एमनेस्टी इंटरनेशनल पर छापे क्यों पड़े, क्या कहता है FCRA, जानिए सरल भाषा में
हाल ही में मानवाधिकार की रक्षा का दावा करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल की दिल्ली और बेंगलुरू स्थित दफ्तरों पर छापे मारे गए. छापे के बाद एमनेस्टी का तर्क था कि भारत सरकार मानवाधिकार के खिलाफ बोलने पर उस संस्था को परेशान कर रही है. लेकिन इस संस्था पर FCRA के जिन नियमों के तहत छापा मारा गया, उसके बारे में भी जान लेते हैं.
नई दिल्ली: एमनेस्टी इंटरनेशनल का नाम भारत में अनजान नहीं है. पिछले दिनों कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से संस्था ने घाटी में मानवाधिकार के मामलों की वकालत की. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि सरकार ने इसके ठिकानों पर छापेमारी करनी शुरू कर दी. दरअसल, यह एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जिसकी फंडिंग विदेशों से होती है. देश में एक कानून है जिसका नाम है FCRA( Foreign Contribution Regulation Act) 2010. इसे यूपीए-II की सरकार के दौरान पारित कराया गया था. इसी कानून के प्रावधानों के उल्लंघन के मद्देनजर सीबीआई ने एमनेस्टी इंटरनेशनल के कार्यालयों पर छापा मारा है. हालांकि, अभी तक इसकी कोई जानकारी नहीं मिली है कि इस छापेमारी के दौरान क्या कुछ निकल कर सामने आया है.
क्या है FCRA ?
FCRA एक रेगुलेटरी कानून है जिसके तहत संस्था को विदेशों से मिलने वाली किसी भी प्रकार की मदद को अंडर चेक यानी की जांच के अधीन रखा जाता है. यह किसी भी कंपनी के अलावा किसी भी व्यक्ति, समूह या किसी भी कंपनी पर लागू होता है. यदि कोई संस्था या व्यक्ति या समूह निर्धारित राशि से ज्यादा की विदेशी मदद लेता है और उसकी जानकारी भारत सरकार या संबंधित कमिटी या मंत्रालय को नहीं देता है तो वैसी स्थिति में उस संस्था पर एफसीआरए के नियमों के तहत कार्रवाई की जा सकती है. इस कानून को पारित कराने का उद्देश्य विदेशी मदद को सीमित कर राष्ट्रीय हित को किसी तरह के षडयंत्र से बचाया जाना है. FCRA की धारा 1(2) के मुताबिक यह देश के सभी हिस्सों में या देश के बाहर विदेशों में रह रहे भारतीयों पर भी बराबर लागू होता है. न सिर्फ व्यक्ति बल्कि किसी भी निजी समूह या संस्था के विदेशी सहायताओं तक इस कानून की पहुंच है.
सरल भाषा में समझिए विदेशी सहायता का मतलब
FCRA के नियमों में यह भी बताया गया है कि किस तरह के और कितने के विदेशी मदद तक की छूट है. अधिनियम की धारा 2(1) के तहत विदेशी सहायता का मतलब किसी भी विदेशी स्त्रोतों से किसी तरह का दान, डिलिवरी, या स्थानान्तरण से है. अब इसमें किसी भी व्यक्ति को उसकी निजी जरूरतों के लिए दिया हुआ कोई उपहार शामिल नहीं होगा जिसकी कीमत भारतीय मुद्रा के हिसाब से 25,000 रुपए के बराबर या उससे कम का हो. इसके अलावा इस विदेशी मदद में कोई विदेशी मुद्रा भी शामिल है. यह विदेशी मुद्रा या तो किसी भी बैंक के माध्यम से मिला हो या कैश के, दोनों ही सूरत में एफसीआरए के कानूनों के अधीन होगा.
FEMA के अंतर्गत आता है FCRA
FCRA को 1999 में पारित अधिनियम FEMA( Foreign Exchange Management Exchange) के नियमों के अधीन रखा गया है. इस कानून का मुख्य उद्देश्य भी एफसीआरए से मिलता-जुलता है. इसे विदेशी विनियमन या मुद्रा के भारतीय सीमा में मजबूत करने और उसमें संशोधन के लिहाज से पारित किया गया था ताकि भारतीय कंपनियों के साथ विदेशी व्यापार को बढ़ावा दिया जा सके. साथ ही इसपर कुछ उचित प्रतिबंध भी रखे गए हैं ताकि इनके साइड-इफेक्ट्स पर नजर बना कर रखा जा सके.
पहले भी ईडी ने पाया था संस्था को दोषी
एमनेस्टी इंटरनेशनल पर चल रही छापेमारी में अगर संस्था किसी भी तरह के विदेशी निवेश या मदद को इन कानूनों के तहत साबित न कर पाई तो दंड का भागी होगी. फिर चाहे वह कितना भी मानवाधिकार की दुहाई क्यों न देती रहे. इससे पहले भी एमनेस्टी पर जांच चला है. बीते साल भी एमनेस्टी के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय ने भी जांच की थी. मानवाधिकार संगठन पर विदेशी चंदा नियमन के उल्लंघन के आरोपों को लेकर ही ईडी ने संस्था के प्रपत्रों और अन्य दस्तावेजों की जांच की थी.
अक्टूबर 2018 यानी पूरे सालभर पहले प्रवर्तन निदेशालय ने एमनेस्टी इंटरनेशनल के खिलाफ छापेमारी कर जांच की थी. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि एमनेस्टी इंटरनेशनल ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के नियमों का उल्लंघन किया और एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (एआईआई) नाम से एक नई कंपनी के खाते में 36 करोड़ रुपये लिए. ईडी के अनुसार, जब गृह मंत्रालय ने एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया फाउंडेशन ट्रस्ट को एफसीआरए 2010 के तहत अनुमति देने से मना कर दिया तब उन्होंने एआईआईपीएल नाम से दूसरा रास्ता अपनाया.