नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद नीरज डांगी ने बुधवार को राज्यसभा में 'गूगल टैक्स' का मुद्दा उठाया और विदेशी इंटरनेट कंपनियों पर प्रस्तावित कर की कम दर होने पर चिंता जतायी.


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डांगी ने वित्त विधेयक, 2021 पर चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि संभव है कि विदेशी इंटरनेट कंपनियां प्रस्तावित कर के कारण भारतीय इकाइयों से अपनी आय का खुलासा नहीं करें.


उन्होंने कहा कि इससे भविष्य में तीन समस्याएं पैदा हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि संभव है कि इस कर के लागू होने के कारण विदेशी कंपनियां अपने कारोबार के आंकड़ों को साझा नहीं करें.


इसके अलावा प्रस्तावित कर की दर भारतीय कारोबारियों की आय पर लगने वाले कर से कम है. उन्होंने कहा कि इससे भारत में प्रौद्योगिकी स्टार्ट-अप के कारेाबार पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है. 


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क्या है गूगल टैक्स?


भारत सरकार मे 1 जून 2016 को नया प्रत्यक्षकर लागू किया था जिसे इक्वलाइजेशन लेवी कहते हैं. इस टैक्स को प्रचलित रूप में 'गूगल टैक्स' का नाम दिया गया है.


वर्तमान में यह 2 प्रतिशत की दर से लिया जाता है. इसके तहत भारत के कारोबारियों द्वारा विदेशी ऑनलाइन कंपनियों/ ई कॉमर्स कंपनियों से डिजिटल सेवा या उत्पाद की खरीदारी पर वसूला जाता है.



यह लेवी सिर्फ बिजनेस टु बिजनेस यानी B2B ट्रांजेक्शंस पर ही लगता है. ऐसा भारत की ई कॉमर्स कंपनियों और स्टार्टअप कंपनियों को विदेशी कंपनियों के मुकाबले में बराबरी का मैदान देने के लिए किया गया था. 


भारत दुनिया में इस तरह का टैक्स वसूलने वाला पहला देश बना था.


भारत सरकार ने हाल ही में स्पष्ट किया है कि अलीबाबा, अमेजन और नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियों को गूगल टैक्स तब तक नहीं देना होगा जब तक कि वस्तु और सेवा विदेशी कंपनी के भारत में स्थित उनके स्थायी व्यापार संस्थान द्वारा दी जा रही हैं.


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ये बात साल 2021-22 के लिए पेश किए बजट के संदर्भ में कही है.


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