क्या है दल बदल कानून जिसकी वजह से अकेले पड़ गए हैं चिराग पासवान
चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया, जिन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान बगावत कर दी थी.
पटना: बिहार की राजनीति में अचानक उथल पुथल बढ़ गया है. लोक जनशक्ति पार्टी में अंदरूनी घमासान चरम पर पहुंच गया है. चिराग पासवान की पार्टी के 5 सांसदों ने उनके खिलाफ बिगुल फूंक दिया है और वे अपनी ही पार्टी में पूरी तरह अलग थलग पड़ गए हैं.
चिराग पासवान के खिलाफ हो गया तख्तापलट
लोकसभा चुनाव 2019 में LJP ने भाजपा और जदयू की मदद से मोदी लहर में छह सीटें जीती थीं. इनमें से पांच सांसदों पशुपति कुमार पारस, चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा देवी, चंदन सिंह और प्रिंस राज ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को सभी पदों से हटा दिया. इन सांसदों ने चिराग पासवान को ही पार्टी से ही निष्कासित कर दिया.
इसके बाद चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस को अपना नेता चुन लिया, जिन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान बगावत कर दी थी. पारस को राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ-साथ संसदीय दल का नेता भी बना दिया गया.
जानिये क्या होता है दल बदल कानून
दल बदल कानून कहता है कि अगर किसी भी राजनीतिक दल के दो तिहाई से अधिक लोकसभा या विधानसभा सदस्य पार्टी से बगावत करके अलग गुट बना लेते हैं तो उनकी सदस्य रद्द नहीं की जाती. अर्थात दो तिहाई से ज्यादा सांसद या विधायक पार्टी नेतृत्व से नाराज होकर जो भी निर्णय लेते हैं वो माना जायेगा और उन्हें ही पार्टी का औपचारिक मुखिया माना जाएगा.
अगर कोई एक सांसद या विधायक पार्टी छोड़ता है, सदस्यता से इस्तीफा देता है या किसी दूसरी पार्टी में शामिल होता है और वर्तमान पार्टी के खिलाफ काम करता है तो पार्टी अध्यक्ष और सदन सचेतक (Chief Whip) की अनुशंसा पर सभापति उसकी सदस्यता रद्द कर सकते हैं.
यदि बगावत करने वाले विधायक या सांसदों की संख्या दो तिहाई से अधिक है तो उनकी सदस्यता नहीं जाएगी और उनके गुट को ही मुख्य पार्टी माना जायेगा.
इस हिसाब से चिराग पासवान की नैया डूबनी तय है क्योंकि LJP के कुल 6 सांसद हैं और 5 उनके खिलाफ हैं जो दो तिहाई से अधिक हैं. इसीलिए दल बदल कानून के सहारे भी चिराग पासवान बागी सांसदों का कुछ नहीं कर सकते.
दलबदल कानून का इतिहास
साल 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से देश में ‘दल-बदल विरोधी कानून’ पारित किया गया. साथ ही संविधान की दसवीं अनुसूची जिसमें दल-बदल विरोधी कानून शामिल है को संशोधन के माध्यम से भारतीय से संविधान जोड़ा गया.
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दल-बदल कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को निम्नलिखित आधार पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है-
एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है.
कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.
किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है.
कोई सदस्य स्वयं को सदन में वोटिंग से खुद को अलग रखता है.
छह महीने की समाप्ति के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है.
ऐसे में नही लागू होगा दलबदल कानून
दल-बदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है बशर्ते कि उसके कम-से-कम दो-तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों. ऐसे में न तो दल-बदल रहे सदस्यों पर कानून लागू होगा और न ही राजनीतिक दल पर.
गौरतलब है कि दलबदल कानून के मुताबिक सदन के अध्यक्ष के पास सदस्यों को अयोग्य करार देने संबंधी निर्णय लेने की शक्ति है.
यदि सदन के अध्यक्ष के दल से संबंधित कोई शिकायत प्राप्त होती है तो सदन द्वारा चुने गए किसी अन्य सदस्य को इस संबंध में निर्णय लेने का अधिकार है.
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