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नई दिल्ली.  जो न्यूज़ स्टोरी यहां आप संक्षेप में पढ़ने जा रहे हैं वह है इतिहास के सबसे भीषण नरसंहार की. इसे यहां केवल पढ़ें, कल्पना की आंखों से इसे देखें नहीं वरना आपकी रूह कांप जायेगी और इन्सानियत का इस तरह कत्लेआम आपको बेचैन कर देगा. आज से छब्बीस साल पहले हुआ था ये कत्लेआम इसी आसमान के नीचे..लेकिन वो जमीन थी अफ्रीका की.



 


रवांडा में हुआ था ये कत्लेआम 


इस ऐतिहासक कत्लेआम की पृष्ठभूमि बना था एक अफ्रीकी देश जिसे हम रवांडा के नाम से जानते हैं. और वो साल जिसे खुनी रंग से रंग दिया था इस नरसंहार ने, था  1994. इसकी शुरुआत हुई थी रवांडा के राष्ट्रपति जुवेनल हाबयारिमाना और बुरुंडी के राष्ट्रपति सिप्रेन की हत्या के साथ. उनके हवाई जहाज को उड़ा कर उनकी हत्या करने का संदेह रवांडा के हूतू चरमपंथियों और रवांडा पैट्रिएक फ्रंट (आरपीएफ) के सर पर है. 


राष्ट्रपतियों की हत्या ने दिया बहाना कत्लेआम का 


कहा तो ये जाता है कि यह को कबीलों के बीच चल रहा जातीय संघर्ष था. पर इसके साथ ही सच ये भी है कि चरमपंथियों द्वारा दोनों राष्ट्रपतियों की ह्त्या ने नरसंहार करने वालों को इसका बहाना दे दिया था. इस दुहरी हत्या के बाद तुत्सी और हुतू समुदाय के लोगों के बीच 07 अप्रेल 1994 से सौ दिन तक चलने वाला यह संघर्ष शुरू हुआ जो जल्द ही नरसंहार में बदल गया. हूतू समुदाय के लोगों ने तुत्सी समुदाय पर किया यह नरसंहार और तुत्सी समुदाय से संबंध रखने वाले अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों और यहां तक कि अपनी पत्नियों की भी हत्या करनी शुरू कर दी. 



 


महिलाओं को सेक्स स्लेव बनाया 


हुतु कबीले वालों ने तुत्सी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली अपनी पत्नियों को भी मार डाला और उसकी कैफियत ये दी कि यदि हम उनको नहीं मारेंगे तो वे हमको मार डालेंगी. इतना ही नहीं तुत्सी समुदाय के कबीले वाली महिलाओं को सेक्स स्लेव बनाकर रख लिया. इस भयानक कत्लेआम से बचने के लिए उस समय रवांडा के लाखों लोगों ने भागकर दूसरे देशों में शरण लेकर अपनी जान बचाई थी.  


 


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