नई दिल्लीः लद्दाख, भारत का उत्तरी-पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र. जहां तापमान 5 डिग्री सेल्सियल से कम रहता है. यहीं है गलवान घाटी और पैंगोंग झील. बीते दो महीने से यह झील उबल रही है और गलवान घाटी सुलग रही है. वजह? वजह है यहां चीनी सीमा के सैनिकों में उबलती धूर्तता और भारतीय सीमा में तैनात सैनिकों का जवाब देने के लिए उबलता खून.  लगातार जारी इस तनातनी के कारण माहौल में गर्मी है. इसका नतीजा हुआ कि सोमवार देर रात फिर झड़प हुई. इसमें तीन भारतीय जवान शहीद हो गए. चीन की धूर्तता देखिए, इसके लिए भी वह भारत को ही जिम्मेदार ठहरा रहा है.


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यह सिलसिला सोमवार रात को अचानक नहीं शुरू हो गया, बल्कि इसकी पटकथा 2 महीने से लिखी जा रही है. कई सिलसिलेवार हुई घटनाओं का एक परिणाम है यह झड़प, ज्यादा पुरानी बात नहीं है तो जल्द ही पीछे के पन्ने पलट कर देख लेते हैं.


दो सड़कों के साथ शुरू हुआ मसला
भारत का चीन के साथ सीमा विवाद तो पुराना कैंसर रहा है. क्योंकि चीन की विस्तारवादी नीति से दुनिया वाकिफ है. तिब्बत की वर्तमान स्थिति इसका सटीक उदाहरण है तो उन खबरों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए जब चीन अरुणाचल तक की भूमि क्षेत्र को अपना बताता रहा है. इस जारी विवाद के साथ भारत ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया था. यह निर्णय था पूर्वी लद्दाख में दो महत्वपूर्ण सड़कों का निर्माण.


चीनी की आंखों में खटक रही थीं सड़कें
इनमें से एक सड़क है दरबूक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (डीएस-डीबीओ) है, जो देश के उत्तरी चौकी को कनेक्टिविटी प्रदान करती है. तो दूसरी सड़क है, दौलत बेड ओल्डी है, जो ससोमा से सेसर ला तक बनाई जा रही है. यह कार्य जनवरी तक जारी रहा था.



चूंकी यह कार्य पूरी तरह भारतीय सीमा के भीतर ही था, इसलिए चीन चाह कर भी चूं नहीं कर सकता था, लेकिन लद्दाख तक भारत की सरल कनेक्टिविटी को देखते हुए वह अपनी ओर सैन्य क्षमता को बढ़ाने लगा था.


फिर आया लिपुलेख मामला
दिसंबर तक कोरोना दुनिया में फैलने लगा था. भारत में भी मार्च तक इन निर्माणकार्यों पर असर पड़ा. इसी बीच एक और सड़क का निर्माण जारी था. यह थी लिपुलेख होते हुए कैलाशमानसरोवर जाने वाली सड़क. चीन इस सड़क पर गिद्ध नजरें टिकाए हुआ था.


क्योंकि इस सड़क का केवल धार्मिक महत्व नहीं था, हमेशा सीमा पर विवाद पैदा करने वाले चीन के लिए यह एक समस्या भी थी, क्योंकि टकराव की स्थिति में इसके जरिए भारतीय सेना व सहायता कम से कम समय में पहुंच सकती थी.


5 मई को सामने आई बौखलाहट
चीन की यह बौखलाहट पहली बार मई में सामने आई. खबर आई थी कि लद्दाख में 5 मई को भारत और चीन की सेना के जवान लद्दाख में एक-दूसरे से भिड़ गए थे. यहां दोनों ओर के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी.


हाथापाई की जानकारी मिली थी और दोनों ही ओर के सैनिक घायल हुए थे. 6 मई को मामला सुलझा लिया गया था. यह मामला तब मीडिया में नहीं सामने आया था.


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9-10 मई को फिर सामने आई झड़प
इस प्रकरण को सामने लाने में भूमिका निभाई एक और झड़प ने.  ठीक 5 दिन बाद 10 मई को उत्तरी सिक्किम स्थित सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़प की बात सामने आई.  यहां नाकू ला सेक्टर में दोनों सेनाओं में पत्थर बाजी हुई और बड़ी संख्या में सैनिक घायल हुए. झड़प बड़ी थी और मीडिया में आ गई, इसके बाद ही 5 मई की झड़प का पता चला.



यहां यह ध्यान दिलाना जरूरी है कि लिपुलेख-गर्बाधार सड़क का उद्घाटन भी 8 मई को किया गया था. यानी कि चीन की बौखलाहट का अंदाजा लगाया जा सकता है.


चीन ने आगे कर दिया नेपाल का 'कंधा'
शातिर चीन ने एक और हरकत की. अब उसने पैंतरा चला नेपाल की ओर से. भारत-नेपाल के सांस्कृतिक संबंध विरासत की तरह संरक्षित रहे हैं, लेकिन वर्तमान में वहां कम्यूनिस्ट सरकार है. नेपाल की सरकार ने किसी शह और दबाव में आकर लिपुलेख वाली सड़क का निर्माण दुर्भाग्यपूर्ण बताया.



यह वही समय था, जब भारत-पाकिस्तान को POK में औकात दिखा रहा था, और कश्मीर घाटी में आतंकियों को ठिकाने लगा रहा था.


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तीन मोर्चों पर एक साथ डटा रहा भारत
यानी कि भारतीय सेना और सुरक्षाबल तीन मोर्चों पर जुटे थे. पहला POK  में पाकिस्तान के साथ, नाकू ला सेक्टर में चीनी सैनिकों के साथ, लद्दाख में चीनी सेना के सामने और राजनीतिक तौर पर नेपाल को आगे रखकर चीन उसके कंधे पर बंदूक चला रहा था.


भारत ने सबसे पहले नेपाल के आरोपों को खारिज कर बातचीत से स्थिति सुलझाने की पेशकश की. पाकिस्तान के कदम पीछे हटाए रखे और अब लद्दाख में चीन बचा था. लिहाजा चीन को स्पष्ट तौर पर सामने आना पड़ा, जिससे वह हमेशा बचता रहा है.


यह तो था चीन के साथ अप्रैल और मई के शुरुआती दिनों का हाल, बीच में समझौते, पूर्व स्थिति बरकरार रखने का खबरें आती रही हैं, लेकिन सोमवार की घटना के बाद इनके कोई मायने नहीं रहते हैं. फिर आगे क्या हुआ, पढ़िए यहां लद्दाख सीमा विवादः चीन से हुई सभी वार्ताएं असफल ही रहीं, जानिए कब क्या-क्या हुआ


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