नई दिल्ली: Supreme Court on Same Sex Marriage: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाली याचिका पर फैसला सुनाया गया. कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक साथ रह सकते हैं, लेकिन विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती. इनके साथ भेदभाव रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कदम उठाएं. समलैंगिक विवाह का कानून बनना चाहिए या नहीं, यह बात कोर्ट ने संसद पर छोड़ दी है. मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस रविंद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने की. फैसला 3-2 के बहुमत से पारित हुआ.


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संसद के अधिकार क्षेत्र में कोर्ट दखल नहीं देगा
कोर्ट ने कहा कि यह संसद को तय करना है कि विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) की व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है या नहीं. अदालत संसद के अधिकार क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहती है. अनुच्छेद 21 के तहत सम्मान के साथ जीवन एक मौलिक अधिकार है. सरकार को नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए. स्पेशल मैरिज एक्ट को विभिन्न धर्म और जाति के लोगों को शादी करने देने के लिए बनाया गया है. सेम सेक्स मैरिज के लिए इसे निरस्त कर देना गलत है. अगर इसी कानून के तहत समलैंगिक विवाह को दर्जा दिया गया, तो बाकी के कानूनों पर इसका असर पड़ेगा. ये सारे विषय संसद देखेगी. 


CJI बोले- जेंडर के आधार पर शादी से नहीं रोका जा सकता
मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, 'किसी व्यक्ति को उसके जेंडर के आधार पर शादी करने से रोका नहीं जा सकता है. ट्रांसजेंडर्स व्यक्तिगत कानूनों सहित मौजूदा कानूनों के तहत शादी करने का अधिकार है. समलैंगिक जोड़े सहित अविवाहित जोड़े मिलकर एक बच्चे को गोद ले सकते हैं.'


'सकरार कमेटी बनाए'
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि समलैंगिकता प्राचीन काल से चली आ रही है. समलैंगिक जोडों को कानूनी अधिकार मिलने चाहिए. सरकार इसके लिए कमिटी बनाए. समलैंगिकों के साथ हुए ऐतिहासिक भेदभाव को दूर करना जाना चाहिए. इनकी शादी को मान्यता देना भी उसमें से एक कदम हो सकता है. समलैंगिकों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ कानून बनना चाहिए.


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