नई दिल्ली: Gandhi and Ambani Family Relations: 'किसानों को मुआवजा दिलाने के लिए बनाया बिल इन्होंने (भाजपा सरकार) रद्द किया. किसानों को डराने के लिए तीन कानून लाए. सच्चाई यह है कि यह अडाणी-अंबानी के लिए लाए गए थे.'- ये बात 1 जुलाई को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कही थी. इसके ठीक तीन दिन बाद यानी 4 जुलाई को राहुल गांधी के घर (10 जनपथ) पर उद्योगपति मुकेश अंबानी पहुंचे. वे अपने बेटे अनंत अंबानी की शादी में गांधी परिवार को न्योता देने आए थे. 


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राहुल ने की थी कोरोना वायरस से तुलना
कांग्रेस नेता राहुल गांधी अक्सर सत्ताधारी दल भाजपा पर ये आरोप लगाते हैं इनकी सरकार में उद्योगपति मुकेश अंबानी को फायदा पहुंचाने के फैसले लिए गए हैं. यही नहीं, उन्होंने तो अडानी और अंबानी की तुलना कोरोना वायरस से भी कर दी थी. राहुल ने कहा था कि ये डबल-A वैरिएंट हैं, जो देश की इकॉनोमी को चपेट में ले रहे हैं. राहुल गांधी बीते 5-7 साल में अंबानी पर खूब हमले किए हैं. ऐसे में अचानक अंबानी का गांधी परिवार को शादी में बुलाना चौंकाता है. हालांकि, एक समय पर राहुल गांधी की दादी और मुकेश अंबानी के पिता के बीच सहज रिश्ते हुआ करते थे.


इंदिरा गांधी और धीरूभाई अंबानी
इंटरनेट पर एक तस्वीर खूब वायरल होती है, इसमें देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उद्योगपति धीरूभाई अंबानी (मुकेश अंबानी के पिता) साथ खाना खाते हुए दिख रहे हैं. ये तस्वीर 1970 के आसपास की है, इसी दौरान अंबानी परिवार के सितारे बुलंद होना शुरू हुए थे. तब राहुल गांधी की दादी इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री हुआ करती थीं. ऐसा कहा जाता है कि 1970 तक अंबानी परिवार दक्षिण मुंबई में एक दो बेडरूम के फ्लैट में रहा करता था. फिर इंदिरा गांधी ने एक ऐसा फैसला किया, जिसके चलते अंबानी परिवार की किस्मत चमक गई.


इंदिरा के इस फैसले ने बदली अंबानी की किस्मत
दरअसल, तब अंबानी की रिलायंस कंपनी टेक्सटाइल का कारोबार कर रही थी. इसी दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने फिलामेंट यार्न (एक तरह का धागा) की मैन्‍यूफैक्‍चरिंग को प्राइवेट सेक्‍टर के लिए खोल दिया. तब टाटा और बिड़ला ने भी इसकी मैन्‍यूफैक्‍चरिंग के लिए परमिट पाना चाहा. लेकिन इसमें धीरूभाई अंबानी सफल हुए. उन्हें पोलिस्टर मैन्‍यूफैक्‍चरिंग प्लांट लगाने की इजाजत मिल गई. रिलायंस ने टेक्सटाइल छोड़ पोलिस्टर का बिजनेस शुरू कर दिया. इसके बाद अंबानी परिवार को कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा. उन्होंने पेट्रोलियम और तेल-गैस के सेक्टर में भी हाथ डाला, इनमें भी वे सफल रहे. 


इंदिरा सरकार में वित्त मंत्री ने रिलायंस का फेवर किया
द हिंदू के एक आर्टिकल के मुताबिक 1980 के दशक के मध्य में रिलायंस और बॉम्बे डाइंगक बीच राइवलरी चल रही थी. बॉम्बे डाइंग के मालिक नुस्ली वाडिया की इंडियन एक्प्रेस अखबार के चेयरमैन रामनाथ गोयनका से दोस्ती थी. एक दिन वाडिया ने गोयनका से कहा कि आपका अखबार अंबानी के कहने पर बॉम्बे डाइंग के खिलाफ आर्टिकल छाप रहा है. गोयनका ने एक अकाउंटेंट एस गुरुमूर्ति को इसकी सच्चाई पता लगाने के लिए कहा. गुरुमूर्ति ने डीप रिसर्च करके पता लगाया कि भारत का एक शक्तिशाली व्यापारिक घराना अपने हितों के लिए व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ कर रहा है. तब बॉम्बे डाइंग और रिलायंस के बीच केमिकल को लेकर प्रतिस्पर्धा चल रही थी, जिसका एक ही मार्केट था. रिलायंस प्यूरिफाईड टेरेफ्थेलिक एसिड (पीटीए) का निर्माण कर रहा था और बॉम्बे डाइंग डाइमिथाइल टेरेफ्थेलेट (डीएमटी) का निर्माण कर रहा था. अंततः मार्केट को रिलायंस ने कैप्चर किया. लेकिन गुरुमूर्ति की जांच में पता चला कि इंदिरा गांधी की सरकार में वित्त मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी ने रिलायंस की मदद की, जिससे बॉम्बे डाइंग इस लड़ाई में हार गई. 


बच्चन-अंबानी के यहां रेड हुई, वित्त मंत्री की कुर्सी गई
साल 1984 में राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने. उन्होंने वीपी सिंह को वित्त मंत्री बनाया. वीपी सिंह ने टैक्स चोरी रोकने के लिए कड़ी बड़े कदम उठाए थे. उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के हाथ पूरी तरह खोल दिए थे. नतीजा ये रहा कि राजीव गांधी के दोस्त और सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के घर छापा पड़ गया. इसके अलावा, धीरूभाई अंबानी के के यहां भी रेड पड़ी. इससे राजीव गांधी बेहद नाराज हुए और उन्होंने वीपी सिंह को वित्त मंत्री के पद से हटा दिया. 


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