नई दिल्ली. पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान इस वक्त आर्थिक और राजनीतिक स्थितियों के मद्देनजर दोहरी मार झेल रहा है. देश के अखबार द डॉन की संपादकीय में लिखा गया है-मानव विकास संकेतकों में गिरावट हमारी पांच साल से कम उम्र की 40 प्रतिशत आबादी की अवरुद्ध वृद्धि में दिखाई दे रही है. हमारे लगभग 7 प्रतिशत बच्चे अपने पांचवें जन्मदिन तक भी नहीं पहुंच पाते हैं. दूरदराज के क्षेत्रों और प्रमुख शहरों दोनों में अधिकांश नागरिकों के पास स्वच्छ पानी, अपशिष्ट और स्वच्छता सेवाओं, बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल या उचित पोषण और शिक्षा तक बहुत कम पहुंच है.


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रोजमर्रा की बेहद कठिन जिंदगी का जिक्र
यही नहीं संपादकीय में पाकिस्तान की रोजमर्रा की बेहद कठिन होती जिंदगी के बारे में विस्तार से लिखा गया है. संपाकीय कहता है- एक औसत पाकिस्तानी को केवल आठ साल की स्कूली शिक्षा मिलती है. दक्षिण एशिया में हमारी शिशु मृत्यु दर सबसे अधिक है और जीवन प्रत्याशा सबसे कम है. जैसे-जैसे साल बीतते हैं, पाकिस्तान के मानव विकास संकेतक खराब होते जा रहे हैं.


उथल पुथल से भरा रहा पूरा साल
बता दें कि यह साल पाकिस्तान के लिए हर स्तर पर उथल-पुथल भरा रहा है. ब्रिटेन और संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की पूर्व राजदूत मलीहा लोधी ने डॉन में लिखा है कि इसने देश में बहुत अनिश्चितता देखी, अर्थव्यवस्था के बारे में और इसकी अस्थिर राजनीति कैसे आगे बढ़ेगी. साल के दौरान कई नकारात्मक रुझान जारी रहे. विकास रुक गया, निर्यात गिर गया, विदेशी प्रेषण में गिरावट आई और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कम रहा. मुद्रास्फीति ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई, घरेलू और विदेशी ऋण अस्थिर स्तर पर पहुंच गए. आंतरिक और बाहरी वित्तीय असंतुलन व्यापक रहा, विदेशी मुद्रा भंडार नाजुक स्तर तक कम हो गया. डॉलर के मुकाबले रुपये ने रिकॉर्ड मूल्य खो दिया.


सेना से खराब संबंधों का भी हवाला
संपादकीय में राजनीति से सेना से खराब हुए संबंधों का भी हवाला दिया गया है. इसके बाद इमरान खान समर्थकों द्वारा सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले का भी जिक्र है.
देश के कानूनी और वास्तविक शासक बहुसंख्यकों को सांत्वना नहीं दे सके, जो रिकॉर्ड मुद्रास्फीति से पीड़ित थे. आधिकारिक ब्रीफिंग से पता चला कि कैसे लोगों पर दूसरों के बिजली और गैस बिलों का बोझ डाला गया और उनकी मेहनत की कमाई लूट ली गई.


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