नई दिल्ली: नीतीश कुमार भले ही बिहार के मुख्यमंत्री हो लेकिन यहां की राजनीति में वो तीन नम्बरी हैं. ये  पच नहीं  रहा है. लालू यादव के बाद बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार  नम्बर एक थे, लेकिन उनको तीसरे पायदान पर लाने का श्रेय यदि किसी को जाता है तो वो हैं चिराग पासवान.


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यदि लालू यादव के शब्दों में कहें तो नीतीश कुमार के पेट में दांत है. इसका मतलब नीतीश कुमार दोस्ती भले ही ठीक से नहीं निभाते लेकिन दुश्मनी अच्छी तरह और समय पर निभाते हैं. इसी का नतीजा है ऑपेरशन LJP (लोक जनशक्ति पार्टी).



बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद नीतीश कुमार भले ही भाजपा की अनुकंपा पर एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बन गए लेकिन उन्हें और उनके सिपाहसलारों को ये बात अब तक हजम नहीं हुई है. लिहाजा उन्होंने अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अपने सारे सियासी घोड़े छोड़ दिया हैं.


चिराग बने नीतीश का पहला निशाना
ऐसे में नीतीश की सेना का पहला निशाना थे चिराग पासवान. सिपाहियों को आदेश मिला था कि किसी तरह चिराग की झोपड़ी (चुनाव चिन्ह) में आग लगा दी जाए. इस क्रम में जेडीयू को पहली कामयाबी एलजेपी के एकलौते विधायक को अपने पाले में करके मिली.


लेकिन इतने से ही नीतीश एंड कंपनी को संतोष नहीं हुआ क्योंकि उनका मुख्य मकसद तो घर में आग लगाना था लिहाजा पहले से नाराज चल रहे चाचा पशुपति पारस को साधा गया. पिछले दो महीने से बीमार चल रहे चिराग पासवान को सर्दी-खांसी-बुखार ने जितना नुकसान नहीं पहुंचाया होगा जितना नुकसान उनके चाचा और चचेरे भाई ने पहुंचा दिया.



अब सवाल उठ खड़ा हुआ है कि रामविलास पासवान के निधन के बाद अब उनकी पार्टी किसकी होगी. उनकी राजनीतिक विरासत को आगे कौन ले जाएगा ये बड़ा सवाल है. पार्टी के संविधान के मुताबिक LJP चिराग के पास ही रहेगी. चाचा LJP(P) पशुपति या प्रिंस बना सकते है.


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अब अगला निशाना कौन?
सूत्रों की माने तो एलजेपी की झोपड़ी में आग लगाने के बाद नीतीश का अगला निशाना कांग्रेस पार्टी होगी. बिहार में कांग्रेस के 19 विधायक हैं. आजकल बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी नीतीश कुमार के कैरम बोर्ड की लाग गोटी बने बने हुए है. कांग्रेस को तोड़ने की जिम्मेदारी नीतीश ने उन्हीं के हाथों में सौंपी है. ऐसे में वो लगातार कांग्रेस विधायकों के संपर्क में हैं.


बिहार विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं. वर्तमान में NDA के पास सदन में 127 विधायक है. वहीं महागठबंधन के पास 110 और AIMIM के पास पांच विधायक हैं. एक विधायक मेवा लाल चौधरी की मौत कोरोना से हो गयी है ऐसे में वर्तमान में 242 विधायक हैं.


ऐसे हैं बिहार के राजनीतिक समीकरण
अगर NDA की बात करें तो 127 में 4-4 विधायक जीतन राम मांझी की HUM और मुकेश साहनी की VIP पार्टी से हैं. जो NDA की कमजोर कड़ी हैं. अगर ये 8 विधायक एनडीए से निकलकर विपक्ष के साथ हाथ मिला लेते हैं तो इसके बाद NDA के विधायकों की संख्या 119 हो जाएगी और अगर ये 8 विधायक महागठबंधन के साथ गए तो उनकी संथ्या 118 हो जाएगी. यदि AIMIM के पांच विधायक महागठबंधन के साथ आ गए तो उनके पास 123 विधायक हो जाएंगे और नीतीश सरकार अल्पमत में आ जाएगी. और विपक्ष के पास बहुमत हो जाएगा.



एलजेपी में टूट का मतलब साफ है कि बिहार की राजनीति में बड़ी उठापटक की ये तो महज शुरुआत है. राज्य में आने वाले समय में बड़े राजनीतिक बदलाव होने जा रहे हैं. और इसके लिए राजनीतिक बिसात नीतीश कुमार अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए कर रहे हैं. मतलब साफ है कि राजनीति की पाठशाला बिहार में अभी बहुत कुछ होना बाकी है.


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