नई दिल्ली. भारत के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम की चर्चा अक्सर उनके साइंटिस्ट बैकग्राउंड को लेकर होती है. मिसाइल मैन के रूप में विख्यात और देश के युवाओं के आदर्श के रूप में देखे जाने वाले अब्दुल कलाम को सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपतियों में भी गिना जाता है. अब्दुल कलाम देश के इकलौते राष्ट्रपति रहे हैं जो पहले वैज्ञानिक रहे थे. उनके अलावा देश के उपराष्ट्रपति पद पर रहे एक अन्य शख्स भी साइंटिस्ट के रूप में काम कर चुके थे. साल 1997 से 2002 तक देश के उपराष्ट्रपति रहे कृष्णकांत की पृष्ठभूमि भी विज्ञान के क्षेत्र से जुड़ी रही. हालांकि अब्दुल कलाम से उलट कृष्णकांत ने जीवन का ज्यादातर समय राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों में गुजारा.


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CSIR में थे साइंटिस्ट
28 फरवरी 1927 को पंजाब प्रांत के तनरतारन जिले के कोट मुहम्मद खान गांव में जन्में कृष्णकांत के पिता लाला अंचित राम और मां सत्यवती भी बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. कृष्णकांत ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एमसएसी (टेक्नोलॉजी) की पढ़ाई पूरी की. बाद में उन्होंने काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च यानी CSIR में साइंटिस्ट के तौर पर भी काम किया. 


मां-बाप की तरह कृष्णकांत भी बने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी
मां-बाप स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और यह गुण कृष्णकांत में भी आना स्वाभाविक था. पहली बार तो कृष्णकांत तब ही आंदोलन में कूद पड़े जब वो लाहौर में पढ़ाई ही कर रहे थे. भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा कृष्णकांत भी बने. एक युवा के तौर पर भारत के स्वतंत्रता संग्राम का लगातार हिस्सा रहे. 


कांग्रेस के युवा तुर्क नेताओं में होती थी गिनती
आजादी के बाद वो वो चुनाव जीतकर संसद भी पहुंचे. देश में जब इंदिरा गांधी की सरकार बनी तो कांग्रेस के युवा तुर्क नेताओं में उनकी भी गिनती की जाती थी. अपने राजनीतिक जीवनकाल में उन्होंने कांग्रेस, जनता पार्टी और फिर जनता दल में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं. लंबे समय तक वो  IDSA की एक्जिक्यूटिव काउंसिल के सदस्य भी रहे. 


कृष्णकांत के विरोध के कारण गिरी थी मोरारजी की सरकार!
ये कृष्णकांत ही थे जिन्होंने समाजवादी नेता मधु लिमये के साथ मिलकर सरकार में दोहरी सदस्यता का विरोध किया था जिसके कारण मोराजी देसाई की सरकार गिर गई थी. दरअसल इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में कई राजनीतिक दलों ने जनता पार्टी में अपना विलय कर लिया था जिसमें भारतीय जनसंघ भी शामिल था. बाद में कृष्णकांत और मधु लिमये ने इस विषय पर जोर दिया कि जनता पार्टी का कोई भी सदस्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सदस्य नहीं हो सकता. यह सीधा हमला उन नेताओं पर था जो पहले जनसंघ के सदस्य थे और बाद में जनता पार्टी का हिस्सा बन गए. बाद में यह मुद्दा इतना बढ़ गया कि 1979 में मोराजी देसाई की जनता पार्टी का गठबंधन हिल गया और सरकार चली गई. 


इकलौते उपराष्ट्रपति, जिनकी पद पर रहते हुए मृत्यु हो गई थी
साल 1989 में वीपी सिंह सरकार ने कृष्णकांत को आंध्र प्रदेश का गवर्नर बनाया. इस पर वो करीब सात वर्षों तक रहे और देश में सबसे लंबे तक गवर्नर रहने वाले व्यक्तियों में शामिल हुए. 1997 में देश का राष्ट्रपति बनने से पहले तक कृष्णकांत आंध्र के गवर्नर ही थी. उपराष्ट्रपति पद के लिए वो कांग्रेस और यूनाइटेड फ्रंट के साझा उम्मीदवार थे. साल 2002 में अपने कार्यकाल के पूरा होने से कुछ हफ्ते पहली उनकी मृत्यु हो गई थी. वो देश के इकलौते उपराष्ट्रपति थे, जिनकी पद पर रहते हुए मृत्यु हो गई थी.    


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