नई दिल्लीः लड़के रोते नहीं हैं....मर्द को दर्द नहीं होता.... रोता आदमी अच्छा लगता है क्या भला? ये तीन वाक्य ऐसे हैं जो Social Status के तौर पर हमें समाज से ही किसी ऐसी Kit की तरह मिले हैं जैसे कि जिंदगी जी लेने के लिए इन वाक्यों को न सिर्फ याद कर लेना जरूरी है बल्कि जेहन में कहीं गहराई तक बिठा लेना हमारी मजबूरी है. चाहकर भी हम आज तक इस टैबू को नहीं मिटा पा रहे हैं. नतीजा, तनाव, अवसाद और निराशा भी इसी समाज का एक सच है जिसकी ओर से भी हमारी आंखें अक्सर बंद ही रहती हैं. 


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भावुक होना अलग और कठोर फैसले करना अलग बात
आप एक योद्धा से भावुक होने की उम्मीद नहीं करते, आप किसी सैनिक की भीगी आंखों के बारे में नहीं सोच सकते, लेकिन बीते 6 सालों से हम अंजाने ही इस टैबू को तोड़ रहे हैं. पीएम मोदी के भावुक होने की खबरें हमारी मीडिया में प्रमुखता से दिखती रही हैं. हमने इसे सहजता से लिया है.



इसके बावजूद पीएम मोदी के कठोर फैसले वाले व्यक्तित्व पर कोई आंच नहीं आई है. तो क्या PM Modi यह साबित कर रहे हैं कि भावुक होना अलग बात है और कठोर फैसले लेना और बात? दोनों ही भावनाओं का लिंग या फिर पद से कोई संबंध नहीं है.  


PM Modi के भावुक होने की बात क्यों?
राज्यसभा में मंगलवार को कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद समेत चार सांसदों को विदाई दी गई. इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यसभा को संबोधित किया. बात निकली तो दूर तलक गई. PM Modi ने गुलाम नबी आजाद की तारीफ की और कहने-सुनने का असर रहा है कि सदन का माहौल भावुक हो गया.



कुछ वाकयों को याद करते हुए PM Modi का गला रुंध गया. गुलाम नबी आजाद ने भी अपने पांच साल के कार्यकाल को शब्दों में बयां किया. उनके शब्द भी कभी शायरना हुए फिर माहौल में ढलते-ढलते आंसुओं में भीग गए. राज्यसभा में भाषण का यह दौर एक भावुक क्षण के तौर पर याद किया जाने वाला समय बन गया. 


कई मौकों पर भावुक हो चुके हैं PM Modi
भाषण चल ही रहा था कि सुर्खियां बनीं कि सदन में भावुक हुए पीएम मोदी. इसके बाद ऐसी खबरों का सिलसिला चल निकला जिनमें पीएम मोदी के भावुक क्षणों को याद किया गया था. हालांकि पहले मीडिया में सामने कई खबरों में पीएम मोदी की भावुकता को कई बार स्टंट कहा गया है, लेकिन उसे राजनीतिक मुद्दा मानते हुए वहीं छोड़ते हैं और इस नजरिए से देखते हैं कि जब-जब देश वाकई अपने आप में दुखी और अकेला महसूस करने लगा था तो कोई था जो कि बाहें फैलाकर साथ में रोने आया था.



कमजोर होते पलों में इस अहसास की बड़ी जरूरत होती है. फिर चाहे वह पल Corona जैसी त्रासदी का रहा हो, चमोली में ग्लेशियर टूटने का मौका रहा हो. गलवान में हुई झड़प रही हो और नेपाल में आया भूकंप ही क्यों न रहा हो. देश भावुक था तो एक प्रधानमंत्री ने आश्वासन बाद में दिया, भावुकता में साथ पहले दिया. 


जब इसरो चीफ की आंख से बहे देश भर के आंसू
याद कीजिए सितंबर 2019. जब भारत के आत्मनिर्भर कदम चांद तक पहुंचने वाले थे. देश सांसे थामें चंद्रयान की उड़ान देख रहा था कि इस पल या कि उस पल इसरो का यान चांद की सतह छू लेगा. उस दिन इसरो चीफ के सिवन के हाथ उनके अपने हाथ नहीं थे, बल्कि वे सवा सौ करोड़ से अधिक भारतीयों के हाथ थे.



जिनकी ताकत से उन्हें चांद की सतह छूनी थी, लेकिन विक्रम लैंडर की भटकी राह के कारण उस दिन की सफलता सपना ही रही, हकीकत नहीं बन सकी. के सिवन के हाथों में इतनी ताकत नहीं बची कि वह अपने आंसू पोंछते. तब पीएम मोदी ने उन्हें गले लगाया. के सिवन के बहाने उन्होंने देश भर के आंसू पोंछे और एक बार फिर साबित किया कि सिर्फ जीत जाने वाला ही योद्धा नहीं होता, बल्कि हार से निकले आंसुओं को पोंछने की हिम्मत करने वाला भी योद्धा होता है. 
 
इतिहास में भावुकता की मिसाल कम नहीं
भावुकता की मिसाल इतिहास में देखनी है तो सिद्धार्थ में देखिए जो भावुक हुआ तो बुद्ध बन गया और समाज उसके पीछे चला. चंद्रगुप्त में देखिए जो सेल्यूकस से योद्धा बनकर लड़ा और मौर्य साम्राज्य की स्थापना करते हुए भावुक मनुष्य ही रहा. हर्षवर्धन को याद कीजिए जो योद्धा बनकर चक्रवर्ती सम्राट बना लेकिन भावुक हुआ तो कुंभ में सबसे बड़ा दानवीर निकला. इसके बावजूद पुरुष की भावुकता को इस तरह हीन नजरों से क्यों देखा गया समझ से परे है. 


राकेश टिकैत के आंसू भी देश ने देखे हैं
सियासत की ओर नजर डालें तो आज के दौर में यहां आंसू कई धड़ों में बह रहे हैं. PM Modi के आंसुओं की बात करते हुए कुछ दिन पहले गाजीपुर बॉर्डर पर निकले आंसुओं को नहीं भूलना चाहिए. किसान नेता राकेश टिकैत के लालकिला हिंसा के बाद निकले आंसुओं ने उन्हें एक मौका और दिया कि वे अपने आंदोलन को फिर से खड़ा कर सकें. पश्चिमी उत्तर प्रदेश आधी रात को उठकर उनके समर्थन में पहुंच गया था.



ये आंसुओं का ही असर था. जबकि गौर कीजिए तो टिकैत उस क्षेत्र विशेष से आते हैं जहां लड़कों और लड़कियों की भावनाओं में जमीन-आसमान का फर्क है. जो सदियों से साबित करने में जुटा रहा है कि मर्द को दर्द नहीं होता है. लेकिन टिकैत को भी आखिर में रोना ही भला लगा. छोड़िए, सियासी बात नहीं ही करते हैं. 


खैर, अच्छी बात है की भावुकता में देश PM Modi के साथ है. उनके आंसू देख रहा है. उस पर बात कर रहा है. लेकिन लड़के रोते नहीं हैं... जैसी बातों से इसे दूर रखे हुए हैं. लड़के रोते नहीं हैं PM Modi इस Taboo को भी तोड़ रहे हैं. 


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