राष्ट्रपति भवन से जाते जाते देश के लोकतंत्र पर बड़ी बात कह गए रामनाथ कोविंद
राष्ट्र के नाम राष्ट्रपति के रूप में अपने अंतिम संबोधन में कोविंद ने कहा कि महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में और सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया है. मुझे खुशी है कि सरकार ने इस कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है.
नई दिल्ली: निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देशवासियों से भावी पीढ़ियों के लिए पर्यावरण संरक्षण का आह्वान करते हुए रविवार को कहा कि प्रकृति मां गहरी पीड़ा में है और जलवायु संकट इस ग्रह के भविष्य को खतरे में डाल सकता है.
21वीं सदी भारत की है- कोविंद
राष्ट्र के नाम अपने विदाई संबोधन में उन्होंने कहा कि देश 21वीं सदी को ‘‘भारत की सदी’’ बनाने के लिए तैयार हो रहा है. उन्होंने स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये आर्थिक सुधारों के साथ, नागरिकों को उनकी क्षमता का एहसास कराकर उन्हें समृद्ध बनायेंगे. निर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सोमवार को देश की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगी.
राष्ट्र के नाम राष्ट्रपति के रूप में अपने अंतिम संबोधन में कोविंद ने कहा कि महामारी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे में और सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया है. मुझे खुशी है कि सरकार ने इस कार्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है. उन्होंने कहा कि एक बार शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा शुरू हो जाने के बाद आर्थिक सुधार नागरिकों को उनके जीवन के लिए सबसे अच्छा रास्ता खोजने में मदद करेंगे. मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमारा देश 21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए तैयार हो रहा है.
लोकतंत्र पर देशवासियों को दिया अहम संदेश
कोविंद ने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने कहा था, "हमें अपने राजनीतिक लोकतंत्र को एक सामाजिक लोकतंत्र भी बनाना चाहिए. राजनीतिक लोकतंत्र टिक नहीं सकता, यदि वह सामाजिक लोकतंत्र पर आधारित न हो. सामाजिक लोकतंत्र का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है जीवन का वह तरीका जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुता को जीवन के सिद्धांतों के रूप में मान्यता देता है. कोविंद ने कहा कि आधुनिक समय में, देश की गौरवशाली यात्रा औपनिवेशिक शासन के दौरान राष्ट्रवादी भावनाओं के जागरण और स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत के साथ शुरू हुई थी.
उन्होंने कहा कि उन्नीसवीं सदी में देशभर में कई विद्रोह हुए. नई सुबह की उम्मीद लाने वाले कई नायकों के नाम लंबे समय से भुला दिए गए हैं. उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ के योगदान को हाल के दिनों में ही सराहा गया है. कोविंद ने कहा कि वर्ष 1915 में जब महात्मा गांधी जी स्वदेश लौटे, उस समय देश में राष्ट्रीयता की भावना और भी प्रबल हो रही थी और अनेक महान जननायकों की उज्ज्वल आकाश-गंगा का जैसा प्रकाश हमारे देश को बीसवीं सदी के आरंभिक दशकों में प्राप्त हुआ, वह विश्व इतिहास में अतुलनीय है.
उन्होंने कहा, ‘‘जहां एक ओर आधुनिक युग के एक 'ऋषि' की तरह, गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, हमारी सांस्कृतिक विरासत से देशवासियों को फिर से जोड़ रहे थे, वहीं दूसरी ओर बाबासाहब भीमराव आंबेडकर समानता के आदर्श की ऐसी पुरजोर वकालत कर रहे थे जैसा अधिकांश विकसित देशों में भी दिखाई नहीं दे रहा था.
25 जुलाई को शपथ लेने वाली देश की 10वीं राष्ट्रपति होंगी मुर्मू
द्रौपदी मुर्मू 25 जुलाई को शपथ लेने वाली देश की 10वीं राष्ट्रपति होंगी. रिकॉर्ड दर्शाते हैं कि वर्ष 1977 से लगातार राष्ट्रपतियों ने इस तिथि (25 जुलाई) को शपथग्रहण की है. दो राष्ट्रपति जाकिर हुसैन और फखरुद्दीन अली अहमद - अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके क्योंकि उनका निधन हो गया था.
भारत के छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने 25 जुलाई 1977 को शपथ ली. तब से 25 जुलाई को ज्ञानी जैल सिंह, आर. वेंकटरमण, शंकर दयाल शर्मा, के.आर. नारायणन, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल, प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद ने इसी तिथि को राष्ट्रपति पद की शपथ ली.
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