नई दिल्ली: Bilkis Bano Case Story: 03 मार्च 2002, गुजरात में दंगे भड़के हुए हैं. दो धर्मों के लोग एक-दूसरे के लोगों का कत्लेआम कर रहे हैं. इस बीच एक 5 महीने की गर्भवती लड़की अपनी साढ़े तीन साल की बेटी और परिवार के 15 लोगों के साथ छप्परवाड़ गांव पहुंची. इस गर्भवती लड़की की उम्र 21 साल थी. पूरा परिवार यहां खेतों में छिप गया. लेकिन कुछ ही देर में उन्हें किसी ने देख लिया. इसके बाद करीब 30 लोगों ने उन पर लाठियां बरसानी शुरू कर दी. फिर घर की 4 महिलाओं का रेप किया. क्या मां, क्या बेटी, कुछ नहीं देखा. 5 माह की गर्भवती को भी नहीं बख्शा. न ही उसकी चीखती-बिलखती मां पर रहम खाया. साढ़े तीन साल की बेटी समेत 7 लोगों को घर के बाकी सदस्यों के सामने मौत के घाट उतार दिया. गर्भवती महिला का नाम 'बिलकिस बानो' है.


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सरकार ने दोषियों को रिहा किया था
इस घटना के 10 साल बाद यानी साल 2022 में 15 अगस्त के दिन गुजरात की भाजपा सरकार ने बिलकिस से रेप करने वाले 11 दोषियों को रिहा कर दिया. रिहाई गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत हुई. जब कोर्ट ने रिहाई का कारण पूछा तो सरकार ने कहा कि इन्होंने सुधारात्मक सिद्धांतों का पालन किया है, इस कारण से इन्हें रिहा कर दिया गया. जबकि साल 2008 में मुंबई में की एक विशेष अदालत ने 11 दोषियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी, जबकि 7 दोषियों को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया. इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस को सही ठहराया था.


महाराष्ट्र कैसे पहुंचा बिलकिस बानो केस?
अब सवाल ये उठता है कि गुजरात का मामला महाराष्ट्र कैसे गया? दरअसल, बिलकिस बानो को लगातार जान से मारने की धमकियां मिलती रहीं. दो साल के भीतर उसने 20 बार अपना घर बदला. इसके बाद बिलकिस ने केस को गुजरात से बाहर शिफ़्ट करने की अपील की. इस कारण से ये मामला महाराष्ट्र में गया. बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के बाद बिलकिस सहित देश की तमाम बेटियों ने राहत की सांस जरूर ली होगी. लेकिन गुजरात की भाजपा सरकार के फैसले ने हर किसी को चौंका दिया. बिलकिस एक बार फिर कानूनी लड़ाई के खड़ी हुई. सुप्रीम कोर्ट में दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिका दायर की. 


'पीड़िता के दर्द का एहसास होना चाहिए'
8 जनवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा सजा इसलिए दी जाती है कि भविष्य में अपराध रुके. इससे अपराधी को सुधरने का मौका दिया जाता है. लेकिन पीड़ित की तकलीफ का एहसास होना चाहिए. लिहाजा दोषियों की रिहाई रद्द की जाती है. कोर्ट ने गुजरात सरकार का फैसला पलट दिया और पीड़िता की याचिका को सुनवाई के योग्य माना.


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