नई दिल्ली. देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि बिहार सरकार को जातीय सर्वे के आंकड़े जनता के बीच रखने चाहिए. कोर्ट ने कहा है कि सरकार को इस सवे में सामने आने आए जातिगत विवरण को सार्वजनिक करना चाहिए. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इस सर्वे का डेटा जनता उपलब्ध न कराया जाना चिंता का विषय है. अगर किसी व्यक्ति को इस सर्वे के किसी नतीजे को चुनौती देनी है तो उसके पास डेटा होना चाहिए. 


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बिहार सरकार ने कराया था जातीय सर्वे
दरअसल बिहार की नीतीश सरकार ने राज्य में जातीय सर्वे कराया था. इसी के बाद पहले बिहार फिर पूरे देश में विपक्षी गठबंधन द्वारा जातीय जनगणना की मांग भी तेज हुई और इसे चुनावी मुद्दे के रूप में भी इस्तेमाल किया गया है. हालांकि बिहार सरकार के जातीय सर्वे को चुनौती देने वाली याचिकाएं भी सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं.  



आंशिक रूप से जारी किए गए थे आंकड़े 
दरअसल जातीय सर्वे जारी होने के बाद ही मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच गया था. बता दें कि बिहार के प्रभारी मुख्य सचिव विवेक सिंह ने 2 अक्टूबर 2023 को जातीय सर्वे के आंकड़े आंशिक रूप से जारी किए थे. आंकड़ों से पता चला था कि बिहार में सामान्य वर्ग की आबादी 15 प्रतिशत है वहीं पिछड़ा वर्ग 27 प्रतिशत से अधिक तो वहीं शेड्यूल कास्ट की जनसंख्या 20 प्रतिशत है. 


बीजेपी ने उठाए थे सवाल
बीजेपी ने जातीय सर्वे के आंकड़ों का स्वागत करते हुए यह भी कहा था कि इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं. राज्य के बीजेपी चीफ सम्राट चौधरी ने कहा था- बीजेपी जाति आधारित गणना का स्वागत करती है जिसका आदेश राज्य कैबिनेट ने तब दिया था जब हमारी पार्टी से दो डिप्टी सीएम सहित 16 मंत्री थे. जो आंकड़े सामने आए हैं उनमें से 80 प्रतिशत लोग बीजेपी के समर्थक हैं. सम्राट चौधरी ने यह भी दावा किया था कि राज्य में धानुक जैसे कई अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी) के लोग उनसे शिकायत कर रहे हैं कि उनकी संख्या अनुमान से कम दिखाई गई है.


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