Harmohan Singh Yadav: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को समाजवादी पार्टी के पूर्व राज्यसभा सांसद हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि पर आयोजित होने वाले एक खास कार्यक्रम का हिस्सा बनते नजर आयेंगे. पीएम मोदी इस कार्यक्रम में देश के पिछड़े वर्ग से जुड़े लोगों और किसानों को हरमोहन सिंह यादव के योगदान के बारे में जानकारी देंगे. पीएम मोदी शाम 4:30 बजे से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये इस कार्यक्रम का हिस्सा बनेंगे. ऐसे में आइये एक नजर उन खास बातों पर डाल लेते हैं जो इस नेता को महान व्यक्ति बनाती है.


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सिर्फ 31 की उम्र में रखा था राजनीतिक मैदान पर कदम


यादव समुदाय से आने वाले हरमोहन सिंह लंबे समय तक राजनीति में सक्रिय थे और अपने कार्यकाल के दौरान दो बार राज्यसभा सांसद भी बने. हरमोहन सिंह का जन्म 18 अक्टूबर 1921 को कानपुर के एक छोटे से गांव में हुआ था. कई पूर्व स्वतंत्रता सेनानियों की तरह हरमोहन सिंह ने छोटी सी उम्र में ही देश के राजनीतिक माहौल को भांप लिया और महज 31 साल की उम्र में राजनीतिक मैदान में उतर आये.


1970 से 1990 के बीच वो यूपी में एमएलसी और विधायक के रूप में काम करते रहे जबकि 1991में पहली बार जबकि 1997 में दूसरी बार राज्यसभी के सदस्य के रूप में चुने गये. उनकी तरह उनके बेटे सुखराम सिंह यादव भी समाजवादी पार्टी से पूर्व राज्यसभा सदस्य रह चुके हैं.


मुलायम सिंह को सपा अध्यक्ष बनाने में था बड़ा हाथ


हरमोहन सिंह ने अपने राजनीतिक कार्यकाल के शुरुआती दिनों में 'अखिल भारतीय यादव महासभा' के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी काम किया और बाद में मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी का मुखिया चुनने में अहम भूमिका निभाई. हरमोहन सिंह दिवंगत नेता चौधरी चरण सिंह और राम मनोहर लोहिया के काफी अच्छे दोस्त माने जाते रहे हैं और जब चौधरी चरण सिंह की मृत्यु हो गई तो उन्होंने महासभा के सामने मुलायम सिंह यादव को अपना नेता चुनने का प्रस्ताव दिया था.


इस वजह से राष्ट्रपति ने दिया था शौर्य चक्र


गौरतलब है कि 1984 में जब सिख विरोधी दंगों ने देश भर में नफरत की आग जला रखी थी तो वहीं पर हरमोहन सिंह यादव ने अपने परिवार के साथ वो कदम उठाया जिसके चलते तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने उन्हें 1991 में शौर्य चक्र से सम्मानित किया. दरअसल जब दंगे भड़के हुए थे तो हरमोहन सिंह यादव ने अपने परिवार के साथ सिक्ख बहुल इलाके में पलायन कर लिया था ताकि दंगों को शांत कर सकें.


इतना ही नहीं दंगों के दौरान जब एक सिक्ख परिवार उनके घर में अपनी सुरक्षा के लिये पहुंचा तो उन्होंने उसे तब तक हमले से बचाया जब तक कि हमलावरों को तितर-बितर कर गिरफ्तार नहीं कर लिया गया.


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