जिनके संघर्ष और प्राणों की आहूति से इस अंजाम तक पहुंचा राम मंदिर मामला
देश के सबसे पुराने विवाद का निपटारा हो चुका है, मंदिर का निर्माण राम जन्मभूमि पर ही कराया जाएगा. इसे अपने सपने के तौर पर सजाए हुए न जाने कितने लोगों ने अपने जीवन की कुर्बानी दे दी. आपको ऐसे कुछ दिग्गजों के संघर्ष से रूबरू करवाते हैं.
नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी अदालत के ऐतिहासिक फैसले की मुहर के साथ ही ये साफ हो गया कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनेगा. सैकड़ों साल पुराने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लगातार 40 दिन तक सुनवाई करने के बाद आज फैसला सुनाया. राम मंदिर को लेकर इतने बड़ा फैसला यूं ही नहीं आया. इसके पीछे लाखों लोगों का संघर्ष और न जाने कितनी लोगों ने अपनी जान की आहूति तक दे दी.
जिन्होंने दे दी अपनी जिंदगी की आहूति
वैसे तो न जाने कितने दिग्गजों ने राम मंदिर निर्माण के सपने को लेकर अपनी जिंदगियां कुर्बान कर दी, लेकिन इन कड़ियों में तीन नाम बेहद ही अहम हो जाता है. इनमें गोपाल सिंह विशारद, अशोक सिंघल और कोठारी बंधु को माना जाता है. इन तीनों के संघर्ष और कुर्बानी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. आपको सिलसिलेवार तरीके से राम मंदिर के इस अंजाम की पूरी दास्तां बताते हैं.
मौत के 33 साल बाद मिला पूजा करने का अधिकार
अयोध्या मामले में फैसला आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिवंगत गोपाल सिंह विशारद को विवादित भूमि पर पूजा करने का अधिकार दे दिया है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का इतना बड़ा और ऐतिहासिक फैसला उनकी मौत के 33 साल बाद आया है. विशारद की मौत साल 1986 में ही हो गई थी.
गोपाल सिंह विशारद का अहम योगदान
दरअसल सालों पुराने अयोध्या विवाद मामले में शुरुआती चार सिविल मुकदमों में से एक गोपाल सिंह विशारद ने दायर किया था. दावा किया जाता रहा है कि 22 और 23 दिसंबर 1949 की रात अभय रामदास और उनके कुछ साथियों ने दीवार कूदकर मस्जिद के अंदर भगवान राम, माता जानकी और लक्ष्मण की मूर्तियां रख दी थी, इसके अलावा ये प्रचार भी किया था कि भगवान राम ने वहां प्रकट हो गए हैं. जिसके बाद 16 जनवरी 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने अदालत में सरकार, मुसलमानों और जहूर अहमद के खिलाफ मुकदमा दायर किया था. उन्होंने अपनी अपील में या कहा था कि यहां हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दी जाए और मूर्तियों को यहां से नहीं हटाया जाए.
इसी कड़ी में एक और अहम नाम जुड़ा है, जिन्होंने अपने दिल में भव्य राम मंदिर निर्माण की हसरत पाल रखी थी. अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन के नायक रहे विश्व हिन्दू परिषद (VHP) संरक्षक अशोक सिंघल का संघर्ष भी अयोध्या को इस अंजाम तक पहुंचाने में खासा अहम किरदार अदा किया है. अशोक सिंह अपनी अंतिम सांस तक यही बोलते रहे कि मुझे कुछ नहीं होगा, अभी तो अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाना है.
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कौन थे अशोक सिंघल?
अशोक सिंघल साल 1926 में उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में जन्मे थे. सिंघल 20 सालों तक विश्व हिंदू परिषद के कार्यवाहक अध्यक्ष रहे. हालांकि स्वास्थ्य खराब होने के चलते उन्होंने इस पद से दिसंबर 2011 को इस्तीफा दे दिया था. उनकी जगह प्रवीण तोगड़िया को VHP का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. सिंघल को संगीत से खासा लगाव था. वो साल 1992 में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ गए थे. इसके बाद उन्होंने साल 1950 में बीएचयू से इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया.
साल 1984 में विहिप के धर्म संसद में एक प्रस्ताव पारित हुआ, जिसमें वो राम मंदिर आंदोलन के नायक बने. सिंघल वक्त-वक्त पर आंदोलन को नया रूप दिया. इस दौरान वो कभी पुलिसिया लाठीचार्ज के शिकार हुए तो कभी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन्होंने बतौर संघ प्रचारक अपने जीवन का काफी समय अयोध्या में बिताया.
कोठारी ब्रदर्स ने कुर्बान कर दी जान
साल 1990 में अक्टूबर के महीने में लाखों कारसेवक अयोध्या में जुटे थे. कर्फ्यू लगने के बावजूद लाखों कारसेवक तथाकथित बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ने लगे. इस भीड़ का नेतृत्व अशोक सिंघल, विनय कटियार और उमा भारती जैसे नेता कर रहे थे. इस दौरान तथाकथित मस्जिद के गुंबद पर शरद और रामकुमार कोठारी नाम के भाइयों ने भगवा झंडा फहरा दिया. सुरक्षा की बैरिकेडिंग को तोड़कर करीब 5 हजार से ज्यादा कारसेवक राम जन्मभूमि पर पहुंच गए.
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जिन्होंने तथाकथित मस्जिद पर फहराया झंडा
उस वक्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे, जिनके राज में पुलिस ने दो नवंबर को शरद कोठारी और उसके भाई रामकुमार को फायरिंग का शिकार बना दिया. 30 अक्टूबर को उस गुंबद पर चढ़ने वाला पहला इंसान शरद कोठारी था. जिसके बाद उसका भाई रामकुमार भी चढ़ा और दोनों ने वहां भगवा झंडा फहरा दिया था. उस वक्त सीआरपीएफ के जवानों ने दोनों को पीटकर खदेड़ दिया, लेकिन दोनों कोठारी भाई 2 नवंबर को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की ओर से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे. उस वक्त पुलिस ने गोली चलाई तो वो दोनों लाल कोठी वाली गली के एक घर में छिप गए थे. लेकिन थोड़ी देर बाद वो बाहर निकले तो फायरिंग के शिकार हो गए. दो दिन बाद 4 नवंबर को कोठारी भाइयों का अंतिम संस्कार किया गया.
सुप्रीम कोर्ट में हिंदू और मुस्लिम पक्षकारों के बीच सबसे ज्यादा बहस अयोध्या की विवादित जमीन के मालिकाना हक को लेकर हुई. और दोनों पक्षों ने अपने-अपने दावे पेश किए. और आखिरकार फैसला राम जन्मभूमि न्यास के पक्ष में आया. इस दौरान कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की तमाम दलीलों का भी जिक्र करते हुए एएसआई की रिपोर्ट्स और अन्य तथ्यों के आधार पर अपना फैसला सुनाया. इस फैसले के बाद ये जगजाहिर हो गया कि राम मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर होगा, जिसके लिए न जाने कितने लोगों ने अपने प्राण की आहूति दे दी.