नई दिल्ली: केंद्र के अध्यादेश ने नौकरशाहों के तबादलों और नियुक्तियों में दिल्ली के उपराज्यपाल के अंतिम निर्णय के अधिकार को बहाल कर दिया है और एक प्रशासक के रूप में उनकी भूमिका को मजबूत किया है. अब उन्हें उन प्रस्तावों पर निर्णय लेने का भी अधिकार होगा, जिन पर राष्ट्रीय राजधानी की निर्वाचित सरकार विचार करती है या फैसले लेती है. गौरतलब है कि अध्यादेश जारी किए जाने से महज एक सप्ताह पहले ही उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को छोड़कर अन्य सभी सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंप दिया था.


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सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अध्यादेश ने किया निरस्त
केंद्र सरकार ने आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) और ‘दानिक्स’ काडर के ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित करने के उद्देश्य से शुक्रवार को एक अध्यादेश जारी किया था. इस अध्यादेश ने 11 मई के उच्चतम न्यायालय के फैसले को निरस्त कर दिया है. मुख्यमंत्री इस प्राधिकरण के अध्यक्ष होंगे और मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव इसके सदस्य होंगे.


प्राधिकरण द्वारा तय किए जाने वाले सभी मामले उपस्थित सदस्यों के मतदान के बाद बहुमत के आधार पर किए जाएंगे. मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा. इस कदम ने केंद्र तथा उपराज्यपाल के साथ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सरकार के टकराव के लिए मंच तैयार कर दिया है. अध्यादेश के अनुसार इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुपालन की जिम्मेदारी संबंधित विभाग के मुख्य सचिव तथा सचिव की होगी.


जानिए केंद्र के अध्यादेश में क्या कहा गया है
अध्यादेश में कहा गया है कि ‘उपराज्यपाल’ का अर्थ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए संविधान के अनुच्छेद 239 के तहत नियुक्त प्रशासक और राष्ट्रपति द्वारा उपराज्यपाल के रूप में नामित व्यक्ति से है. अध्यादेश के अनुसार, यदि मंत्रिपरिषद के सचिव की राय है कि मंत्रिपरिषद द्वारा विचार किया गया और तय किया गया प्रस्ताव वर्तमान में लागू कानून के प्रावधानों या धारा 44 के तहत बनाई गई प्रक्रिया के किसी भी नियम के अनुसार नहीं है, तो यह मंत्रिपरिषद के सचिव का कर्तव्य होगा कि वह इसे निर्णय लेने के लिए उपराज्यपाल के समक्ष ले जाए.


आम आदमी पार्टी (आप) ने शनिवार को आरोप लगाया कि दिल्ली में नौकरशाहों के तबादले से जुड़ा केंद्र का अध्यादेश ‘असंवैधानिक’ है और यह सेवा संबंधी मामलों में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिल्ली सरकार को दी गई शक्तियों को छीनने के लिए उठाया गया एक कदम है. दिल्ली की मंत्री आतिशी ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि केंद्र सरकार ने यह अध्यादेश लाने के लिए जानबूझकर ऐसा समय चुना, जब उच्चतम न्यायालय अवकाश के कारण बंद हो गया है.


बीजेपी ने केंद्र के अध्यादेश का किया स्वागत
वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अध्यादेश का शनिवार को स्वागत करते हुए आरोप लगाया कि केजरीवाल सरकार सेवा मामलों पर उच्चतम न्यायालय के हाल के फैसले की आड़ में अधिकारियों को 'डरा-धमका' रही है और अपनी शक्तियों का 'दुरुपयोग' कर रही है. भाजपा की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि दिल्ली की गरिमा बनाए रखने और लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए यह अध्यादेश आवश्यक है.


सचदेवा ने कहा, 'दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है और यहां जो भी होता है, उसका देश तथा पूरी दुनिया में असर होता है.' उन्होंने कहा, 'क्या आप (दिल्ली सरकार) उच्चतम न्यायालय के फैसले की आड़ में गुंडागर्दी और अधिकारियों को डराने-धमकाने पर उतारू हो जाएंगे?'
(इनपुट- भाषा)


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