नई दिल्ली: साल 1993 की बात है, जब मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में एकसाथ दम दिखाने का फैसला कर लिया था. दोनों के बीच गठबंधन का करार हुआ, साथ चुनाव लड़ने का फैसला हुआ. इसका असर चुनावी परिणाम में भी देखा गया. चुनाव में सपा-बसपा की ताकत एकसाथ आने से दोगुनी हो गई.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दोनों ने मिलकर बीजेपी को किया था चित
'रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे.' ये नारा भारतीय जनता पार्टी ने दिया था. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस के बाद हो रहे इस चुनाव में भाजपा का सबसे बड़ा मुद्दा यही था. भाजपा के इस नारे के जवाब में सपा-बसपा का नारा था 'मिले मुलायम-कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम'.


सपा-बसपा गठबंधन को उस चुनाव में 176 सीटें हासिल हुईं. मुलायम सिंह ने अन्य छोटी पार्टियों को साथ लाकर सरकार बना ली. बसपा के समर्थन से सरकार तो बनी, लेकिन बसपा उस सरकार की हिस्सेदार नहीं बनी. मायावती ने मानो मुलायम के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. जब मौका मिलता था, वो सरकार की न सिर्फ आलोचना बल्कि मुलायम सरकार को सार्वजनिक स्तर पर शर्मिंदा भी करती थीं.


कांशीराम ने भी मुलायम को किया 'निराश'
मायावती तक तो ठीक था, लेकिन कुछ वक्त बीतने के साथ ही कांशीराम ने भी मुलायम सिंह यादव की अवहेलना शुरू कर दी. मुलायम को कांशीराम ने मिलने के लिए 4 घंटे तक इंतजार कराया. एक किताब 'जरनीज थ्रू बाबूडम एंड नेतालैंड' में यूपी के मुख्य सचिव रहे टीएस आर सुब्रमण्यम ने इस किस्से का जिक्र किया है.


उन्होंने लिखा कि एक बार कांशीराम लखनऊ के सर्किट हाउस में ठहरे थे, उस वक्त उनसे मिलने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव पहुंचे. दो घंटे तक मुलायम को ये कहकर नहीं मिलने दिया गया कि कांशीराम अपने सहयोगियों के साथ बैठक कर रहे हैं. इसके बाद मुलायम को लगा कि बैठक के बाद उन्हें अंदर बुलाया जाएगा, लेकिन एक घंटे तक फिर नहीं बुलाया गया.


जब मुलायम ने वहां स्टाफ से पूछा तो उन्हें बताया गया कि कांशीराम जाढ़ी बना रहे हैं और इसके बाद उनके नहाने का प्लान है. इस तरह उन्हें इंतजार करते करते 4 घंटे हो गए. उसके बाद कांशीराम कमरे से बाहर आते हैं तो मुलायम का चेहरा लाल था. उसी शाम कांशीराम ने भाजपा नेता लालजी टंडन से मुलाकात की थी. राज्य में उपचुनाव हुआ और सपा ने 4 में से 3 सीटें जीत ली. कांशीराम की नाराजगी मुलायम से और बढ़ गई.


बसपा ने मुलायम को छोड़ बीजेपी को अपनाया
इसके बाद मुलायम सिंह को छोड़ कांशीराम भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश में जुट गए थे. कांशीराम लखनऊ से दिल्ली आ गए, ब्रेन क्लॉट का इलाज कराने के दौरान अस्पताल में उनकी मुलाकात मायावती से हुई. तभी कांशीराम ने उनसे पूछा यूपी का सीएम बनना चाहेंगी? बैठकों का दौर शुरू हुआ. 2 जून 1995 को जब मायवती लखनऊ आईं तो गेस्ट हाउस में अपने विधायकों की बैठक बुलाई.


सरकार बनाने की रणनीति पर चर्चा हो रही थी. सपा को भनक लग गई कि बसपा और बीजेपी के बीच सांठ-गांठ हो गई है. फिर क्या था. बसपा और बीजेपी के विधायकों की राज्यपाल के सामने परेड कराने की तैयारी चल ही रही थी कि गेस्टहाउस कांड ने सपा की जमकर थू-थू कराई. गेस्ट हाउस के कॉमन रूम में अटैक हो गया. उस वक्त मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया था. बीजेपी के नेताओं ने पहुंच कर उन्हें बचाया.


कांशीराम ने उस वक्त मायावती को मुख्यमंत्री पद पर बैठाया. मुलायम को इस्तीफा देना पड़ा, बीजेपी के समर्थन से मायावती 1995 में पहली बार यूपी की मुख्यमंत्री बनी. इसी के बाद बसपा और सपा के बीच जो खाई पैदा हुई, वो उसे आजतक पाटा नहीं जा सका. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा साथ मिलकर दावेदारी पेश की, लेकिन फिर मायावती ने अखिलेश यादव से नााता तोड़ लिया.


इसे भी पढ़ें- मुलायम सिंह यादव से नेताजी तक का सफर नहीं रहा आसान, जानें रोचक किस्से


Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.