नई दिल्ली. युद्ध तो 1962 में भारत की सेना ने बहादुरी से लड़ा था पर उसने युद्ध हारा राजनीतिक नेतृत्व विहीनता के कारण. बिना हथियारों और बिना साजो-सामान के भी जय हिन्द की सेना के कलेजे में इतना दम था कि टकरा गई थी धोखेबाज चीन की हथियारों से सुसज्जित सेना से. परिणाम युद्ध का कुछ भी हो देश की सेना ने दुश्मनो के सामने हार नहीं मानी न मन में न मैदान में.


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देश में न सही सेना में था कुशल नेतृत्व 


1962 के जिस चीन-भारत युद्ध की जीत की यादों को लेकर चीन आज भारत को आंख दिखाने की कोशिश में है, वह युद्ध भारत ने हारा था, भारत की सेना ने नहीं. इस युद्ध में राजनीतिक भारत की पराजय हुई थी, सैन्य-भारत की नहीं. हथियारों और साजो-सामान की कमी से जूझ रही जय हिन्द की सेना का मनोबल ध्वस्त नहीं कर पाई थी चीन की सेना क्योंकि भारतीय सेना की कमान एक कुशल नेतृत्व के हाथों में थी, भारत देश के अकुशल नेतृत्व के हाथ में नहीं.


सैम मानेकशा थे सैम बहादुर 


27 जून पुण्यतिथि थी 1962 और 1967 की चीनी जंगों के दौरान भारत के सैन्य-कमांडर की जिनको हम जानते हैं फील्ड मार्शल मानेकशॉ के नाम से. मानेकशा को सैम मानेकशा के नाम से भी पुकारा जाता था और उनके मजबूत इरादों की हिम्मत को सलाम करते हुए गोरखा सैनिक उनको सैम बहादुर के नाम से पुकारते थे. 


सैम मानेकशा ने बताया क्यों हारे 1962 


सैम मानेकशा 1962 के चीन युद्ध के दौरान सीमा पर भारतीय सेना के कोर कमांडर थे और इस पद पर रहते हुए उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया था. सेना की सेवा से निवृत्त होने के बाद उन्होनें एक बार एक इंटरव्यू बताया था कि चीन से हुए युद्ध में हार के मूल कारण क्या थे. सीधे सीधे उन्होंने सेना का राजनीतिकरण और काबिल सैन्य कमांडर्स की कमी को इस हार की वजह बताया था. इसी दौरान उन्होंने सैन्य कमांडर्स को ‘यस-बॉस’ मानसिकता से बचने और मातृभूमि की रक्षा को हमेशा निगाहों में रखने की नसीहत दी थी.


27 जून को थी बारहवीं पुण्यतिथि


कल 27 जून को भारत के सबसे बड़े मिलिट्री-कमांडरों में से एक फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की बारहवीं पुण्यतिथि थी. भारतीय सेना में गोरखा रेजीमेंट के अफसर थे फील्ड मार्शल मानेकशॉ जो आजादी से पहले भारतीय सेना में शामिल हुए थे. ब्रिटिश रॉयल इंडियन आर्मी के दौर में मानेकशा को  फ्रंटियर रेजीमेंट में शामिल किया गया था लेकिन भारत के दो हिस्से हो जाने के बाद ये रेजीमेंट पाकिस्तान में चली गई थी. तब मानेकशॉ गोरखा रेजीमेंट में आ गए.


गोरखा रेजिमेंट में देशभक्ति की प्रेरणा थे मानेकशा  


गोरखा रेजिमेंट के कमांडर मानेकशा गोरखा सैनिकों के विशेष प्रिय सैन्य अधिकारी थे. उनको सैम बहादुर कहने वाले गोरखा रेजीमेंट के भीतर मानेकशॉ जैसे उच्च श्रेणी के सैन्य कमांडर ने देशभक्ति के प्रेरणास्रोत के रूप में उनके बीच कार्य किया था. सभी पाठकों की जानकारी में ये तथ्य भी लाना आवश्यक है कि मौजूदा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस), जनरल बिपिन रावत भी गोरखा रेजीमेंट के अधिकारी हैं.


पंजाब की मिटटी के थे मानेकशा 


अमृतसर में जन्में मानेकशॉ पारसी भारतीय थे जिनका पूरा नाम सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ था. द्वितीय‌ विश्वयुद्ध के दौरान म्यांमार में युवा कैप्टन मानेकशॉ बुरी तरह घायल हो गए थे. इस युद्ध में उनकी बहादुरी के लिए उन्हें मिलिट्री-क्रॉस से नवाजा गया था. 1947-48 के दौरान भारत-पाकिस्तान युद्ध में उनको मिलिट्री-ऑपरेशन्स डायेरेक्टरेट में अहम भूमिका प्रदान की गई थे और वे युद्ध की प्लानिंग-टीम का भी हिस्सा थे. 


1971 का युद्ध जिताया मानेकशा ने 


1971 में पकिस्तान को घुटने पर लाने का श्रेय सैम मानेकशा को ही जाता है. ये उनका सफल सैन्य-नेतृत्व ही था कि जिसकी वजह से भारत ने ना केवल 1971 का युद्ध जीता बल्कि पकिस्तान के दो टुकड़े भी कर डाले और इस तरह बांग्लादेश के अस्तित्व को जन्म दिया. इस युद्ध के बाद भारत में मानेकशा का विशेष सम्मान किया गया और उनको फील्ड मार्शल (फाइव स्टार जनरल) की पदवी से नवाजा गया था. 


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