नई दिल्ली: एक अध्ययन के दावों के मुताबिक गंजे पुरुषों के कोविड-19 के चलते अस्पताल पहुंचने की संभावना 40% अधिक है. ब्रिटेन के कुछ शोधकर्ताओं ने लगभग 2,000 ब्रिटिश पुरुषों के बालों के पैटर्न की स्टडी की. 


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गंजे लोगों में कोरोना का खतरा ज्यादा
स्टडी के दौरान सामान्य बाल वाले 15% पुरुषों की तुलना में 20% गंजे पुरुष कोविड-19 के लिए पॉज़िटिव टेस्ट किए गए. इस अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों अब इस थ्योरी पर काम कर रहे हैं कि क्या ऐसा हो सकता है कि पुरुष हार्मोन वायरस को कोशिकाओं में प्रवेश करने में मदद करते हैं? आखिर क्या वजह है कि गंजे पुरुषों के वायरस से इंफेक्ट होने का ख़तरा 40 फीसदी ज़्यादा है.
डरमैटोलॉजिस्टों ने ब्रिटिश अस्पतालों में करीब 2000 पुरुषों के साथ बाल ना होने के कोरोना कनेक्शन का अध्ययन किया और नतीजे में पाया कि जिन पुरुषों के बाल नहीं थे उनकी संख्या के पांचवे हिस्से जितनी तादाद में लोगों का कोविड-19 टेस्ट सकारात्मक आया जबकि सामान्य बाल वाले पुरुषों के साथ ऐसा नहीं था.
इस विचित्र लिंक वाली स्टडी ने सभी को चौंका दिया है. अब यहां ख़ास बात ये है कि कोविड -19 के अन्य जोखिम कारकों जैसे कि मधुमेह और उम्र से नतीजों की व्याख्या करना मुश्किल था.


मेल हॉरमोन का गड़बड़झाला?
स्टडी को लेकर थ्योरी ये है कि मेल (male) हार्मोन पुरुषों और महिलाओं दोनों में बालों के झड़ने से वायरस कोशिकाओं में प्रवेश करने में मदद करता है हालांकि इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है, ना ही अस्पताल में केस स्टडी के तौर पर इस्तेमाल किए गए मामलों को ही सामने रखा गया है.
इस अध्ययन के सामने आने बाद हड़कंप मचना स्वाभाविक है. लेकिन कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस स्टडी के निष्कर्ष बहुत पुख़्ता नहीं हैं और ये भी कहा कि ऐसे दूसरे कारकों की एक पूरी लंबी लिस्ट है जो ये इंगित कर सकते हैं कि गंजे पुरुष ही क्यों कोविड-19 की चपेट में ज़्यादा आ रहे हैं या उनकी मृत्यु हो रही है. उदाहरण के लिए, एथिनसिटी यानि जातीयता भी कोविड -19 के जोखिम से जुड़ी हुई है, लेकिन ये अध्ययन उस पर ध्यान नहीं देता है.


1605 कोरोना रोगियों पर हुआ टेस्ट 
वेस्ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भी बालों और कोविड -19 के बीच लिंक की जांच की और इसके परिणाम जर्नल ऑफ द अमेरिकन एकेडमी ऑफ डर्मेटोलॉजी में प्रकाशित किए गए थे.
उन्होंने 1,605 रोगियों का अध्ययन किया, जिन्होंने संक्रमण के लिए निगेटिव टेस्ट किया और 336 ऐसे रोगियों का भी जो सकारात्मक पाए गए और और अस्पताल में थे. ऐसी ही एक स्टडी स्पेन में भी की गई लेकिन इन सभी को लेकर एक्सपर्ट्स का मानना है कि बाकी फैक्टर्स को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. इनमें से मधुमेह जैसी बीमारियों और धूम्रपान करने जैसे फैक्टर्स से कोरोनावायरस का ख़तरा बढ़ जाता है और इन वजहों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. जो भी हो, फिलहाल ये अध्ययन पूरे नहीं माने जा सकते, लेकिन शुरुआती नतीजे भी इतने चौंकाने वाले हैं कि अभी इस पर आख़िरी राय कायम नहीं की जा सकती.