नई दिल्ली: किसान कृषि कानून के तीनों सुधारों को रद्द करने की मांग पर अड़े हैं. जबकि सरकार बार-बार ये कह रही है कि एमएसपी और मंडियों के खत्म हो जाने की आशंकाएं निराधार हैं. हालांकि ये बात कही नहीं गई है लेकिन कहा ये भी जा रहा है कि सरकार एमएसपी और मंडी मसले पर क्लॉज कानून में जोड़ सकती है ताकि किसानों को भरोसा है. मसला भरोसे का ही है और इसके लिए अन्नदाता-सरकार के बीच सतत संवाद ज़रूरी है.  पर सवाल दूसरा भी है. हाइवे या रोड्स को बंद कर देने का. ये ठीक नहीं, किसान कहते हैं इसके अलावा कोई चारा नहीं है, मुझे नहीं लगता. आप सत्याग्रह करिए शहरों में हर रोज़ सभाएं करिए, गिरफ्तारियां दीजिए ऐसे कि दूसरों की ज़िंदगी पर न बन आए. बड़ी गफलत की स्थिति है. सबसे बड़ी बात ये है कि अगर किसान कानून खारिज करने की मांग पर ही अड़े रहे तो समाधान क्या वाकई निकलेगा?


राष्ट्र के बारे में चिंता करना जरूरी है!


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जब संवाद होता है तो ही विवाद खत्म होता है, लेकिन संवाद अलग-अलग हो तो असमंजस बड़ा होता जाता है. पहले दिन से ज़ी हिंदुस्तान किसानों के बीच रहा, पहले दिन से हमने किसानों के संघर्ष को न सिर्फ देखा बल्कि उनकी आवाज़ बनते रहे. उनके नेताओं को कवर करते रहे उनकी आवाज़ सरकार तक पहुंचाते रहे, मकसद क्या था? वो ये था कि जब साजिशों का दौर हो, जब शाहीन बाग और दिल्ली जलाने की हिंसा वाले लोगों की जत्थे किसान आंदोलन की ज़मीन पर हलचल बढ़ाने लगे तब राष्ट्र के बारे में चिंता करना ज़रूरी है.



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पवित्र आंदोलन को शाहीन बाग न बनाइएगा


किसानों से गुज़ारिश यही है और उम्मीद यही कि वो अपने मंच को देश के खिलाफ साजिश रचनेवालों के हवाले न करेंगे.  मन तसल्ली से बैठता है जब सिंघु बॉर्डर पर, गाज़ीपुर बॉर्डर पर या टिकरी बॉर्डर पर खड़ा किसान वंदेमातरम का सिंहनाद करता है. इसलिए ये आंदोलन पवित्र है. आंदोलन की आत्मा पवित्र है. तिरंगा लहराते किसानों ने तिरंगे को अपना सुरक्षा कवच नहीं बना रखा है (शाहीन बाग के झूठे आंदोलनकारियों और धर्मांधों की तरह) बल्कि तिरंगे का नाता उनका दिल से है.


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जो बोले सो निहार सत श्रीअकाल का उद्घोष अगर हवाओं में है तो ये हिंदुस्तान की उसी सनातन परंपरा का सबसे मजबूत रक्षा कवच है जिसने करोड़ों सनातनी हिंदुओं की इस्लामिक आक्रांताओं से रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह न की. इसलिए सावधान रहना ज़रूरी है कि शाहीन बाग की शातिर गैंग किसानों के पवित्र आंदोलन के ज़रिए सरकार के खिलाफ अपनी खीझ को न उतारे.


केरल में मंडी गोल, लाल झंडे वालों की नीयत में झोल


पहले दिन किसानों का संघर्ष देख रहे हैं. हम पहले दिन से ये कह रहे हैं सरकार और किसान दोनों को एक कॉमन प्लेटफॉर्म पर आना चाहिए. लेकिन ये भी सच है कि कुछ लोग, कुछ राजनीतिक दल समाधान चाहते ही नहीं. खासकर वामपंथी (अर्बन नक्सल ब्रिगेड). ये वो ब्रिगेड है लेफ्ट शासित राज्य में किसानों की मंडी व्यवस्था को खत्म कर चुकी है, और अब किसानों को भरमाने में लगी है.



पीएम ने भी अपने संवाद में ये बात भी कही कि किसानों का आंदोलन भटक गया है. इस शक पर मुहर इसलिए लगती है क्योंकि विदेशों से ड्राइव हो रहे शाहीन बाग वाले चेहरे, दिल्ली हिंसा की साजिश रचने वाले चेहरे, टुकड़े-टुकड़े गैंग के लाल झंडे वाले अर्बन नक्सल, किसानों के आंदोलन पर अपनी फसल काटने चक्कर में हैं. मंडियों के खत्म हो जाने झूठ फैलाया जा रहा है. झूठ वो फैला रहे हैं जो केरल में मंडिया खत्म किए बैठे हैं. लेकिन केरल में माओ के चेले मंडी बंद करने पर चूं तक नहीं करते.



किसानों में भ्रम या सुलह की इच्छा शक्ति कम?


तो क्या दिल्ली चौहद्दी को घेर कर भ्रम बैठा है? क्या दिल्ली की सीमाओं के डटे किसानों के कंधों पर बंदूक किसी और की है? इसे लेकर सवाल तो उठते हैं. क्योंकि जिस तरह से  MSP, APMC पर सरकार ने बार-बार अपना पक्ष साफ किया है. सरकार ने MSP, APMC खत्म न होने की गारंटी दी है लेकिन बार-बार भरोसा दिए जाने के बाद भी  किसान तीनों कानून रद्द करने की मांग पर ही अड़े हुए हैं. ये इशारा करता है कि संवाद से ज्यादा तवज्जो विवाद को है और शायद इसलिए कहा जा रहा है किसान आंदोलन ज़िद और साजिश के घेरे बुरी तरह भटक चुका है.


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