सपा कार्यालय से क्यों हट गए रामचरितमानस और शूद्र वाले पोस्टर? जानें क्या है अखिलेश यादव का प्लान
UP Politics: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के कार्यालय रामचरितमानस और शूद्र वाले पोस्टर से हट गए हैं. अखिलेश यादव के एक्शन को देख कर ये समझा जा सकता है कि वो कोई कोताही के मूड में नही है. उन्होंने पार्टी के दो नेताओं को निकालकर ये संदेश देने की कोशिश की है कि अनुशासन तोड़ने पर बख्शा नहीं जाएगा.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों रामचरितमानस और शूद्र को लेकर कोहराम मचा हुआ है. विवाद जैसे-जैसे गहरा रहा है, वैसे-वैसे समाजवादी पार्टी इससे खुद को अलग करने की कोशिश करने लगी है. स्वामी प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव के आसपास इस विवाद पर राजनीति गरमा रही थी. हालांकि रामचरितमानस विवाद पर शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव ने स्वामी प्रसाद के बयान से खुद को किनारे कर लिया है. उन्होंने मौर्य के बयान को निजी करार दिया.
अखिलेश ने दो नेताओं पर कार्रवाई से दिया ये संदेश
स्वामी प्रसाद मौर्य के बयानों को लेकर लगातार कई नेताओं का बयान आ रहा था, पार्टी लाइन से हटकर ऐसी बयानबाजी करने वाले को अखिलेश यादव ने सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया. दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान के खिलाफ सोशल मीडिया पर आवाज उठाने वाली विधानसभा चुनाव में सपा की उम्मीदवार रहीं दो नेताओं रोली तिवारी मिश्रा और ऋचा सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया.
अखिलेश ने इस कार्रवाई से ये संदेश देने की कोशिश की. ऐसे में बाकी नेताओं ने भी इसे सबक के तौर पर लिया और पार्टी दफ्तर या राजधानी लखनऊ के अलग-अलग जगहों पर चेहरा चमकाने के लिए जो पोस्टर लगाए गए थे, उसे अब हटवाया जा रहा है. कहीं न कहीं नेताओं को कार्रवाई का डर सता रहा है. सपा दफ्तर के बाहर लगाए गए रामचरितमानस और शुद्र वाले पोस्टर हटा लिए गए, ऐसे में आपको अखिलेश का प्लान समझना चाहिए..
स्वामी प्रसाद मौर्य और अखिलेश यादव के बयान के बाद लगे थे पोस्टर
श्रीरामचरितमानस पर स्वामी प्रसाद मौर्य का बयान आया और उसकी चौपाइयों को बैन करने की मांग उठाई. इसी के बाद सपा दफ्तर के बाहर उनके समर्थन में पोस्टर लगाए गए. फिर अखिलेश यादव ने शुद्र वाला बयान दिया, इसके बाद कई नेताओं ने अपने नाम के आगे शूद्र लगाते हुए बड़े-बड़े पोस्टर लगवा दिए.
भाजपा ने अखिलेश को खूब खरी-खोटी सुनाई और लगातार दबाव बनता देख कहीं न कहीं अखिलेश ने लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए अपने एजेंडे में बदलाव की कोशिश शुरू कर दी है. इस विवाद का फायदा सपा हर हालत में उठाने की कोशिश करेगी, लेकिन अखिलेश इस बात का जरूर ख्याल रखेंगे कि ये मुद्दा हिंदुत्व की ओर ना चली जाए, वरना इससे समाजवादी पार्टी और अखिलेश दोनों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी. शायद अखिलेश ने ये इशारा करने की भी कोशिश की है, क्योंकि उन्होंने अपने पार्टी के प्रवक्ताओं को सांप्रदायिक डिबेट से दूर रहने की सलाह भी दी है.
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