निमिषा उर्फ फातिमा की फिदायीन बनने की दास्तान
संकीर्ण कटटरपंथी सोच जिहादी सोच बन जाती है और इसके ऊपर मजहबी कट्टरपंथ का जामा पहन कर लोग बन जाते हैं आतंकी. ये वही लोग होते हैं जो बाकायदा आतंकी बनने के पहले भी आतंकी थे और ये आतंकी सोच उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा हमेशा से हुआ करती थी. निमिषा से फातिमा बनी केरल की सत्रह साल की लड़की इसी घृणित सोच से उपजी साजिश की ज़िन्दा मिसाल है..
नई दिल्ली. ये कहानी केरल से शुरू होती है. वामपंथियों का ये गढ़ केरल वही प्रदेश है जहां गाय की चौराहे पर ह्त्या करके उसका मांस खा लिया जाता है. हिंदुत्व और मानवता का अपमान करने वाले ये वामपंथी राष्ट्रद्रोह के कामों में भी सबसे आगे हैं और बड़ी बेशर्मी के साथ अफ़ज़ल हम शर्मिन्दा हैं तथा भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाते हैं. ऐसे में यहां अगर जिहादी सोच भी इन्ही लोगों में घुल-मिल कर जहरीली बेल की तरह विकसित हो जाये, तो क्या आश्चर्य है. लव जिहाद की हालिया शिकार निमिषा इसी केरल की रहने वाली थी.
मां बिंदु नहीं समझ पाई - कैसे हुआ ये?
त्रिवेंद्रम में आज भी निमिषा की मां बेचैन है और उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं कि उसकी बेटी आईसआईएस की आतंकी कैसे बन गई. निमिषा की मां बिंदु का सवाल तीन साल पुरानी घटना
याद दिलाता है जब केरल से उनकी बेटी निमीषा और उसके साथ 20 लोग अफगानिस्तान जाकर आतंकी बन गये. भारतवर्ष के सनातनी संस्कारों में क्या ऐसी कमी रह गई थी कि उसकी बेटी ने न केवल धर्म की सीमाएं लांघी बल्कि मानवता का धरातल भी पार कर लिया.
इस्लाम कबूल कराया और बनाया फातिमा
निमिषा को प्रेमपाश में कैद करने के बाद उसको इस्लाम क़ुबूल करने को मजबूर किया गया. आयु कम थी और जीवन का अनुभव भी कम था, शातिर जिहादियों की चालें समझ नहीं पाई मासूम निमिषा. जिस दिन वो अपनी मां का घर छोड़ रही थी उसे पता नहीं था कि उसकी ये यात्रा कहां जा कर खत्म होने वाली है. मुहब्बत के चांद-सितारे दिखा कर कच्ची उम्र की हिन्दू बच्ची को कहां पहुंचाना है और उसका क्या हश्र करना है, वह योजना इन जिहादियों के मन में शुरू से तैयार थी.
ले आये अफगानिस्तान
निमिषा को मुहब्बत की राह में गुमराह करके पहले तो घर से भगाया गया फिर इस्लाम कबूल कराया गया. लेकिन निमिषा को अब तक ज़रा भी इल्म नहीं था कि उसके साथ आगे क्या होने वाला है. निमिषा को लाया गया अफगानिस्तान. मातृभूमि से दूर होना का न सही पर मां से दूर होने का दर्द तो उसके सीने में भी हुआ होगा लेकिन उस दर्द को सुनने वाला वहां कोई नहीं था. जिहादियों के बीच बहुत अकेली थी निमिषा.
निमिषा के किस्से में हैं पांच हिस्से
लव जिहाद की योजना के पांच हिस्से निमिषा के किस्से में ऐसे शामिल हुए कि निमिषा निमिषा न रही. उसकी पूरी ज़िंदगी ही बदल गई. पहला हिस्सा था उसे मुहब्बत के जाल में फांसने का जो कामयाब किया एक मुस्लिम युवक ने. दुनिया की समझ न थी निमिषा को लेकिन शायद उसे लगा कि उसे मुहब्बत की समझ है और वो जो कर रही है, गलत नहीं कर रही है.
दूसरा हिस्सा था घर से भगाने का
मुहब्बत की पट्टी आँखों में बांधें के बाद निमिषा के किस्से के दूसरे हिस्से के मुताबिक़ उसे घर से भगाया गया. जाने कौन कौन से सब्जबाग दिखाए गए थे निमिषा को कि उसने जान से ज्यादा प्यार करने वाली अपनी मां को भी छोड़ दिया, घर भी छोड़ दिया, शहर भी छोड़ दिया. फिर शुरू हुई एक अंधी अंतहीन यात्रा.
तीसरा हिस्सा अफगानिस्तान ले जाने का
इस जहरीले प्लान का तीसरा हिस्सा ऐसा था कि जिससे समझ जाना चाहिए था निमिषा को कि उसने गलत रास्ता चुन लिया है. पर शायद उसके इस मोहभंग का साक्षी कोई न हो सका क्योंकि एक बार देश की सरहद लांघ जाने के बाद निमिषा का खुद अपने ऊपर हर अधिकार समाप्त हो गया था और उसकी हर सांस पर हक था उन लोगों का जिनकी साजिश का शिकार वह हुई थी. सिर्फ एक घर से निकलने का फैसला उसका अपना था उसके बाद त्रिवेंद्रम से अफ़ग़ानिस्तान पहुंचने तक हर फैसला साजिश करने वालों का था और वह उन फैसलों को मानने को मजबूर थी.
चौथा हिस्सा इस्लाम कबूल कराने का
शायद अपनी ज़िंदगी के इस हिस्से के बाद निमिषा को समझ आ गया होगा कि वह किन लोगों के चंगुल में फंस चुकी है. अफ़ग़ानिस्तान में निमिषा को हिन्दू धर्म छोड़ कर मुसलमान बनने पर मजबूर किया गया. उसका नया इस्लामिक नाम रखा गया और निमिषा उस दिन के बाद से समाप्त हो गई क्योंकि उसकी जगह फातिमा ने जन्म ले लिया था. नया मजहब और नया नाम फातिमा उसे कितना पसंद आया ये तो अब उससे मिलने के बाद ही पता चलेगा लेकिन जाहिर है निमिषा मन मसोस कर रह गई क्योंकि उसे पता चल गया कि उसकी जान खतरे में है और अब जीने का एक ही रास्ता है - जो कहा जाए वो करती रहे.
पांचवां सबसे काला हिस्सा है आतंकी बनाने का
इस पांचवे हिस्से और निमिषा की ज़िंदगी के चौथे हिस्से के बीच की कहानी इस तरह समझी जा सकती है कि वो कितने बलात्कारों के दौर से गुजरी होगी, शायद उसे उनकी गिनती भी याद नहीं होगी. कितनी बेरहमी उसके साथ हुई होगी, बलात्कार से इंकार के जवाब में किस क्रूरता से उसकी पिटाई होती होगी - ये सिर्फ वही बता सकती है. अब उसे अच्छी तरह समझ आ गया था कि यहां से जिंदगी में कोई यू-टर्न नहीं है. लेकिन आगे के रास्तों में कितने दर्द उसका इंतज़ार कर रहे हैं, इसकी कल्पना भी उसे रुला देती होगी. यहां से उसकी जिंदगी के किस्से में साजिश के हिस्से का आखिरी सफर शुरू हुआ.
आईएसआईएस की आतंकी बनी निमिषा उर्फ़ फातिमा
निमिषा को आज उसकी मां याद करके अपनी आँखों में आने वाले आंसू पोंछना भूल जाती है. वो कहती है कि मेरी बेटी आतंकी नहीं बन सकती. शायद उसका ये ख़याल सच है क्योंकि निमिषा आतंकी नहीं बनी, उसे आतंकी उसी तरह बनाया गया जिस तरफ तैमूरलंग, चंगेज़ खान और नादिरशाह ने हिन्दुस्तान में आ कर तलवार की धार पर हिन्दुस्तान के हिन्दुओं को मुसलमान बनाया था. अफगानिस्तान में निमिषा उर्फ़ फातिमा को आईएसआईएस में शामिल किया गया. आईएसआईएस में शामिल सभी लड़कियों और औरतों को मूल रूप से आईएसआईएस के आतंकियों की वासना की भूख मिटाने के इस्तेमाल में लाया जाता है. इसलिए ही आईएसआईएस की ज्यादातर महिलायें गैर-मुस्लिम होती हैं जो अलग अलग तरीकों से अलग अलग देशों से लाइ जाती हैं और उन्हें मुसलमान बना कर आईएसआईएस के सामूहिक हरम में रख दिया जाता है जहां उनका एक ही काम होता है बलात्कार का शिकार होना. और आईएसआईएस के आतंकियों का बलात्कार दुनिया के किसी भी बलात्कार से अधिक क्रूर होता है क्योंकि जिहादी मानसिकता के शिकार ये दरिंदे बलात्कार करते समय ये याद रखते हैं कि जिनका वे बलात्कार कर रहे हैं वो गैर-मुस्लिम औरते हैं.
जेल पहुंची निमिषा उर्फ फातिमा
निमिषा की ज़िंदगी में फिर आया ज़िंदगी का वो मुकाम जिसे जेल कहा जाता है. कुछ ऐसा हुआ कि शायद ऊपर वाले की मेहर नज़र हो गई निमिषा पर और अफगानिस्तान में अमरीकी सैनिकों की आईएसआईएस आतंकियों पर हुई कार्रवाई के दौरान सैकड़ों आतंकी 72 हूरों के पास पहुंचे और जो गैर-मुस्लिम औरतें इन हवस के भूखे भेड़ियों के चंगुल में थीं गिरफ्तार कर ली गईं क्योंकि उन पर भी आईएसआईएस के आतंकी होने का टैग लग चुका था. इसके बाद जेल की ज़िंदगी का सफर शुरू हुआ निमिषा का. सामान्य अपराधी सामान्य जेलों में सामान्य कैदियों की ज़िंदगी जीते हैं, लेकिन आतंकियों की जेल और उनकी सुरक्षा बड़ी कड़ी होती है जहां उनकी ज़िंदगी भी रोज़ एक दर्द की दास्ताँ होती है अगर वे आतंकी न हों और आतंकी मान कर जेलबंद किये गए हों. निमिषा की ज़िंदगी के दर्द का शायद यही पन्ना बाकी रह गया था.
भारत पहुंची निमिषा की खबर
अचानक भारत खबर आई कि धर्म परिवर्तन के बाद आईएसआईएस में शामिल हुए भारत के कुछ लोग काबुल की जेल में हैं. निमिषा की मां ने ईश्वर का बहुत धन्यवाद किया और अपने स्तर पर जो जो प्रयास हो सकते थे किये कि किसी तरह भारत सरकार उसकी बेटी को भारत ले आये. हालांकि भारत सरकार ने इसके लिए कोई इंकार भी नहीं किया है किन्तु सुरक्षा एजेंसियां से जुड़े कई अधिकारी इन आईएसआईएस के आतंकियों को भारत लाये जाने के पक्ष में नहीं हैं . उनका मानना है कि इन्हें वापस लाने से भारत की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है.
मां के पास निमिषा नहीं है, उसकी यादें हैं
त्रिवेंद्रम में अब अपनी बेटी की घर वापसी के इंतज़ार में सूनी आँखों से बाहर की तरफ देखती उसकी मां दिन रात दुआ कर रही है कि बिटिया जल्दी घर आये. घर में चारों तरफ निमीषा की यादें बिखरी हुई हैं और उसकी तस्वीरें उसकी मां के जीने का इकलौता सहारा हैं. डॉक्टर बनने की चाह रखने वाली उसकी बेटी आज आतंकी के नाम से जानी जा रही है, ये दर्द भी उसकी मां के सीने में तड़पता है. बिंदु चाहती है कि बेटी वापस आये और सबको बताये कि वो आतंकी नहीं बनना चाहती थी, उसे मजबूर करके बनाया गया.
आखिरी बार जो बात हुई मां की निमिषा से
निमिषा की मां बिंदू बताती हैं चार साल पहले 2016 में एक दिन निमीषा ने उनको फ़ोन किया था. उसने बताया कि वो श्रीलंका जा रही है. लेकिन शायद यह फ़ोन निमिषा को ढूंढने की कोशिशों में लगी उसकी मां को गुमराह कराने के लिए किया गया था क्योंकि कुछ दिन बाद पता चला कि केरल से कुल 21 लोग गायब है और वे सभी अफ़ग़ानिस्तान में आईएसआईएस के आतंकी बन चुके हैं. इन 21 लोगों में बिंदु की बेटी निमिषा के होने की भी जानकारी मिली थी.
सात माह की बेटी थी निमिषा के पेट में
निमिषा ने जिस दौरान घर से भाग कर अफगानिस्तान जाने का फैसला किया था उस समय उसके पेट में 7 महीने की बच्ची थी जो अब तीन साल की हो चुकी है और वह भी अपनी मां 'फातिमा' के साथ अफगानिस्तान की जेल में अपना नन्हा बचपन गुजारने को मजबूर है.
प्यार किया था बेक्सन से जो निकला मुहम्मद ईसा
मां ने लाखों रूपये खर्च कर निमीषा की डॉक्टरी की पढ़ाई का प्रबंध किया था. मेडिकल की पढ़ाई के दौरान बिंदु को ज़रा भी अनुमान न लग सका कि उसकी बेटी का ब्रेनवॉश किया जा रहा है. उन दिनों ही निमीषा ने एक दिन अचानक मां से कहा कि उसने बेक्सन उर्फ मुहम्मद ईसा नाम के लड़के से शादी कर ली है. निमिषा को बताया गया था कि बेक्सन ने ईसाई धर्म को छोड़कर इस्लाम कबूल किया था और अब निमिषा का बॉयफ्रेंड मिस्टर बैक्सन से मुहम्मद ईसा बन गया था. इस बात से जाहिर है कि निमिषा को फंसाने के लिए मुहम्मद ईसा ने ही अपना नकली नाम बैक्सन रखा हुआ था.
खतरनाक साजिश का नाम है लव जिहाद
लव जिहाद का एक नाम और है - रोमियो जिहाद. यह इस्लामिक उग्रवादी संगठनों द्वारा फैलाया गया वह षड्यंत्र है जिसके तहत युवा मुस्लिम लड़के और पुरुष गैर-मुस्लिम लड़कियों के साथ प्यार का ढोंग करके उनका धर्म-परिवर्तन करते हैं. यह शब्द भारत सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है किन्तु भारत के बाहर भी यूके आदि देशों में इस तरह की गतिविधियां देखने में आई हैं. 2014 में केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने विधानसभा में जानकारी दी थी कि 2667 युवतियां 2006 से लेकर अब तक प्रेम विवाह के बाद इस्लाम कबूल कर चुकी हैं. वहीं केरल कैथोलिक बिशप काउंसिल ने इससे पहले 2009 में ये आंकड़ा 4500 बताया था. एक दूसरी संस्था ने कर्नाटक में 30 हजार लड़कियों के लव जिहाद की शिकार होने की बात का खुलासा किया था.