नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि अगर कोई हिंदू पुरुष, जो खुद से अर्जित की गई संपत्ति का मालिक है, यदि वह वसीयत में अपनी पत्नी को सीमित हिस्सेदारी देता है तो इसे संपत्ति पर पूर्ण अधिकार नहीं माना जाएगा, बशर्ते वह अपनी पत्नी की देखभाल और अन्य शर्तें पूरी करता हो. 


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न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश की पीठ ने 1968 की एक वसीयत के एक मामले में यह आदेश पारित किया. पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को दरकिनार करते हुए यह फैसला सुनाया. हरियाणा के एक व्यक्ति तुलसी राम ने 15 अप्रैल 1968 को उक्त वसीयत लिखी थी, जिसका 17 नवंबर 1969 को निधन हो गया था.


क्या है कानून
संपत्ति के उत्तराधिकार के मामले में उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और मुस्लिम पर्सनल लॉ में उत्तराधिकार के नियम लागू होते हैं. किसी भी व्यक्ति की संपत्ति दो प्रकार की होती है. पहली प्रकार की वह संपत्ति होती है जो उसमे स्वयं अर्जित की है और दूसरी प्रकार की वह संपत्ति है जो उसे पैतृक रूप से मिली है.


परिस्थितियों पर निर्भर
कोई भी ऐसी महिला जिसने किसी ऐसे व्यक्ति से शादी की है जिसने कुछ संपत्तियां अर्जित की है उस व्यक्ति की संपत्ति में उस महिला का अधिकार होता है या नहीं यह मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करता है. इन सवालों के जवाब हमें मामले की परिस्थिति, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत मिलते हैं. 


जिसकी संपत्ति उसका पूर्ण अधिकार
जैसा कि यह स्पष्ट है की जब कोई भी व्यक्ति किसी संपत्ति को स्वयं अर्जित करता है तब उस व्यक्ति का उस संपत्ति पर पूर्ण रूप से अधिकार होता है. वह संपत्ति के संबंध में कोई भी निर्णय ले सकता है चाहे उसकी संपत्ति अचल संपत्ति हो या चल हो. कोई सोना चांदी हो या फिर जमीन या मकान हो.

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