नई दिल्ली.  एससीओ अर्थात शंघाई सहयोग संगठन अर्थात आठ राष्ट्रों का वैश्विक संगठन. इसकी हालिया बैठक भी एक औपचारिकता की निकम्मी पूर्ती से अधिक नहीं रही.  चीन, रुस, पाकिस्तान और मध्य एशिया के चार गणतंत्रों के नेता इस दूर-दर्शनीय मीटिंग में अपनी ढपली अपना राग बजाते रहे और मिलकर कोई बड़ा पारस्परिक लाभदायक निर्णय लेने के स्थान पर एक दूसरे की निंदा का रसपान करते रहे. 


संयुक्त राष्ट्र संघ के हुए 75 वर्ष पूरे


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संयुक्त राष्ट्र संघ के 75 वर्ष पूरे हुए हैं और यही विषय था इस बार एससीओ की बैठक का परन्तु चारों नेताओं ने संयुक्त राष्ट्र के असमय बुढ़ापे का उपचार करने की बात नहीं उठाई. किसी ने इस दिशा में विचार ने नहीं किया कि इतने वर्षों से अब तक संयुक्त राष्ट्र अपने दुधमुहे पालने में ही पड़ा झूला झूल रहा है, इसे हकीकत की दुनियावी जमीन पर कैसे उतारा जाए और कैसे चलाया जाए. 


मोदी रहे संयत और सुलझे हुए 


भारत के वैश्विक नेता पीएम मोदी ने अपनी उपस्थिति से जहां बैठक की गंभीरता बढ़ाई वहीं उन्होंने अपने स्तर पर अपने सम्बोधन में किसी को अपना निशाना नहीं बनाया. इसकी बजाये उन्होंने तो इस तरह के अहम् वैश्विक संगठनों की मीटिंग आपसी कलह से परहेज करने पर ज़ोर दिया. मोदी ने कहा वैश्विक संगठनों का यही लक्ष्य होता है कि विवादों से बच कर समाधानों के पथ पर आगे बढ़ें.


पुतिन ने भी दिखाई समझदारी 


पीएम मोदी का अनुकरण रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पूतिन ने भी किया. उन्होंने भी आपसी टांग खिंचाई के बजाये बैठक के समय के सदुपयोग करने की बात कही. ऐसा लगता है कि अब वैश्विक नेता काफी कुछ मोदी से सीखते हैं - अपने देश में भी और देश के बाहर भी.


भारतीय योगदान को चिन्हित किया 


पीएम मोदी ने जहां संयुक्त राष्ट्र के सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्ष की सराहना की वहीं यह बताने में भी संकोच नहीं किया कि भारत को गर्व है कि उसने संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेना के साथ अपने सैनिकों को दुनिया के पचास देशों में भेजा है और कोरोना से मुकाबला करने के लिए करीब एक सौ पचास देशों में दवाइयां भेजी हैं.  


रचनात्मक सुझाव दिया मोदी ने  


अहम रचनात्मक परामर्श देते हुए पीएम मोदी ने कहा कि कितना अच्छा होता यदि दक्षेस के सरकारी संगठन के मुकाबले एक दक्षिण और मध्य एशियाई राष्ट्रों की जनता के लिए जन-दक्षेस के निर्माण की बात होती. पीएम मोदी ने कहा कि मैं स्वयं इस दिशा में कार्यरत हूं. उन्होंने भारत के मध्य एशियाई राष्ट्रों के साथ चले आ रहे पुरातन सांस्कृतिक संबंधों का भी उल्लेख किया. 


जिनपिंग और इमरान बाज नहीं आये


जहां मोदी और पुतिन संयत रहे वहीं चीनी जिनपिंग और पाकिस्तानी इमरान मौके का फायदा उठाने की कोशिश से नहीं चुके. बिना नाम लिए जिनपिंग ने अमेरिकन दखलंदाजी की आलोचना की तो इमरान खान ने भारत से बदला निकालने की कोशिश की और बिना नाम लिए कश्मीर का मुद्दा उठाया और उस पर आत्म-निर्णय की मांग की. इतना ही नहीं भारत के नागरिकता संशोधन कानून और बहुत से सांप्रदायिक मसलों का उल्लेख करने से भी नहीं चूके


इमरानी मंशा सामने आई 


दुनिया के इस्लामी नेता बनने की नई जवान हो रही चाहत चेहरे पर नज़र आई इमरान खान के. फ्रांस की घटना का ज़िक्र करते हुए उन्होंने इस्लाम खतरे में है का सांकेतिक ज़िक्र किया और इस्लाम विरोधी क्रिश्चियन देशों की खाल उधेड़ी. पाकिस्तान में फौज और मुल्ला-मौलवियों की कठपुतली बन कर नाच रहे इमरान खान ने पश्चिम और मध्य एशिया के मुसलमानों की लीडरी की तमन्ना को इस मंच पर रख कर देर तक डमरू बजाया. 


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