नई दिल्ली.   चीन की हरकतें साफ़ बता रही हैं कि न तो उस पर विश्वास किया जा सकता है न उसकी अगली चाल का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. ऐसे में चीन के छलिया और आक्रामक रुख को देखते हुए भारत के पास सर्वोत्तम विकल्प है कि वह हर क्षण युद्ध के लिए तैयार रहे. लेकिन एक सच ये भी है जो शायद चीन को भी पता है कि इस बार 1962 की पुनरावृत्ति नहीं होगी.


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चीन को भारी पड़ेगा युद्ध 


चीन को चुकानी पड़ सकती है भारी कीमत. अब ये नया भारत है, अट्ठावन साल पुराना भारत नहीं है. दूसरी अहम बात ये है कि भारत में छप्पन इंची नेतृत्व है, स्त्रैण और मूक नेतृत्व का दौर गया. अगर चीन की चाल का पूर्वानुमान सम्भव नहीं तो मोदी की चाल का पूर्वानुमान तो बिलकुल ही असम्भव है. यदि भारत को युद्ध के मैदान में चीन ने उतारा तो चीन कई दशकों तक अपने घाव सहलाता रहेगा, ये बात पक्की है.   



 


पाकिस्तान और नेपाल अस्तित्वहीन हैं 


भारत और चीन जैसी दो महाशक्तियों के मध्य पकिस्तान और नेपाल अस्तित्वहीन हैं. पहले तो ये उम्मीद की जानी चाहिए कि भुखमरी के मुहाने पर बैठा पाकिस्तान युद्ध की गलती करने की गलती नहीं करेगा. चीन को खुश करने के लिए और भी तरीके हैं जैसे चीन पाकिस्तान कॉरिडोर. इसलिए पहली बात तो ये है कि पाकिस्तान युद्ध में उतरेगा नहीं. यदि उसने ये गलती की तो उसे उस गलती की ऐतिहासिक कीमत चुकानी पड़ेगी. नेपाल किसी गिनती में नहीं है, इसलिए उसकी बात करनी ही बेकार है. चीन की तरफ से नेपाल युद्ध में उतरे या न उतरे, कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.



 


भारत के पास है वैश्विक समर्थन 


कोरोना के खलनायक चीन को पता है कि दुनिया में उसे जहरीला ड्रैगन मान लिया गया है और भारत आज की तारीख में दुनिया में चीन के शत्रु राष्ट्रों के नेता के रूप में सामने आया है और इस स्थिति को पैदा करने का श्रेय चीन को ही जाता है. मजबूत भारत और मजबूत हुआ है क्योंकि उसके साथ कई मजबूत राष्ट्र खड़े हुए हैं, मिसाल के लिए - अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैन्ड, जापान, वियतनाम, ताईवान और यहां तक कि रूस भी.  


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