UP Election 2022: आखिर अखिलेश ने बसपा और कांग्रेस से क्यों बना ली है दूरी?
UP Election 2022: अखिलेश का कहना है अगर छोटे दलों को साथ लूंगा तो उन्हें सीटें कम देनी पड़ेंगी, बड़े दल सीटें ज़्यादा मांगते हैं और हारते ज्यादा हैं. छोटे दलों से गठबंधन कर अखिलेश यादव बड़ी जीत का दावा कर रहे हैं.क्या यह दावा हकीकत बनेगा?
लखनऊः UP Election 2022: उत्तर प्रदेश की सियासत में 90 के दशक से अपना राजनीतिक वर्चस्व कायम करने वाली समाजवादी पार्टी 2022 के महासंग्राम के लिए फिर से तैयार है. 9 साल पहले बसपा को सत्ता से हटा कर पार्टी ने जिस तरह धमाकेदार वापसी की थी, ठीक उसी तरह इस बार भी सपा लखनऊ की रेस के लिए जोर लगा रही है.
सपा को अपनी साइकिल पर पूरा भरोसा है जिसके जरिए वो सत्ता की दूरी नाप लेना चाहती है, लेकिन अखिलेश यादव के लिए क्या ये 2012 की तरह आसान होगा, आज की तारीख में क्या है सपा की चुनौतियां और उससे निपटने की रणनीति, आइए समझने की कोशिश करते हैं
'बाइस में बाइसकिल' नाप लेगी सत्ता की दूरी ?
यूपी की 2022 की रेस के लिए समाजवादी पार्टी ने फिर से अपनी साइकिल की चेन कस ली है. सपा ने 2022 के लिए नारा दिया है 'बाइस में बाइसकिल'. 9 साल पहले 2012 में अखिलेश यादव ने साइकिल यात्रा के जरिए ही बसपा को सत्ता से बेदखल कर लखनऊ की दूरी तय की थी.
उस वक्त 38 साल के अखिलेश यूपी के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने थे. अखिलेश के नेतृत्व में पार्टी ने 224 सीटें हासिल की थी.
क्या सोचती है सपा?
बाइस में बाइसकिल' का नारा अखिलेश ने 1 साल पहले ही दिया था, लेकिन साइकिल की रफ्तार धीमी न हो इसके लिए वह चुनाव के 6 महीने पहले फिर से कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए इसकी याद दिला रहे हैं. हाल ही में अखिलेश यादव ने ट्वीट किया था आज 22 है. ‘बाइस में बाइसिकल’ की ओर बस 6 महीने और.
आज से भाजपा की संवेदनहीन सरकार की उल्टी गिनती शुरू ". 2017 में अखिलेश यादव का नारा था 'काम बोलता है' जिसे जनता ने खारिज कर दिया था. सूबे की भाजपा सरकार पर हमलावर अखिलेश यादव को लगता है कि पार्टी के सिम्बल साइकिल का करिश्मा 2012 की तरह एक बार फिर से चल जाएगा और उन्हें सत्ता तक पहुंचाएगा.
बुआ-भतीजा फिर से एक दूसरे के खिलाफ
2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में एक चौंकाने वाला राजनीतिक प्रयोग देखने को मिला था, जब एक दूसरे की धुर विरोधी सपा और बसपा एक साथ चुनावी मैदान में उतरी थी. भाजपा को रोकने के लिए 1993 के करीब 25 साल बाद मुलायम और मायावती एक साथ आए थे. हालांकि यह राजनीतिक प्रयोग सफल नहीं रहा.
बसपा कुल 10 सीटों पर जीत हासिल कर पाई, वहीं सपा की झोली में काफी मशक्क़त के बाद पांच सीटें ही आईं. मायावती के साथ गठबंधन का अखिलेश का अनुभव अच्छा नहीं रहा. लोकसभा के नतीजों के कुछ दिन बाद ही गठबंधन टूट गया. 2022 के चुनाव में बुआ-भतीजे एक साथ नहीं बल्कि एक-दूसरे के खिलाफ चुनावी ताल ठोक रहे हैं.
2017 के बाद अब नहीं चाहिए हाथ का साथ
2017 में सत्ता से बेदखल होने के बाद अखिलेश यादव ने गठबंधन को लेकर कई राजनीतिक प्रयोग किए थे, लेकिन कोई भी आइडिया जमा नहीं. 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती से गठबंधन किया उससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से हाथ मिलाया, लेकिन साइकिल को हाथ का साथ भी रफ्तार नहीं दे पाया बल्कि पार्टी को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा. 2012 में 224 सीट जीतने वाली सपा 2017 के चुनाव में महज 47 सीटों पर सिमट गई.
छोटे दलों के साथ मिल कर 350 का टारगेट
2017 और 2019 के गठबंधन का नतीजा देखने के बाद सपा ने बड़े दलों के साथ चुनाव लड़ने से परहेज कर लिया है. अखिलेश यादव का कहना है कि बड़े दलों के साथ गठबंधन का हमारा अनुभव अच्छा नहीं रहा है. इसलिए हम बड़े दलों के साथ गठबंधन नहीं करेंगे, बल्कि छोटे दलों के साथ गठबंधन को वरीयता देंगे.
अखिलेश का कहना है अगर छोटे दलों को साथ लूंगा तो उन्हें सीटें कम देनी पड़ेंगी, बड़े दल सीटें ज़्यादा मांगते हैं और हारते ज्यादा हैं. छोटे दलों से गठबंधन कर अखिलेश यादव बड़ी जीत का दावा कर रहे हैं. उनका दावा है कि सपा गठबंधन के सहयोगियों के साथ 350 सीटें जीतने जा रही है. अब यह दावा हकीकत में कितना बदल पाएगा, देखते हैं 2022 क्या गुल खिलाने वाला है.
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