अनिल देशमुख पर चिट्ठी बम फोड़ने वाले परमबीर सिंह खुद कितने साफ?
2009 में 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले के तुरंत बाद हमले के दौरान कर्तव्य की लापरवाही के आरोप में परमबीर सिंह और तीन अन्य अतिरिक्त पुलिस कमिश्नरों के खिलाफ याचिका दायर की गई थी.
मुंबईः पूर्व मुंबई पुलिस सीपी की चिट्ठी ने महाराष्ट्र की सत्ता में भूचाल ला दिया है. इसके बाद परमबीर सिंह भी ऐसा नाम बन गए हैं, जिनके बारे में अधिक से अधिक जानकारियां लेने की कोशिश लोग कर रहे हैं. इसी के साथ वे सारे पुराने मामले एक बार फिर सिर उठाने लगे हैं जो कभी सीधे परमबीर सिंह जुड़े थे और यह सवाल भी तैरने लगा है कि आखिर परमबीर सिंह जो इतना बड़ा खुलासा कर रहे हैं वह खुद कितने पाक साफ हैं? खैर, यह एक सवाल कम जांच का विषय अधिक है.
लेकिन, मुंबई पुलिस में सुपर कॉप से लेकर पद से हटाए गए मुंबई पुलिस कमिश्नर बनने तक का परमबीर सिंह का सफर कैसा रहा, डालते हैं एक नजर-
साध्वी प्रज्ञा ने लगाए थे आरोप
परमबीर सिंह की बात आती है तो याद आती हैं साध्वी प्रज्ञा ठाकुर. साध्वी प्रज्ञा अब सांसद हैं. उन्हें 2008 में मालेगांव बम धमाके के केस में पकड़ा गया था. उन्हें गिरफ्तार करने वाले परमबीर सिंह ही थे.
तब प्रज्ञा ने परमबीर सिंह के साथ ही साथ कई अफसरों पर प्रताड़ना के आरोप लगाए थे. अभी हाल ही में 2020 में भी साध्वी प्रज्ञा ने कहा था कि वर्दी पहनकर गैरकानूनी काम करने वाले पद से हटें. उनका सीधा इशारा परमबीर सिंह पर ही था.
पूर्व पुलिस कमिश्नर हसन गफूर ने लगाए थे आरोप
26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों के दौरान मुंबई के पुलिस आयुक्त रहे हसन गफूर ने परम बीर सिंह सहित वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया कि उन्होंने आतंकवादियों से मुकाबला करने से इनकार कर दिया था. गफूर ने कहा था कि कानून-व्यवस्था के संयुक्त आयुक्त केएल प्रसाद, अपराध शाखा के अतिरिक्त आयुक्त देवेन भारती, दक्षिणी क्षेत्र के अतिरिक्त आयुक्त के वेंकटेशम और आतंकवाद-रोधी दस्ते के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह मुंबई आतंकी हमले के दौरान अपनी ड्यूटी निभाने में विफल रहे थे.
परमबीर के खिलाफ दायर हुई थी याचिका
2009 में 26/11 मुंबई आतंकवादी हमले के तुरंत बाद हमले के दौरान कर्तव्य की लापरवाही के आरोप में परमबीर सिंह और तीन अन्य अतिरिक्त पुलिस कमिश्नरों के खिलाफ याचिका दायर की गई थी.
एक जनहित याचिका (PIL) में इन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की गई थी. याचिका में आरोप लगाया गया था कि परमबीर सिंह जैसे अधिकारी तत्कालीन पुलिस कमिश्नर के आदेशों का पालन करने में विफल रहे थे.
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एल्गार परिषद मामले में दामन पर लगे दाग
2018 में एलगार परिषद की जांच के मामले में जब नामी वकीलों और एक्टिविस्टों की गिरफ्तारी हो चुकी थी और केस कोर्ट में था, तब सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कई सबूत मीडिया के सामने रख दिए थे. बाद में इस पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने सख्त ऐतराज़ जताते हुए उन्हें खासी फटकार लगाई थी. करोड़ों के सिंचाई घोटाले के मामले में तत्कालीन उप मुख्यमंत्री अजीत पवार को क्लीन चिट देने के मामले ने तूल पकड़ा था. एंटी करप्शन ब्यूरो के प्रमुख जब सिंह थे, तब यह क्लीन चिट दी गई थी, जबकि इसके एकदम उलट एक साल पहले ब्यूरो ने पवार को भ्रष्टाचार का आरोपी माना था.
1962 में जन्मे परमबीर सिंह
चंडीगढ़ में 1962 को जन्मे परमबीर सिंह पंजाब यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में एमए टॉपर रहे हैं. इसके बाद वह पुलिस सेवा में आ गए. महाराष्ट्र आईपीएस क्रिकेट टीम के कप्तान रहे और इस तरह 32 साल का उनका पुलिस करियर कुछ उपलब्धियों और विवादों की पोटली बना रहा. पुलिस करियर में परमबीर ने कई अहम भूमिकाएं निभाईं. इनमें एंटी करप्शन ब्यूरो और नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई भी शामिल रही.
परमबीर सिंह की उपलब्धियां
परमबीर सिंह 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. पुलिस आयुक्त बनने से पहले वे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक पद पर तैनात रहे और इससे पहले एटीएस में डिप्टी आईजी के पद पर भी रहे. मुंबई, नवी मुंबई और ठाणे सहित महाराष्ट्र के कई जिलों की सुरक्षा सहित महाराष्ट्र पुलिस के कई बड़े पदों की जिम्मेदारी कुशलतापूर्वक संभाल चुके हैं. वह चंद्रपुर और भंडारा जिले के एसपी भी रह चुके हैं.
करियर में पुणे में नक्सली समर्थकों के नेटवर्क का खुलासा उनकी उपलब्धि रहा तो वहीं मुंबई से सटे ठाणे जिले के पुलिस कमिश्नर पद पर रहते हुए परमबीर सिंह और उनकी टीम ने जिले से चलने वाले फर्जी कॉल सेंटर रैकेट का खुलासा भी परमबीर सिंह के नेतृत्व में हुआ. नवी मुंबई में दंगाइयों से निपटने के लिए और स्थिति के सुधार के लिए खुद दंगा प्रभावित इलाके में उतर गए थे और दंगे पर काबू पाया था.
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