नई दिल्लीः साल था 2018. यह दिसंबर का एक सर्द दिन था, लेकिन इस ठंड भरे दिन जो हुआ उसने एक बार फिर देश के अमन-चैन को आग लगा दी थी. दोपहर होते-होते खबर फैली की बुलंदशहर के एक इलाके में गोहत्या हुई है.


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शाम होते-होते अफवाह की शक्ल में सूचना फैली कि जिले में एक मुसलमानों का एक धार्मिक आयोजन समाप्त हो रहा था. इसी के बाद गोहत्या हुई और फिर हिंसा की भड़की आग में एक पुलिस अफसर समेत दो लोगों की मौत हो गई. इस धार्मिक आयोजन का नाम सामने आया तबलीगी इज्तमा.


क्या है यह तबलीगी इज्तमा
इस दुखद घटना को फिलहाल भूलने की कोशिश करते हैं और जरूरी बात पर फोकस होते हैं. तो सवाल है कि क्या होता है तबलीगी इज्तमा? जवाब से पहले एक जरूरी बात कि कहीं-कहीं यह इज्तमा लिखा मिलेगा तो कहीं इज्तिमा और कहीं इज्तेमा. इसलिए कन्फ्यूज नहीं होना है.


यह बस बोलने-लिखने का तरीका है. तीनों शब्द अलग-अलग नहीं बल्कि एक ही हैं. ठीक वैसे ही जैसे अल्लाह एक है, लेकिन उसे मानने वाले भी इस छोटी सी बात को समझ नहीं पाते हैं. तो इज्तिमा-इज्तमा या इज्तेमा अरबी भाषा का एक शब्द है. जिसका मतलब है कई लोगों का एक जगह पर इकट्ठा होना है.तबलीगी का मतलब है अल्लाह के संदेशों का प्रचारक. 


अगला सवाल, ये कबसे शुरू हुआ
मजे की बात है कि यह बहुत ही नई-नई बात है. यानी कि 100 साल पुरानी भी नहीं. बस आजादी से यही कुछ 20-25 साल पहले की. हुआ यूं कि आजकल हरियाणा का जो मेवात इलाका है, वह काफी पहले से मुस्लिम इलाका है. इन्हें मेव मुसलमान कहते हैं.



यह तो मानी हुई बात है कि एक दौर में भारत में बहुत तेजी के साथ धर्मांतरण हुआ था. पहले लोग मुस्लिम बने. इसके बाद जब ब्रिटिश शासन आया तो मिशनरी ने ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू किया. 1920 के आस-पास मेवात में भी मिशनरी कार्यक्रम जोर पकड़ने लगा.



लोग इस्लाम छोड़ने लगे. नहीं भी छोड़ते तो धीरे-धीरे तौर-तरीके भूलने लगे. कई बार कई मामलों में उहापोह की स्थिति रहती. 


सात साल बाद आए तबलीगी
दिल्ली के निजामुद्दीन में एक नौजवान ने धर्म शिक्षा के साथ-साथ फारसी और अरबी की भी अच्छी तालीम हासिल कर ली थी. कुरान को रट लिया था और इसकी हर शिक्षा को समझता-बूझता था. लोग उससे धार्मिक मसले पर शक-शुबहा हल करने आते थे.



तब का यह काफी चर्चित नौजवान था. मेवात के साथ-साथ देश भर में जो हो रहा था उसकी खबर इसके कानों तक भी पहुंचती थी. तो इस्लाम को बचाने के लिए ख्याल आया की जगह-जगह ऐसी बैठकी होनी चाहिए ताकि लोग इस्लाम के तौर-तरीके न भूलें. इस तरह 1927 में तबलीगी  जमात की स्थापना हुई. इस शख्स का नाम था, मोहम्मद इलियास कांधलवी


कौन मोहम्मद कांधलवी?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक जिला है मुजफ्फरनगर. यहां एक गांव है कांधला. यहीं 1303 हिजरी यानी 1885/1886 में मोहम्मद इलियास की पैदाइश हुई. कांधला गांव में जन्म होने की वजह से ही आगे चलकर नाम में कांधलवी लगाना शुरू किया. उनके पिता मोहम्मद इस्माईल थे और मां सफिया थीं.



बचपन में ही बच्चे ने कुरान में दिलचस्पी ली और काफी हिस्से पढ़ डाले और याद कर लिए. इसके बाद दिल्ली के निजामुद्दीन में पूरी कुरान याद कर ली. यहीं अरबी और फारसी को भी पढ़ा. 1908 में मोहम्मद इलियास ने दारुल उलूम में दाखिला लिया. 


एक नया शब्द आया जमात
तो मोहम्मद इलियास ने उस वक्त की जो मौजूदा स्थिति थी वह देखकर तबलीगी जमात की स्थापना की. इस शब्द जमात का मतलब है समूह. तबलीगी  जमात का मतलब हुआ, अल्लाह के संदेश को बताने वालों का समूह. 


तबलीगी जमात से जुड़े लोग पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी का प्रचार-प्रसार करते हैं. इसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित है. एक दावे के मुताबिक इस जमात के दुनिया भर में 15 करोड़ सदस्य हैं.  20वीं सदी में तबलीगी जमात को बड़े इस्लामी आंदोलन के तौर पर माना गया था. हालांकि यह धर्म प्रचार से अधिक कुछ नहीं था. 


पहली शुरुआत के बाद क्या हुआ
1927 में स्थापना के बाद यह तय हो गया कि धर्म प्रचार के लिए मीटिंग करनी है. तो जहां मीटिंग किया जाना तय किया गया वह जगह कहलाई मरकज़. अरबी में मरकज़ का अर्थ सभा की तरह लगाया जाता है.  हरियाणा के नूंह (मेवात) से 1927 में शुरू हुए इस तबलीगी जमात की पहली मरकज 14 साल बाद हुई.



1941 में 25 हजार लोगों के साथ पहली मीटिंग आयोजित हुई और फिर यहीं से ये पूरी दुनिया में फैल गया. विश्व के अलग-अलग देशों में हर साल इसका वार्षिक कार्यक्रम आयोजित होता है, जिसे इज्तिमा कहते हैं.


इज्तिमा में क्या होता है
जानकारी के मुताबिक इज्तिमा के दौरान उन बातों पर चर्चा होती है जिनसे एक मुसलमान दीन के रास्ते पर बेहतर ढंग से चल सके. इस दौरान शादी के दौरान होने वाले ख़र्चों को लेकर चर्चाएं होती हैं, जैसे ख़र्चीली शादियों से समाज को किस तरह के नुक़सान होते हैं और इस्लाम इस बारे में क्या कहता है.



इसी दौरान बड़ी संख्या में निकाह भी संपन्न कराए जा सकते हैं, जो कि बिना दहेज के होते हैं. कुछ इस तरह की चर्चाएं होती हैं कि इस्लाम के मुताबिक़ किसी को अपना रोज़ाना का जीवन कैसे जीना चाहिए.


यह है जमात के काम करने का तरीका
तबलीगी जमात के मरकज से ही अलग-अलग हिस्सों के लिए तमाम जमातें निकलती है. इनमें कम से कम तीन दिन, पांच दिन, दस दिन, 40 दिन और चार महीने तक की जमातें निकाली जाती हैं. एक जमात में आठ से दस लोग शामिल होते हैं. इनमें दो लोग सेवा के लिए होते हैं जो कि खाना बनाते हैं.


जमात में शामिल लोग सुबह-शाम शहर में निकलते हैं और लोगों से नजदीकी मस्जिद में पहुंचने के लिए कहते हैं. सुबह 10 बजे ये हदीस पढ़ते हैं और नमाज पढ़ने और रोजा रखने पर इनका ज्यादा जोर होता है. इस तरह से ये अलग इलाकों में इस्लाम का प्रचार करते हैं और अपने धर्म के बारे में लोगों को बताते हैं.


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आज कोरोना की वजह बन गया तबलीगी जमात
दुनिया भर के साथ अपना देश भी कोरोना से जूझ रहा है. इसे लेकर बचाव के लिए 21 दिन का लॉकडाउन लागू है. लेकिन तेलंगाना से आई एक खबर से पैरों के तले जमीन खिसक गई. तेलंगाना में कोरोना वायरस के कारण सोमवार को छह लोगों की मौत हो गई.


यह सभी दिल्ली में आयोजित तबलीगी जमात में शामिल होने के बाद वापस घर लौटे थे. इसकी पड़ताल की गई तो देश भर के कोने-कोने से लोग इसमें शामिल हुए थे. कश्मीर में भी एक मौत हुई है और कर्नाटक के भी लोग संक्रमित पाए गए हैं. राज्य सरकारें ऐसे सभी लोगों की तलाश कर रही हैं. 


कुछ इस तरह क्वारंटीन में भेजे लोगों पर हर घंटे नजर रखेगी कर्नाटक सरकार