नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर कॉरिडोर का उद्घाटन कर रहे हैं. विश्वनाथ मंदिर और उत्तराखंड स्थित केदारनाथ मंदिर के बाद महाकाल तीसरा ज्योतिर्लिंग है जहां पर वृहद स्तर पर सौंदर्यीकरण और निर्माण कार्य हो रहा है. 800 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा महाकाल कॉरिडोर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से चार गुना ज्यादा बड़ा है. आखिर महाकाल मंदिर हिंदू धर्म में इतना महत्व क्यों रखता है? आइए जानते हैं इसका जवाब.


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12 ज्योतिर्लिंगों में इकलौता दक्षिणोन्मुखी मंदिर
देश में कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं. महाकाल के अलावा गुजरात में सोमनाथ और नागेश्वर, आंध्र प्रदेश में मल्लिकार्जुन, मध्य प्रदेश में ओंकारेश्वर, उत्तराखंड में केदारनाथ, महाराष्ट्र में भीमाशंकर, त्रयंबकेश्वर और घृष्णेश्वर, यूपी में विश्वनाथ, झारखंड में बैद्यनाथ और तमिलनाडु में रामेश्वरम् है.


पूरे देश में महाकाल इकलौता ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिणोन्मुखी है. यानी मंदिर का द्वार दक्षिण दिशा की तरफ खुलता है. माना जाता है कि मृत्यु के वक्त व्यक्ति को दक्षिण दिशा की तरफ ही लिटाया जाता है. महाकाल की पूजा में भी सबसे ज्यादा महत्व असमय मृत्यु से बचाव का है. 


क्या है स्थानीय कथा
एक स्थानीय कथा के मुताबिक उज्जैन में चंद्रसेन नाम का शिवभक्त राजा था. एक बार भगवान शिव ने महाकाल स्वरूप में आकर चंद्रसेन के दुश्मनों का नाश कर दिया था. भक्तों के आग्रह पर भगवान शिव ने शहर में महाकाल के रूप में रहना स्वीकार किया. इसी के बाद शिव उज्जैन शहर के मुख्य देवता भी हो गए. 


कई प्राचीन ग्रंथों में है उल्लेख
कई प्राचीन भारतीय किताबों में भी महाकाल मंदिर का उल्लेख मिलता है. चौथी शताब्दी में लिखी गई मेघदूतम के शुरुआती हिस्से में कालिदास ने महाकाल मंदिर का उल्लेख किया है. 


विद्वानों की नगरी बनी उज्जैन
6वीं और 7वीं शताब्दी में उज्जैन शहर हिंदू धर्म से जुड़े अध्ययन का केंद्र भी था. बाद में ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य जैसे खगोलशास्त्री और गणितज्ञ ने उज्जैन को अपना घर बनाया.  


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