‘नीट 2023 में मेरा चयन हो जाए’, इस मंदिर की दीवारों पर विद्यार्थी लिखते हैं अपनी मनोकामनाएं
विद्यार्थी कोटा के एक मंदिर में ‘विश्वास की दीवार’ पर मनोकामनाएं लिखते हैं. साल 2000 में मनोकामनाएं लिखने वाले कुछ विद्यार्थियों को आईआईटी और मेडिकल प्रवेश प्रवेश परीक्षा में सफलता मिल गई तो मंदिर का नाम लोकप्रिय हो गया. पुजारी त्रिलोक शर्मा ने कहा कि हर दो महीने में मंदिर की पुताई कराई जाती है क्योंकि दीवारें मनोकामनाओं से भर जाती हैं .
कोटा: ‘‘अगले साल नीट 2023 में मेरा चयन हो जाए’’, ‘‘हे ईश्वर, पढ़ाई में मेरा फिर ध्यान लगने लगे’’, ‘‘एम्स दिल्ली में मुझे एडमिशन मिल जाए’’, ‘‘आईआईटी दिल्ली में मुझे एडमिशन मिल जाए और मेरे भाई की गूगल में नौकरी लग जाए’’. ये बातें कोटा के एक मंदिर की दीवार पर लिखी मनोकामनाएं हैं. दरअसल यहां विभिन्न कोचिंग सेंटर में बड़ी संख्या में पढ़ रहे विद्यार्थी मंदिर में ‘विश्वास की दीवार’ पर मनोकामनाएं लिखते हैं.
हर दो महीने में मंदिर की सफेदी करवानी होती है
तलवंडी क्षेत्र के राधाकृष्ण मंदिर के पुजारियों के अनुसार, कई साल से विद्यार्थियों का विश्वास इतना पक्का हो चला है कि हर दो महीने में मंदिर की सफेदी करवानी होती है. प्रतिदिन 300 से अधिक विद्यार्थी मंदिर में आते हैं और इस साल यहां विभिन्न कोचिंग संस्थानों में रिकॉर्ड दो लाख विद्यार्थियों ने दाखिला लिया है.
‘विश्वास की दीवार’ नाम कैसे पड़ा
शुरू में तो मंदिर प्रशासन ने दीवारों पर मनोकामना लिखने को दीवारों को विरूपित करने के तौर पर लिया लेकिन साल 2000 के शुरू में जब यहां अपनी मनोकामनाएं लिखने वाले कुछ विद्यार्थियों को आईआईटी और मेडिकल प्रवेश प्रवेश परीक्षा में सफलता मिल गई तो मंदिर का नाम लोकप्रिय हो गया और फिर उसे ‘विश्वास की दीवार’ नाम दे दिया गया.
मनोकामना पूरी होने पर देते हैं दान
पुजारी किशन बिहारी ने कहा, ‘‘काफी पहले, कुछ विद्यार्थी यहां प्रार्थना करने आए और उन्होंने आईआईटी या मेडिकल प्रवेश परीक्षा में चयनित होने की मनोकामनाएं लिखी थीं. कुछ महीने बाद विद्यार्थियों के माता-पिता मंदिर में आए और उन्होंने यह दावा करते हुए दान दिया कि बच्चों की मनोकामनाएं पूरी हो गई हैं और तब से यह एक परिपाटी बन चली है.’’
अन्य पुजारी त्रिलोक शर्मा ने कहा कि हर दो महीने में मंदिर की पुताई कराई जाती है क्योंकि दीवारें मनोकामनाओं से भर जाती हैं और अन्य विद्यार्थियों के लिए लिखने के वास्ते जगह नहीं रहती. उन्होंने कहा, ‘‘जब भी विद्यार्थी आते हैं तो हम यह कहते हुए उत्साहित करते हैं कि ईश्वर केवल तभी मदद करता है जब आप कठिन परिश्रम करते हैं. कठिन परिश्रम ही कुंजी है.हम उन्हें समझाते हैं कि अपनी भावनाएं प्रकट करना अच्छा है लेकिन उसके लिए साथ में प्रयास भी जरूरी है.’’ मंदिर विद्यार्थियों के लिए ध्यान लगाने और अच्छा महसूस करने की जगह भी है.
क्या करते हैं छात्र
मध्य प्रदेश से आई नीट की अभ्यर्थी प्रगति साहू ने कहा, ‘‘ मैंने अब तक दीवार पर अपनी कोई मनोकामना नहीं लिखी है लेकिन जब मुझे अपनी तैयारी पर विश्वास हो जाएगा तब मैं मुख्य परीक्षा के आसपास यह लिखूंगी. जब भी मेरा मनोबल घट जाता है या मैं दबाव महसूस करती हूं तो मैं यहां आती हूं और प्रार्थना करती हूं या ध्यान लगाती हूं ताकि अच्छा महसूस करूं.’’ जेईई की तैयारी कर रहे महाराष्ट्र के विद्यार्थी कशिश गुप्ता ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं है कि कोई लिख देगा कि मैं नंबर वन रैंक चाहता हूं और उसे वह मिल जाएगी. आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दीजिए और फिर उस हिसाब से अपनी मनोकामनाएं लिखिए.
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