रांची: होली देश में कई जगहों पर अलग-अलग तरह से मनाई जाती है. काशी में चिता भस्म होली, हरियाणा में देवर-भाभी होली, बज्र में लठमार होली, वृंदावन में फूलों की होली, उत्तराखंड में कुमाउनी होली, बिहार में फगुआ होली खेली जाती है. पर आपको पता है कि झारखंड के एक गांव में पत्थर मारकर होली खेली जाती है.  


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लोहरदगा जिला अंतर्गत बरही चटकपुर गांव में सालों पुरानी परंपरा के अनुसार ऐसी होली मनाई जा रही है जिसकी चर्चा अब दूर-दूर तक होती है. परंपरा के अनुसार गांव के मैदान में गाड़े गए एक विशेष खंभे को छूने-उखाड़ने की होड़ के बीच मिट्टी के ढेलों की बारिश की जाती है.


आखिर कैसे मनाई जाती है होली
परंपरा यह है कि होलिका दहन के दिन के बाद गांव के पुजारी मैदान में खंभा गाड़ देते हैं और अगले दिन इसे उखाड़ने और ढेला मारने के उपक्रम में भाग लेने के लिए गांव के तमाम लोग इकट्ठा होते हैं.



क्या है मान्यता
मान्यता यह है कि कि जो लोग पत्थरों से चोट खाने का डर छोड़कर खूंटा उखाड़ने बढ़ते हैं, उन्हें सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है. ये लोग सत्य के मार्ग पर चलने वाले माने जाते हैं. खूंटा उखाड़ने और ढेला फेंकने की इस परंपरा के पीछे कोई रंजिश नहीं होती, बल्कि लोग खेल की तरह भाईचारा की भावना के साथ इस परंपरा का निर्वाह करते हैं.


क्या कहते हैं गांव के लोग
गांव वालों का कहना है कि इस पत्थर मार होली में आज तक कोई गंभीर रूप से जख्मी नहीं हुआ. इस खेल में गांव के मुस्लिम भी भाग लेते हैं. ढेला मार होली को देखने के लिए दूसरे जिलों के लोग भी बड़ी संख्या में पहुंचने लगे हैं. लोहरदगा के एक बुजुर्ग मनोरंजन प्रसाद बताते हैं कि यह परंपरा सैकड़ों वर्षो से चली आ रही है. वह बताते हैं कि इस परंपरा की शुरूआत होली पर गांव आने वाले दामादों से चुहलबाजी के तौर पर शुरू हुई थी. लोग दामादों को खंभा उखाड़ने को कहते थे. मजाक के तौर पर उनपर ढेला फेंका जाता था. बाद में तमाम लोग इस खेल का हिस्सा बन गए.

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