ये कहानी बहुत ही फिल्मी है. कहानी में कोई हीरो नहीं है, दो विलेन है और दोनों की अदावत में जलता हुआ पूर्वांचल है. एक किरदार ऐसा जिसकी रगों में सियासत खून बनकर दौड़ती है और जिसने सियासत से गुंडई का साम्राज्य बनाया. तो दूसरा ऐसा जो दुश्मनों का दुश्मन है और अपने वक्त का सबसे जिगरावाला बदमाश. पहले का नाम है मुख्तार अंसारी और दूसरे का नाम बृजेश सिंह है.


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12 सितम्बर 1992
मुंबई का जेजे अस्पताल गोलियों से थर्रा गया था. चंद मिनटों में इतनी गोलियां, इससे पहले हिन्दुस्तान में कहीं नहीं चली थीं. एके-47 हथियार का पहली बार इस्तेमाल हुआ था और इस शूटआउट को दाऊद इब्राहिम के कहने पर पूर्वांचल के एक बदमाश बृजेश सिंह ने अंजाम दिया था.


29 नवंबर 2005
गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट से बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय को शाम 4 बजे गाजीपुर में ही एक क्रिकेट मैच का उद्घाटन कर वापस अपने गांव गोडउर लौटने के दौरान बसनियां चट्टी में रोका गया, उनकी गाड़ी पर एके-47 से 400 से ज्यादा गोलियां चलीं, आरोप था कि मुख्तार अंसारी की गैंग ने इस शूटआउट को अंजाम दिया.



इन दो वारदातों से आपको समझ आ गया होगा कि जुर्म की दुनिया में इन दोनों का कद क्या था. लेकिन ऐसा नहीं था कि दोनों शुरुआत से ही गुंडे थे. दोनों अच्छे परिवार से थे, लेकिन एक को बदले की नीयत ने तो दूसरे को रसूख के नशे ने पूर्वांचल का गैंगस्टर बना दिया.



ये अखबार देखिए.. इसमें छपी खबर एक नसंहार के बारे में बयां करती है जिसे 9 अप्रैल 1986 को सिकरौरा गांव में अंजाम दिया गया. ये बृजेश सिंह का बदला था, अपने पिता के कातिलों को उसने ढूंढकर मारा था. रघुनाथ यादव, लुल्लुर सिंह, पांचू और राजेश के साथ 7 लोगों की हत्या की गई. बृजेश के पिता का कत्ल 27 अगस्त 1984 को आपसी रंजिश के चलते हुआ. एक साल बाद बृजेश ने सबसे पहले हत्या में शामिल हरिहर सिंह को 27 मई 1985 को मारा और फिर सिकरौरा में 7 लोगों को मारा और जेल चला गया.


दूसरी तरफ मुख्तार अंसारी, 80 के दशक में छात्र राजनीति में कूदा. मुख़्तार अंसारी के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता सेनानी थे और इंडियन नेशनल कांग्रेस और मुस्लिम लीग के अध्यक्ष रह चुके थे जो जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के संस्थापक भी रहे.



पिता सुभानुल्लाह कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़े थे, नाना ब्रिगेडियर उस्मान नौशेरा की लड़ाई में देश के लिए शहीद हुए. दोनों बड़े भाई सियासत में हैं, एक भाई सिबाकातुल्लाह मोहम्मदाबाद सीट से विधायक रह चुके हैं तो दूसरे भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर से सांसद हैं.



गाजीपुर के नामचीन परिवार से ताल्लुक रखनेवाले मुख्तार अंसारी ने 1984 में बीए की डिग्री हासिल की और फिर मखनू सिंह गैंग में शामिल हो गया. मखनू सिंह गैंग की टक्कर साहिब सिंह गैंग से होती थी और इसी दौरान 1988 में मुख्तार ने पहले मंडी परिषद के ठेकेदार सच्चिदानंद राय को मारा और फिर माफिया त्रिभुवन सिंह के कांस्टेबल भाई राजेंद्र सिंह को मौत के घाट उतार दिया.


उधर बृजेश जेल जा चुका था. जहां उसकी मुलाकात त्रिभुवन सिंह से हुई. जुर्म की दुनिया में दाखिल हो चुके बृजेश को त्रिभुवन की शह मिली और वो सीधे मुख्तार से दुश्मनी लेने लगा. मुख्तार अंसारी का सरकारी ठेकों पर दबदबा था, पीडब्लूडी हो, कोयले का ठेका हो या फिर रेलवे और शराब का ठेका, गाजीपुर, बनारस और जौनपुर में उसी का सिक्का चलता था जिसे अब 24 साल का बृजेश सिंह चैलेंज करने लगा था.



90 के दशक में मुख्तार ने राजनीति का रुख किया, बृजेश के साथ अदावत जारी था. दोनों गैंग कई बार आमने-सामने आए. ये वो रंजिश थी जो 4 दशकों तक चलने वाली थी.


एक तरफ सियासत से संरक्षण हासिल कर के मुख्तार अपनी गुंडई के बल पर पूर्वांचल में सरकारी ठेकों पर अपनी मुहर लगाता रहा तो दूसरी तरफ बृजेश सिंह ने मुंबई में उस शूटआउट को अंजाम दिया, जिसकी दहक को पूर्वांचल में भी महसूस किया गया.


अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के बहनोई की हत्या अरुण गवली गैंग ने की तो दाऊद ने बृजेश सिंह को बहनोई की मौत का बदला लेने के लिए भेजा. और बृजेश सिंह ने 12 सितम्बर 1992 को जेजे शूटआउट को अंजाम दिया.



इस शूटआउट के साथ ही पूर्वांचल का ये इकलौता डॉन था जो दाऊद को अपना दोस्त कहता था और जिसके ऊपर मकोका यानी महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट लगा, टाडा यानी टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज एक्ट का मुकदमा चला. मुख्तार को दाऊद के सहारे आंख दिखाना अब ज्यादा आसान हो चला था.


मुख्तार और बृजेश की दुश्मनी में कई जानें गईं, कारोबारी मारे गए, गुंडे बदमाशों के साथ खाकी भी निशाने पर आई लेकिन अब वो वक्त आनेवाला था जब इस दुश्मनी में खादी को भी मौत का स्वाद चखना था.


1993 में मुंबई में सिलसिलेवार धमाके हुए और दाऊद मुल्क छोड़कर भाग गया. बृजेश ने भी दाऊद से नाता तोड़ लिया. जरायम की दुनिया में बृजेश की पकड़ ढ़ीली ज़रूर पड़ी थी लेकिन मुख्तार के आगे उसकी अकड़ वैसी ही थी.


अब तक पूर्वांचल के तीन जिलों में गुक्टा टैक्स वसूलने वाला माफिया मुख्तार अंसारी साल 1996 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर मऊ विधानसभा सीट से जीत कर लखनऊ पहुंचा. अब प्रदेश का सिस्टम सीधे उसके हाथों में था, और बृजेश सिंह के लिए मुसीबतों वाले दिन शुरू होने वाले थे.


बृजेश के खिलाफ वाराणसी के बलुआ समेत कैंट, धानापुर, सकलडीहा, चेतगंज में मामले दर्ज होते चले गए. इसके अलावा गाजीपुर के सैदपुर, भांवरकोल, गुजरात के अहमदाबाद, और महाराष्ट्र से लेकर पश्चिम बंगाल तक बृजेश के खिलाफ मुकदमे दर्ज होते गए. लेकिन ऐसा नहीं था बृजेश दबता जा रहा था, बल्कि इस दौरान बृजेश ने अपना कारोबारी सिंडिकेट यूपी से लेकर बिहार और झारखंड और यहां तक कि महाराष्ट्र में फैला लिया था.



साल 2001 की गर्मियों में गाजीपुर के उसरीचट्टी में बृजेश की मुख्तार अंसारी से सीधी मुठभेड़ हुई. इस मुठभेड़ में मुख्तार जख्मी हुआ और वहीं खबर उड़ी की बृजेश सिंह मारा गया. मुख्तार की गोली ने बृजेश सिंह का खात्मा कर दिया.


महीनों तक हवा में यही खबर रही कि बृजेश सिंह मारा जा चुका है और अबकी बार मऊ से निर्दलीय विधायक मुख्तार के सामने एक ही चुनौती थी बीजेपी नेता कृष्णानंद राय, जिन्होंने साल 2002 में मोहम्मदाबाद सीट से मुख्तार के बड़े भाई को हरा दिया, मुख्तार को खबर मिली कि बृजेश सिंह जिंदा है और कृष्णानंद राय से उसने हाथ मिला लिया. इसके बाद जो हुआ वो आने वाले कई सालों तक दुनिया के किसी हिस्से में किसी राजनेता के साथ नहीं हुआ.


29 नवंबर 2005 को मुख्तार अंसारी की गैंग ने कृष्णानंद राय समेत 7 लोगों को एके-47 से 400 से ज्यादा गोलियां चलाकर मार दिया, उन सातों की डेडबॉडी से 69 गोलियां निकलीं. इस हत्याकांड में मुख्तार अंसारी के साथ उसका भाई अफजाल अंसारी और मुन्ना बजरंगी समेत 7 लोगों पर आरोप लगे.



कृष्णानंद राय की हत्या से पहले मऊ में दंगे भड़के थे, कई लोगों की जान चली गई थी. मुख्तार अंसारी मऊ सदर की सीट से विधायक था और वो खुद माफिया स्टाइल में गाड़ी के ऊपर बैठकर मऊ की सड़कों पर दंगों के बाद निकला था. आरोप लगा कि मुख्तार अंसारी ने ही दंगे भड़काए और राजनीतिक प्रेशर में मुख्तार ने सरेंडर कर दिया.


जिस वक्त कृष्णानंद राय की हत्या हुई, मुख्तार जेल में था लेकिन राय के परिवार ने आरोप लगाया कि जेल से ही पूरी प्लानिंग की गई.


कृष्णानंद राय को एसटीएफ ने पहले ही वॉर्निंग दी थी कि उन पर जान का खतरा है, लेकिन उस दिन वो अपनी बुलेट प्रूफ कार में नहीं थे. हत्या के बाद आडवाणी, वाजपेयी, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह ने सीबीआई जांच की पुरजोर तरीके से मांग उठाई. वहीं गाजीपुर के एसपी भजनी राम मीणा ने केस छोड़ दिया. मामला सीबीसीआईडी को गया लेकिन सीबीसीआईडी ने भी 6 महीने बाद राजनीतिक दबाव का हवाला देकर केस छोड़ दिया. आखिर में साल 2006 में हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने कृष्णानंद राय केस को अपने हाथ में लिया.


बृजेश ने समझी पॉलिटिक्स की पावर


इस दौरान बृजेश सिंह अंडर ग्राउंड हो गया. वो कहां था किसी को पता नहीं था लेकिन बृजेश सिंह को अब पॉलिटिक्स की पावर का अंदाजा हो गया था और अब वो अपनी राजनीतिक पैठ को बढ़ाने की कोशिशों में लगा था. उधर कृष्णानंद राय हत्याकांड में मुख्य गवाह शशिकांत राय की भी 2006 में रहस्यमयी हालात में मौत हो गई, शशिकांत ने शूटआउट के आरोपियों मुन्ना बजरंगी, अंगद राय और गोरा राय की पहचान की थी. बाद में पुलिसिया जांच में शशिकांत की मौत को खुदकुशी करार दे दिया गया. पूर्वांचल में इसे ही कहते हैं डॉन मुख्तार अंसारी का जलवा.



ये वो दौर था जब मुख्तार अंसारी के परिवार का सियासी दबदबा गाजीपुर, मऊ, आज़मगढ़, बलिया और वाराणसी तक था. और बृजेश सिंह से लिए अंसारी के सामने खड़ा हो पाना मुश्किल था. बृजेश पूर्वांचल से गायब हो चुका था और साल 2008 तक 24 साल में उसकी क्राइम फाइल मोटी तो हो चुकी थी लेकिन पुलिस के पास उसकी सिर्फ एक ही तस्वीर थी. इस तस्वीर पर भी यकीन नहीं था कि ये उसी की है. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल से एसीपी संजीव को बृजेश के पीछे लगाया गया और जनवरी 2008 में पता चला कि बृजेश भुवनेश्वर से कोलकाता का सफर कर रहा है. जाल बिछाकर दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बृजेश सिंह को एक मॉल की पार्किंग में गिरफ्तार कर लिया. बृजेश ने अपना हुलिया बदला था, नाम बदलकर अरुण सिंह रख लिया था, पासपोर्ट भी अरुण सिंह के नाम का था और तो और उड़ीसा में एक रियल स्टेट की कंपनी भी चला रहा था.


इधर मुख्तार को साल 2008 में ही बीएसपी में फिर से वेलकम किया गया और मायावती ने अंसारी को गरीबों का मसीहा कहा.


बृजेश सिंह भी कुछ समय बाद प्रगतिशील मानव समाज पार्टी का हिस्सा बन गया, 2012 में विधान सभा चुनाव लड़ा लेकिन चंदौली की सैयदराजा विधानसभा सीट पर मिली हार ने बृजेश को बड़ा झटका दिया. लेकिन बृजेश ने अपनी राजनीतिक ताकत दिखाई और अपनी पत्नी को एमएलसी बनवा दिया. अपने भाई उदयभान सिंह उर्फ चुलबुल सिंह को एमएलसी बनवाया, उसका भतीजा भी विधायक बना और वो समय भी आया जब 2016 में बृजेश सिंह भी एमएलसी बनकर विधान परिषद पहुंच गया.



साल 2005 से ही मुख्तार अंसारी जेल में हैं, समय समय पर पेरोल पर बाहर आते हैं लेकिन उनकी जेल बदलती रहती है. वहीं 2008 से ही बृजेश भी जेल में ही है लेकिन ऐसा नहीं है कि दोनों की दुश्मनी राजनीति में आ जाने से ख़त्म हो गई. ना तो उनकी दुश्मनी खत्म हुई और ना ही गुंडई


4 मई 2013 बृजेश सिंह के खास अजय खलनायक और उसकी पत्नी पर हमला हुआ. अजय खलनायक को कई गोलियां लगीं और पत्नी को भी एक गोली लगी. इसके बाद 3 जुलाई 2013 को बृजेश सिंह के चचेरे भाई सतीश सिंह की बनारस के चौबेपुर थानाक्षेत्र में गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई. आरोप मुख्तार पर लगे. तब बृजेश ने कहा था


'अजय खलनायक पर हमले के बाद अगर पुलिस ने अपराधियों को गिरफ्तार कर लिया होता तो सतीश की हत्या न होती, लेकिन उसे कानून पर पूरा भरोसा है. उम्मीद है पुलिस ही उसके परिवार को न्याय दिलाएगी.'



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कानून को अपने हाथ की कठपुतली माननेवाले और क्राइम की काली दुनिया में तमाम जुर्म अपने नाम दर्ज करानेवाले, कानून पर भरोसा करते हैं. मुख्तार ने भी कभी ऐसा ही बयान दिया था और बृजेश ने भी ऐसा ही बयान दिया. वैसे पिछले कई सालों से पूर्वांचल में शांति है, कोई गैंगवार नहीं हुई है, लेकिन ये कहना गलत होगा कि दोनों का दबदबा कम हुआ. दोनों पर लगे केस एक एक कर के खारिज हो रहे हैं और कभी भी वो कानून की नजर में पाक साफ साबित होकर वापस आ सकते हैं और यकीन जानिए वर्चस्व की ये जंग आगे भी जारी रहने वाली है.


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