क्यों भूल गए संजय गांधी को सोनिया, राहुल और कांग्रेस
आज है 14 दिसम्बर ओर आज है जन्मदिन संजय गाँधी का. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है गांधी परिवार का उस संजय गांधी को भूल जाना जो उनके अपने ही परिवार से थे ओर एक दौर में देश के एक मुखर ओर मेरु-रज्जु युक्त नेता हुआ करते थे..लेकिन उनको भुला देने के पीछे अपने कारण हैं आज के राजनीतिक गाँधी परिवार के.
नई दिल्ली. आज 14 दिसंबर को पूर्व दिग्गज कांग्रेसी नेता संजय गाँधी के जन्मदिवस पर एक बड़ा सवाल ये उठता है कि आज मेनका गाँधी ओर वरुण गांधी के अलावा उनकी याद किसी भी कांग्रेसी नेता को नहीं.
क्या कारण है कि संजय गाँधी जैसे शीर्ष भूतपूर्व शीर्ष नेता को कांग्रेस आज याद करने से भी बचना चाह रही है, आइये जानते इस कारण के पीछे छुपी हुई विवशताओं को:
वंशवादी कांग्रेस भी भूल गई संजय गांधी को
आज की कांग्रेस को देखते हुए इस बात पर कोई हैरानी नहीं कि संजय गांधी जैसे नेता को याद रखने का उनके पास कोई कारण हो. यही बात आज के गाँधी परिवार पर भी लागू होती है. पर कांग्रेस चूंकि देश की घोषित ओर व्यवहारिक वंशवादी राजनीतिक पार्टी है. ऐसी हालत में कांग्रेस का संजय गांधी को भूल जाना कई पुरानी बातों की याद दिलाता है, जिनमें छुपे हैं कारण उन्हें याद न करने के.
संजय गांधी की मौत के बाद से उनका नामलेवा भी इस देश में नहीं हैं सिवाए उनकी पत्नी मेनका गांधी ओर पुत्र वरुण गांधी के. संजय गाँधी की 'मृत्यु' के बाद से किसी भी राजीव गांधी से लेकर सोनिया ओर राहुल तक ओर उनके अलावा भी किसी भी कोंग्रेसी नेता ने किसी भाषण में उनका ज़िक्र नहीं किया जो ज़ाहिर करता है कि न तो उन्हें संजय की 'मृत्यु' पर शोक करने का उनके पास कोई कारण है न ही इसका कोई 'अधिकार'.
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कांग्रेस के मठाधीश सोनिया और राहुल भी भूल गए संजय गांधी को
आज की कांग्रेस को देखते हुए इस बात पर कोई हैरानी नहीं कि संजय गाँधी जैसे नेता को याद रखने का उनके पास कोई कारण हो. यही बात आज के गांधी परिवार पर भी लागू होती है. नैतिक तौर पर कांग्रेस के मठाधीश सोनिया ओर राहुल के पास संजय गांधी को भूल जाने का कोई कारण नहीं लेकिन राजनैतिक तौर पर भी संजय गांधी को विस्मृत कर देना एक बहुत बड़े सच पर से पर्दा उठाता है.
संजय गांधी को भूल जाने का मूल कारण क्या है?
संजय गांधी देश में एक ज़माने में कांग्रेस के सर्वोच्च नेताओं में एक थे. इन्ही दिनों एक दौर ऐसा भी आया जब पार्टी में ही नहीं बल्कि देश में वही इकलौते सबसे बड़े नेता के रूप में उभर कर सामने आये. उनकी मां उन्हें राजनीति में लेकर आईं थीं पर वे तब नहीं जानती थीं कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब संजय का कद उनसे भी ऊंचा हो जायेगा.
बताया जाता है कि सर्वोच्चता भी उनकी दुनिया छोड़ देने के पीछे के कारणों में एक थी ओर शायद सबसे बड़ा कारण भी वही थी.
क्या इंदिरा गांधी को खतरा था संजय से?
पूर्व कांग्रेसी प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी की राजनीतिक महात्वाकांक्षा को खतरा था उभरते युवा नेता संजय गाँधी से. ये सवाल देश में कई बार उठा. पर ये सवाल लाजवाब ही रहा क्योंकि इसका जवाब ढूंढने नहीं दिया गया.
इंदिरा गाँधी को हर उस कांग्रेस नेता से खतरा होना स्वाभाविक था जिसका कद पार्टी में उनसे बड़ा हो जाए. देश में कद बड़ा हो जाने पर पार्टी में भी कद बड़ा हो जाता है ओर ख़ास कर तब जब कोई नेता गांधी परिवार से ही ताल्लुक रखता हो. सब जानते हैं कि संजय गांधी विद्रोही हो गए थे.
इसका उन्होंने बाकायदा ऐलान नहीं किया था लेकिन जब पार्टी का सर्वोच्च फैसला वे लेने लग जाएँ तो उनकी सर्वोच्चता पर किसी को क्या संदेह हो सकता था.
थप्पड़ मारा था इंदिरा गाँधी को संजय ने
एक दौर ऐसा भी आया कि देश की एक समय की तानाशाह राजनेत्री इंदिरा गाँधी को भी उनसे भय लगने लगा था क्योंकि संजय ने उनको दरकिनार कर पार्टी की बागडोर आगे बढ़ कर खुद अपने हाँथ में ले ली थी. आज़ाद भारत के आपातकाल का काला अध्याय न केवल इंदिरा को याद करता है बल्कि समानांतर रूप से संजय गांधी को भी नहीं भूलता.
वाशिंगटन पोस्ट के उस समय के नई दिल्ली संवाददाता लुइस सिम्मन्स अपनी रिपोर्ट के माध्यम से इस बात की भी गवाही देते हैं कि एक बार क्रोधित हो कर संजय गांधी ने इंदिरा गाँधी को थप्पड़ भी रसीद कर दिया था. सिमंस के अनुसार आपातकाल लगने के कुछ समय पहले एक निजी पार्टी में संजय गांधी ने इंदिरा को एक नहीं छह थप्पड़ मारे थे.
संदेहों के घेरे में थी संजय गांधी की असामयिक मृत्य
संजय गांधी युवा नेता थे ओर युवा भारत की सोच वाले मुखर नेता की उनकी छवि थी. आपातकाल के उस दौर में जब वे इंदिरा गांधी से भी ऊपर निकल गए अचानक ही एक 'दुर्घटना' का शिकार हो कर कालकलवित हो गए. संजय की इस असामयिक मृत्यु अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई.
क्या संजय गांधी अगले प्रधानमंत्री बनने वाले थे? क्या संजय गाँधी बागी हो गए थे? क्या संजय गांधी इंदिरा गांधी की राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिए खतरा थे? इन्हीं सब सवालों के बीच जो सबसे बड़ा सवाल था वो ये था कि क्या संजय गांधी की मृत्यु वास्तव में दुर्घटना थी या एक साजिश? ये सवाल सामने तो आया पर इस पर चर्चा नहीं होने दी गई. चर्चा तो तब होती जब इस संदेह की जांच होती.
संजय की संदेहास्पद परिस्थितियों में होने वाली मृत्यु की जांच हो
संजय गांधी की मृत्यु संदेहास्पद परिस्थितियों में हुई इस बात को ही नहीं माना गया तो जांच भी क्यों होने दी जाती. जो भी हो आज मोदी के भारत में देश में कांग्रेस राज के दौरान हुई हर उस राजनीतिक मृत्यु की जांच होनी चाहिए जो संदेह के घेरों में हुई. और सबसे पहले तो संजय गाँधी की मृत्यु पर सिरे से पड़ताल होनी चाहिए ताकि भयंकर साजिशों में से एक का पर्दाफ़ाश देश के सामने हो सके. ऐसा इसलिए होना चाहिए ताकि मारे गए लोगों को इन्साफ मिल सके ओर इस देश में न्याय का स्तम्भ गर्व से खड़ा रह सके.