नई दिल्ली: कोरोना वायरस के भयानक प्रकोप का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है श्मशान घाट पर लगातार चिताएं जल रही हैं. दिल्ली के श्मशान घाटों पर लगी चिताओं की लंबी लंबी लाइनें सभी को डरा रही हैं. इसको लेकर सबसे ज्यादातर बुरा हाल उन लोगों का है जिनके घर श्मशान घाट सटे इलाके में हैं.


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घर छोड़कर दूसरी जगह जा रहे लोग


दिल्ली के सीमापुरी श्मशान घाट से सटे सनराइज कॉलोनी के लोगों का इतना बुरा हाल है कि कई लोग अपने घरों को छोड़कर दूर चले गए हैं, ताकि कम से कम चिताओं की गर्मी और उसके धुएं से बच सकें.


जो लोग अभी यहां रह रहे हैं, उन्होंने अपने परिवार के बुजुर्गों व छोटे बच्चों को अपने रिश्तेदारों के घर भेज दिया है और इस काॅलोनी में बने मकानों की छतों पर राख ही राख बिखरी हुई है.


मकानों पर लग रहे ताले


मकानों पर पड़े ताले लोगों की बेबसी को बयां कर रहे हैं. सिस्टम से सवाल कर रहे हैं आखिर इस श्मशान घाट को सीएनजी में तब्दील क्यों नहीं किया गया? जिस वक्त इस श्मशान घाट को कोरोना संक्रमितों के लिए आरक्षित किया जा रहा था, तब क्यों नहीं यहां के स्थानीय लोगों का ध्यान रखा गया?


अंतिम संस्कार लकड़ियों से हो रहे हैं, जिस वजह से काॅलोनी गैस चैंबर बन गई है, एक चिता को जलने में 7 से 8 घंटे लग रहे हैं.


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चिताओं के धुंए से सांस लेने में तकलीफ


लोगों का कहना है कि इस श्मशान घाट में सैकड़ों लाशें रोजाना आ रही है, यह काॅलोनी श्मशान घाट से सटा हुआ है, इतनी चिताएं जल रही है जिससे घर आग का गोला बना हुआ है.


पंखा चलाते हैं तो चिता का धुआं अंदर आता है, सांस नहीं लिया जाता. परेशान होकर किरायेदार भी ताला लगाकर अपने गांव चले गए. कभी सपने में भी नहीं सोचा था श्मशान घाट में इतनी चिताएं जलेंगी की उनकी वजह से घर छोड़कर जाना पड़ेगा.


लोगों का ये भी कहना है कि दिन में कुछ देर के लिए घर की साफ सफाई की जारी है और चिता की राख उड़कर घर के अंदर आ जाती है. चिताओं का धुआं घर में आता है और इससे आंखों में जलन होती है. गली नंबर एक में करीब 10 से 15 लोग मकानों को छोड़कर या तो गांव चले गए या फिर दिल्ली में रहने वाले रिश्तेदारों के घरों में रह रहे हैं.


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