राजस्थान में खत्म हुआ `मैजिक शो`, अब कहां `जादू` दिखाएंगे अशोक गहलोत?
Future of Ashok Gehlot: सियासी हलकों में चुनाव से पहले ये चर्चा थी कि यदि अशोक गहलोत सरकार रिपीट नहीं करवा पाते हैं, तो उनकी सियासी पारी समाप्त हो जाएगी. लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं लग रहा. खुद गहलोत भी पार्टी की हार के बाद कह चुके हैं कि मैं जनता की सेवा करता रहूंगा.
नई दिल्ली: Future of Ashok Gehlot: राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद कई नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर चर्चा होने लगी है. इसमें सबसे पहला नाम पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का है. सियासत के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उनकी सरकार के द्वारा शुरू की गई 'सोशल सिक्योरिटी' की स्कीम्स ने पूरे देश का ध्यान खींचा. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस बार कांग्रेस की सम्मानजनक हार हुई. जो पार्टी पहले 21 और 56 सीटों पर सिमट चुकी है, उसे गहलोत के 'जादू' ने इस बार 69 सीटें दिला दी हैं. लेकिन प्रदेश में कांग्रेस की हार के बाद गहलोत का भविष्य क्या होगा, यह जानना दिलचस्प होगा.
क्या गहलोत लेंगे सन्यास?
सियासी हलकों में चुनाव से पहले ये चर्चा थी कि यदि अशोक गहलोत सरकार रिपीट नहीं करवा पाते हैं, तो उनकी सियासी पारी समाप्त हो जाएगी. लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं लग रहा. खुद गहलोत भी पार्टी की हार के बाद कह चुके हैं कि मैं जनता की सेवा करता रहूंगा. इससे साफ है कि वे अपनी सियासत जारी रखेंगे. गहलोत शारीरिक और मानसिक तौर पर भी पूरे स्वस्थ हैं, ऐसे में सन्यास लेने की संभावना न के बराबर है.
क्या नेता प्रतिपक्ष बनेंगे गहलोत?
विपक्ष में बैठने वाली पार्टी के लिए नेता प्रतिपक्ष एक अहम पद होता है. इसके लिए बड़े स्तर पर लॉबिंग भी होती है. लेकिन गहलोत की दिलचस्पी इस पद में कभी नहीं रही. साल 2003 में कांग्रेस की हार के बाद बीडी कल्ला को नेता प्रतिपक्ष बनाता गया. 2013 में कांग्रेस हारी तो रामेश्वर डूडी को यह पद मिला. इस बार भी गहलोत की दिलचस्पी प्रतिपक्ष का नेता बनने में बिलकुल नहीं है. हालांकि, वे चाहेंगे कि उनके किसी समर्थक को यह पद मिले.
केंद्र में जाएंगे गहलोत?
कांग्रेस जब-जब राजस्थान में चुनाव हारती है, गहलोत 5 साल के लिए केंद्र में चले जाते हैं. उन्हें वहां महासचिव का पद दे दिया जाता है और किसी राज्य के प्रभारी बना दिए जाते हैं. इस दौरान वे गांधी परिवार से भी करीबी बढ़ा लेते हैं, चुनाव आते ही राजस्थान में सक्रिय हो जाते हैं और पार्टी के जीतने के बाद सीएम पद की शपथ ले लेते हैं. इस बार भी पूरी संभावना है कि गहलोत केंद्र में चले जाएं. लेकिन फिर से प्रदेश में लौटना उनके लिए आसान नहीं होगा. मुमकिन है कि पार्टी हाईकमान उन्हें केंद्र में रहने का आदेश ही दे.
इस बार परिस्थिति पहले से अलग
दरअसल, 25 सितंबर, 2022 को राजस्थान में विधायक दल की बैठक होनी थी, सचिन पायलट के नाम का सीएम के तौर पर ऐलान होना था. गहलोत की कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी करीब-करीब तय थी. लेकिन विधायकों की बगावत के बाद ऐसा नहीं हो पाया. आलाकमान गहलोत से नाराज हुआ, लेकिन गहलोत ने माफी मांग ली और बात खत्म कर दी गई. हालांकि, टिकट देने के समय गहलोत और राहुल गांधी के बीच विवाद की खबरें आईं. कइयों की टिकट पर गहलोत ने वीटो लगाया, फिर भी सरकार रिपीट नहीं हो पाई. पहली बार केंद्रीय नेतृत्व में गहलोत की छवि खराब हुई है, वे पहले की तरह कम्फर्टबल पोजीशन में नहीं रहेंगे.
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