नई दिल्लीः समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और रामपुर से सांसद आजम खान को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने आजम खान के ड्रीम प्रोजेक्ट जौहर यूनिवर्सिटी की 70 हेक्टेयर भूमि पर रामपुर जिला प्रशासन की तरफ से किये गये अधिग्रहण पर रोक लगा दी है.


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2005 में दी गई थी 400 एकड़ जमीन
हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी ट्रस्ट की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई करते हुए ये आदेश दिये है. 2005 में विश्वविद्यालय को रामपुर में 400 एकड़ जमीन दी गई थी. हालांकि, विश्वविद्यालय उन शर्तों का पालन करने में विफल रहा, जिन पर ट्रस्ट को जमीन दी गयी थी. इसलिए राज्य सरकार ने इस जमीन को वापस लेने की कार्यवाही शुरू की थी.


जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सी टी रविकुमार की बेंच ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब भी किया है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान विश्वविद्यालय की ओर से दायर याचिका का विरोध करते हुए एसजी तुषार मेहता ने तर्क दिया कि शिक्षा के लिए आवंटित भूमि का उपयोग अन्य गतिविधियों के लिए किया जा रहा था.


आजम खान का ट्रस्ट करता है विश्वविद्यालय का संचालन
आजम खान के मौलाना मुहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की ओर से ही इस विश्वविद्यालय का संचालन किया जा रहा था. ट्रस्ट विश्वविद्यालय चलाता है और आजम खान इसके अध्यक्ष हैं, जबकि उनकी पत्नी तंजीन फातिमा सचिव हैं. रामपुर के एडीएम प्रशासन ने मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी की 70 हेक्टेयर जमीन को राज्य सरकार में निहित करने का आदेश दिया था.


हाई कोर्ट ने खारिज की थी ट्रस्ट की याचिका
एडीएम के इस आदेश के खिलाफ जौहर ट्रस्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसे हाई कोर्ट 6 सितंबर को जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की एकलपीठ ने खारिज कर दिया. याचिका के हाई कोर्ट से खारिज होने के बाद जिला प्रशासन ने 9 सितंबर 2021 को विश्वविद्यालय की भूमि अधिग्रहित करने की कार्यवाही शुरू की.


हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यूपी सरकार को जमीन वापस लेने का पूरा अधिकार है. संस्था के लिए भूमि 2005 में ट्रस्ट को दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अब हाई कोर्ट के इस आदेश पर रोक लगा दी है.


जमीन और विवाद साथ-साथ चलते रहे
मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी को आजम खान का ड्रीम प्रोजेक्ट माना जाता है, जिसकी कोशिशें वर्ष 2004 में उस समय शुरू हुईं जब यूपी में सपा की सरकार थी. उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के समय आजम खान ने नगर विकास मंत्री रहते हुए सदन में जौहर विश्वविद्यालय का बिल पेश किया गया. बिल को मंजूरी मिलने के बाद इसे राजभवन भेज दिया गया. राजभवन ने इस पर आपत्ति लगाने के बाद फिर से संशोधन के लिए विधेयक लाया गया.


18 सितंबर 2006 को इस विश्विद्यालय का शिलान्यास किया गया. इसके बाद उत्तर प्रदेश में सरकार बदल गई और मायावती मुख्यमंत्री बनीं. मायावती ने मुख्यमंत्री बनते ही विश्वविद्यालय की दीवार पर बुलडोजर चलवा दिया.


2012 में उत्तर प्रदेश में फिर से सपा की सरकार आने के साथ ही जौहर यूनिवर्सिटी को शासन की विधिवत अनुमति मिली और 18 सितंबर 2012 को इस विश्वविद्यालय की शुरुआत हुई.


लेकिन यूपी में भाजपा सरकार आते ही आजम खान की घेराबंदी शुरू हुई तो जौहर यूनिवर्सिटी भी फिर से निशाने पर आ गई. आलियागंज के किसानों ने आरोप लगाया कि जौहर यूनिवर्सिटी के लिए उनकी जमीन पर जबरन कब्जा कर लिया गया है. इसके बाद अजीमनगर थाने में 27 मुकदमे दर्ज किए गए.


जौहर यूनिवर्सिटी के ट्रस्ट पर आरोप है कि शत्रु संपत्ति को अवैध तरीके से कब्जाया गया है, जिसका मुकदमा अजीमनगर थाने में दर्ज है. इसमें आजम खान, उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान और पत्नी तजीन फातिमा भी नामजद आरोपी हैं.


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