Science News: वैज्ञानिकों ने Acetaldehyde Phenylhydrazone नामक क्रिस्टल से जुड़ी 120 साल पुरानी पहले सुलझाने का दावा किया है. इस अजीब क्रिस्टल के दो गलनांक (melting points) होते हैं.
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Science News in Hindi: आज से कोई 128 साल पहले, 1896 में जर्मन केमिस्ट एमिल फिशर ने एक बहुत ही अजीब बात देखी. एसीटैल्डिहाइड फेनिलहाइड्राजोन नामक क्रिस्टलीय यौगिक के समान बैचों में बहुत अलग-अलग गलनांक दिखाई दिए. कुछ बैच करीब 65 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर गले, बाकी 100 डिग्री पर. यह बेहद हैरान करने वाली बात थी. कोई दूसरा पदार्थ ऐसा व्यवहार नहीं करता, न ही उसे करना चाहिए. थर्मोडायनेमिक्स के नियम कहते हैं कि ऐसा असंभव है. फिर एसीटैल्डिहाइड फेनिलहाइड्राजोन के साथ ऐसा क्या होता है? दुनियाभर के वैज्ञानिक हैरान थे. उन्हें लगा फिशर से कोई चूक हो गई. जब उन्होंने खुद से एसीटैल्डिहाइड फेनिलहाइड्राजोन को ऐसा व्यवहार करते पाया तो होश उड़ गए.
120 साल बाद खुला राज
फिशर की हैरान करने वाली खोज के 120 साल से भी ज्यादा समय बाद, इंटरनेशनल रिसर्चर्स की एक टीम ने 2019 में इसके राज से पर्दा उठा दिया. यूके की साउथैम्पटन यूनिवर्सिटी में केमिस्ट टेरी थ्रेफॉल के नेतृत्व में चली स्टडी में पता चला कि एसीटैल्डिहाइड फेनिलहाइड्राजोन के दो गलनांकों की वजह एक बहुत छोटा संक्रमण है. यह इतना छोटा है कि इसका पता लगाना बेहद मुश्किल था.
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जब एसीटैल्डिहाइड फेनिलहाइड्राजोन पिघलता है, तो यह दो तरल पदार्थों में से एक बन जाता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि यौगिक किसी क्षार या अम्ल के संपर्क में आया है या नहीं. पहला उच्च गलनांक पर दिखाई देता है, और दूसरा निम्न गलनांक पर. थ्रेफॉल ने कहा, 'इतनी पुरानी पहेली को समझ पाना बड़ी संतुष्टि देता है, खासतौर से तब जब उससे नोबेल पुरस्कार जीतने वाले वैज्ञानिक का सिर चकरा गया हो.'
रिसर्चर्स ने पाया कि इस यौगिक में एक मिथाइल समूह होता है जो दो अलग-अलग विन्यास रखने में सक्षम होता है, जिन्हें Z आइसोमर और E आइसोमर के नाम से जाना जाता है. यह पानी पर नमक के असर के जैसा है: पानी के बर्तन में नमक डालने से हिमांक और क्वथनांक बढ़ जाता है.