातचीत अनिर्णायक ही रही है.
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