नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के संरक्षित वन क्षेत्रों में गतिविधियों और अवैध खनन को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के प्रत्येक संरक्षित वन की सीमा से एक किलोमीटर तक के क्षेत्र का ईको सेंसिटिव जोन (ESZ) रखना अनिवार्य करने का आदेश दिया. साथ ही ESZ क्षेत्र के भीतर किसी भी प्रकार के स्थायी निर्माण की अनुमति नहीं देने के भी आदेश दिए हैं.


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जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की तीन सदस्यीय पीठ ने देश के प्रत्येक राज्य के मुख्य वन संरक्षक को अपने राज्य के ईको सेंसिटिव जोन में मौजूदा विद्यमान संरचनाओं की एक सूची तैयार कर तीन महीने के भीतर कोर्ट के समक्ष पेश करने के आदेश दिए हैं.


खनन की अनुमति न देने का आदेश
पीठ ने इसके साथ ही देशभर के राष्ट्रीय वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यानों के भीतर खनन की अनुमति नहीं देने के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने कहा कि किसी भी राष्ट्रीय वन्यजीव अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान के भीतर खनन की अनुमति नहीं दी जा सकती है. यदि मौजूदा (ESZ) एक किमी बफर जोन से आगे जाता है या यदि कोई वैधानिक साधन उच्च सीमा निर्धारित करता है तो ऐसी विस्तारित सीमा मान्य होगी.


राजस्थान के जमवा रामगढ़ से उठा था मामला
राजस्थान के जमवा रामगढ़ वन्य अभयारण्य को लेकर वर्ष 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल एम्पावर्ड क​मेटी का गठन किया था. 300 किलोमीटर क्षेत्र में फैले जमवा रामगढ़ अभयारण्य को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट इस कमेटी ने 20 नवंबर 2003 को अदालत को सौंपी थी. इस रिपोर्ट में कमेटी ने सरकारी एजेंसियों से मिलीभगत कर निजी खनन करने वालों की तरफ से इस अभारण्य को तबाह करने की भयंकर तस्वीर पेश की थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सूचीबद्ध करते हुए देशभर के वन्य अभयारण्यों व वन संरक्षित क्षेत्रों में अवैध खनन सहित अन्य गतिविधियों को लेकर सुनवाई शुरू की.


कोर्ट ने ESZ को लेकर 9 फरवरी 2011 के दिशानिर्देशों में निषिद्ध और निर्धारित गतिविधियों का सख्ती से पालन करने के निर्देश दिए हैं. साथ ही राजस्थान के जमवा रामगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य के लिए जीवित गतिविधियों के लिए इस सीमा को 500 मीटर तय किया है.


मुख्य वन संरक्षक और गृह सचिव होंगे जिम्मेदार
कोर्ट ने देश के प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में ईको सेंसिटिव जोन के इस्तेमाल की प्रकृति के संबंध में दिशानिर्देशों का पालन कराने के लिए उस राज्य के मुख्य वन संरक्षक और गृह सचिव को जिम्मेदार बनाया है. कोर्ट ने कहा कि ESZ भीतर मौजूदा संरचनाओं और अन्य प्रासंगिक विवरणों की एक सूची बनाने के लिए राज्य व्यवस्था करेंगे और प्रत्येक राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा इसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाएगी. 


कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस व्यवस्था के लिए प्राधिकरण ड्रोन का इस्तेमाल करके उपग्रह इमेजिंग या फोटोग्राफी के लिए किसी भी सरकारी एजेंसी की सहायता लेने का हकदार होगा.


लेकिन कुछ राहत भी
सुप्रीम कोर्ट ने ESZ को लेकर बेहद सख्त आदेश दिये हैं. लेकिन इसके साथ ही कुछ बिंदुओं पर रियायत भी दी है. किसी भी वन्यजीव अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान के एक किलोमीटर के ESZ के भीतर अगर पहले से ही कोई गतिविधि संचालित हो रही है उसके लिए कोर्ट ने कहा है कि 9 फरवरी 2011 के निर्देशों के अनुसार अगर ऐसी गतिविधियां निषिद्ध गतिविधियों के दायरे में नहीं आती हैं तो ऐसी गतिविधियां प्रत्येक राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक की अनुमति से जारी रह सकती हैं और ऐसी स्थिति में ऐसी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार व्यक्ति को छह महीने की अवधि के भीतर आवश्यक अनुमति प्राप्त करनी होगी. ऐसी अनुमति भी तब दी जाएगी जब प्रधान मुख्य वन संरक्षक संतुष्ट हो जाएं कि संबंधित गतिविधियां निषिद्ध सूची में नहीं आती हैं और इस आदेश को वैध तरीके से पारित करने से पहले जारी थीं.


इसके साथ ही कोर्ट ने अत्यधिक जनहित में ESZ की न्यूनतम चौड़ाई को कम करने की रियायत दी है. लेकिन इसके लिए संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश को CEC और MoEF&CC से संपर्क करना होगा. जिसके बाद दोनों निकाय उसके लिए कोर्ट को अपनी अपनी राय या सुझाव देंगे. उन सुझावों के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट आदेश पारित करेगा.


जिन राज्यों या केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों द्वारा राष्ट्रीय वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यानों के लिए ESZ का प्रस्ताव नहीं दिया गया है उन राज्यों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गोवा फाउंडेशन मामले में 4 दिसंबर 2006 को दिये गये 10 किलोमीटर के बफर जोन के आदेश का पालन करना होगा. इसके साथ ही 9 फरवरी 2011 के दिशानिर्देशों को लागू करना होगा.


सीजेआई के समक्ष याचिकाएं रखने के निर्देश
7 जून को सेवानिवृत हो रहे जस्टिस एल नागेश्वर राव ने मामले को बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए इस याचिका और गोवा फाउंडेशन से जुड़ी याचिकाओं को मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना के समक्ष रखने के आदेश दिये हैं. जस्टिस राव ने सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री को आदेश दिये हैं कि वो टी एन गोदावरमन व अन्य और गोवा फाउंडेशन बनाम भारत सरकार दोनों याचिकाओं को एक साथ सुनवाई के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करें.


 



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