नई दिल्लीः उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने मंगलवार 6 फरवरी को यूनिफॉर्म सिविल कोड से जुड़ा विधेयक पेश कर दिया है. बुधवार 7 फरवरी से विधानसभा में इस बिल पर चर्चा शुरू हो रही है. कई लोग इस बिल के समर्थन में हैं, तो कई इस बिल का विरोध कर रहे हैं. UCC का विरोध करते हुए जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद का कहना है कि मुसलमान ऐसे किसी भी कानून को स्वीकार नहीं करेगा, जो शरीयत के खिलाफ हो. 


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'आदिवासी समुदाय को UCC से क्यों रखा अलग'
जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि अगर आदिवासी समुदाय को UCC कानून से अलग रखा जा सकता है, तो फिर मुसलमानों को भी इस कानून के दायरे से दूर रखना चाहिए. इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमान ऐसे किसी भी कानून को स्वीकार नहीं करेगा, जो शरीयत के खिलाफ हो. मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन वह अपने मजहब और शरीयत से समझौता नहीं कर सकता है. 


'UCC को लेकर नागरिकों के बीच अंतर क्यों'
मदनी ने आगे कहा कि अगर संविधान की धारा के तरह के आदिवासी समुदाय को UCC से दूर रखा जा सकता है, तो फिर नागरिकों के मौलिक अधिकारों को मान्यता देते हुए संविधान की धारा 25 और 26 के तहत मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता क्यों नहीं दी जा सकती है. संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी है. UCC हमारे मौलिक अधिकारों को निरस्त कर रही है. अगर यह समान नागरिक संहिता है, तो इसे सभी लोगों पर समान रूप से लागू होना चाहिए. इसको लेकर नागरिकों के बीच अंतर क्यों है. 


'UCC के हर पहलुओं की करेंगे समीक्षा'
मदनी ने आगे कहा कि हमारी कानूनी टीम UCC के हर पहलुओं की समीक्षा करेगी. इसके बाद हम आगे की कानूनी कार्रवाई पर निर्णय लेंगे. यहां सवाल मुसलमानों के पर्सनल लॉ का नहीं है, बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान को अक्षुण्ण रखने का है. 


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