देहरादून: हिमालय जितना ख़ूबसूरत है, उतना ही रहस्यों से भरा भी है. हिमालय के अंदर ऐसे अनगिनत राज़ छिपे हुए हैं. जो बेहद ही ख़ौफ़नाक और रहस्मयी हैं. हिमालय की इन बर्फ़ीली चोटियों के बीच एक ऐसी रहस्यमयी झील है. जिसे देखकर हर कोई चौंक जाता है.


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क्योंकि उस झील से जुड़ा है एक अनोखा राज़. यहां की हक़ीक़त सालों से कोई नहीं जान पाया है. 


कंकालों से भरी झील 
समुद्र से हज़ारों फीट की ऊंचाई पर चारों ओर ग्लैशियर और पहाड़ों से घिरी है रूपकुंड झील. लेकिन अपनी ख़ूबसूरती से मन मोह लेने वाली कुदरत की गोद में यही झील भयानक राज़ समेटे हुए मौजूद है. सर्दियों में ये डरावना राज़ बर्फ़ की चादर ओढ़ लेता है पर गर्मियां आते ही बर्फ़ पिघलने के साथ-साथ ख़ूनी झील का ख़ौफ़नाक मंज़र रुह में सिहरन पैदा कर देने के लिए काफ़ी होता है.



यहां हर ओर दिखाई देते हैं सिर्फ़ और सिर्फ़ कंकाल ही कंकाल. इसी वजह से इस रहस्मयी झील को कंकाल झील और मौत की झील के नाम से भी जाना जाता है. कहते हैं, रात के अंधेरे में यहां जाने वाले कभी लौट कर नहीं आते. इसलिए यहां जाने और जान को ख़तरे में डालने का जोख़िम कोई नहीं उठाता और जो जाने का जोखिम उठाते हैं वो कंकाल बन जाते हैं.


विज्ञान भी नहीं सुलझा पाया पहेली
रूपकुंड यानी कंकाल झील से जुड़े वो सवाल हैं, जिनका जवाब पिछले अस्सी सालों से तलाशा जा रहा है. पर विज्ञान भी कंकाल झील की इस अबूझ पहेली को सुलझा नहीं पाया. आज तक किसी को मालूम नहीं चला कि उत्तराखंड के चमोली में मौजूद मौत की इस झील का पूरा सच क्या है. बर्फ़ पिघलते ही जो रुह कंपा देने वाला मंज़र यहां दिखाई देता है उसके पीछे का राज़ हमेशा से राज़ ही बना हुआ है. 


अंग्रेजों की नजर सबसे पहले पड़ी 
उस वक़्त दुनिया द्वितीय विश्वयुद्ध की आग में झुलस रही थी. जब पहली बार ब्रिटिश फॉरेस्ट गार्ड की निगाह कंकाल झील पर पड़ी. तब भी सवाल यही उठा कि आख़िर ये कंकाल किसके थे ? 200 लोगों की मौत एक साथ कैसे हुई ?



उस समय यही माना गया कि झील में मौजूद हड्डियां उन जापानी सैनिकों की हैं. जो द्वितीय विश्व युद्ध के समय भारत में घुसपैठ कर रहे थे. पर इसी जगह फंस गए. इसके बाद ब्रिटिश प्रशासन ने अपने लोगों को भेज कर इस बात की जांच करवाई, तो लाशें काफी पुरानी होने के कारण आशंका गलत साबित हुई. हालांकि जांच करने आया दल भी किसी अंतिम नतीजे तक नहीं पहुंच सका.


जनरल जोरावर से जुड़ता है झील के कंकालों का कनेक्शन ?
साल 1942 में कंकाल मिलने के बाद आज तक सैकड़ों नरकंकाल मिल चुके हैं. हर उम्र और लिंग के कंकाल पाए गए हैं. इसी के साथ कंकालों के सिर पर फ्रैक्चर भी मिले. ऐसे में जापानी सैनिकों के कंकाल से अलग माना ये भी गया कि ये कंकाल कश्मीर के जनरल जोरावर सिंह और उनकी फौज के हैं. 1841 का ये वो साल था जब जनरल जोरावर तिब्बत युद्ध के बाद वापस लौट रहे थे. माना जाता है कि इसी बीच जोरावर की टुकड़ी रास्ता भटक गई. इस पर और भी ज़्यादा बुरा तब हुआ जब मौसम भी ख़राब हो गया और क्रिकेट में इस्तेमाल होने वाली बॉल के आकार वाले ओले बरसने लगे. जिसकी वजह से उनकी मौत हो गई. वीरान इलाका होने के चलते ओलों से बचने के लिए उन्हें कहीं भी छिपने की जगह नहीं मिली.


कंकाल झील पर स्थानीय मान्यता
स्थानीय मान्यता के मुताबिक कन्नौज के राजा जसधवल अपनी गर्भवती पत्नी रानी बलाम्पा के साथ यहां तीर्थ यात्रा पर पर निकले थे. दरअसल, वह हिमालय पर मौजूद नंदा देवी मंदिर में माता के दर्शन के लिए जा रहे थे. वहां हर 12 साल पर नंदा देवी के दर्शन की बड़ी महत्ता थी. राजा बहुत जोर-शोर के साथ यात्रा पर निकले थे. लोगो का कहना था कि बहुत मना करने के बावजूद राजा ने दिखावा नही छोड़ा और वो पूरे जत्थे के साथ ढोल नगाड़े के साथ इस यात्रा पर निकले. राजा को समझाया गया कि देवी इससे नाराज हो जाएंगी.



हुआ भी कुछ ऐसा ही. उस दौरान बहुत ही भयानक और बड़े-बड़े ओले और बर्फीला तूफ़ान आया, जिसकी वजह से राजा और रानी समेत पूरा जत्था रूपकुंड झील में समा गया. हालांकि कंकाल झील से जुड़ी ये महज़ एक मान्यता है, इसे लेकर आज तक कोई प्रमाण नहीं मिल पाए हैं.


दुनियाभर के वैज्ञानिकों  ने की पड़ताल
कंकाल झील को लेकर अलग-अलग वक़्त में कई तरह के दावे किए गए. अब तक रहस्मयी झील में मौजूद कंकाल की जांच इसलिए नहीं हुई क्योंकि एक तो जिस जगह ये झील है वहां के रास्ते में और आस-पास लैंडस्लाइड बहुत होती हैं. दूसरा यहां जितने कंकाल थे, उनमें से कई कंकालों के हिस्से लोग उठा ले गए हैं. लेकिन अब वैज्ञानिकों ने मिलकर पड़ताल की और रिपोर्ट बनाई.



इस खोज में सामने आया कि ये कंकाल भारत, ग्रीस, और साउथ ईस्ट एशिया के लोगों के हैं. ये सब कंकाल एक समय के नहीं हैं. अलग-अलग टाइम पीरियड के हैं. इनमें महिलाओं और पुरुषों दोनों के कंकाल पाए गए.


अलग अलग लोगों के हैं कंकाल
पहले जहां ये माना गया था कि इन कंकालों में एक ग्रुप किसी एक परिवार का है. वही इस नई रिसर्च में साफ़ हो गया कि ये कंकाल जिनके हैं वो एक परिवार का हिस्सा नहीं रहे होंगे. क्योंकि इनके डीएनए के बीच कोई भी समानता नहीं है. अस्सी सालों में लगातार ये आशंका भी जताई जाती रही कि ये सभी लोग किसी महामारी के चलते सामूहिक आत्महत्या करने को मजबूर हुए होंगे. लेकिन कंकाल झील पर हुई इस नई खोज में कंकालों में कोई बैक्टीरिया या बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं के अवशेष नहीं मिले. इसका मतलब ये भी कहा जा सकता है कि इनकी मौत महामारी की वजह से नहीं हुई थी. 


300 सालों तक इकट्ठा होते रहे कंकाल
ये सभी कंकाल एक साथ एक समय पर वहां इकठ्ठा नहीं हुए. जो भारत और आस-पास के इलाकों वाले कंकाल हैं, वो सातवीं से दसवीं शताब्दी के बीच वहां पहुंचे थे. और जो ग्रीस और आस-पास के इलाके वाले कंकाल हैं, वो सत्रहवीं से बीसवीं शताब्दी के बीच वहां पहुंचे. जो कंकाल चीन के आस-पास का बताया गया, वो भी बाद के ही समय में वहां पहुंचा था. इससे ये पता चलता है कि वहां मिले कंकाल दो अलग अलग हादसों में मरने वाले लोगों के हैं.



वो हादसे क्या थे, जिनमें ये लोग मरे, उसे लेकर अभी भी एकमत होकर कुछ कहा नहीं जा सकता. कुछ कंकालों की हड्डियों में ऐसे फ्रैक्चर पाए गए जो गिरने-पड़ने, चोट खाने से लगते हैं. इससे अंदाज़ा ये भी लगाया गया कि शायद ये लोग किसी तूफ़ान में फंसे थे. भयंकर अंधड़ में. ओले भी गिरे होंगे इसमें. लेकिन वो भी एक थ्योरी ही है.
अभी तक रूपकुंड के कंकालों का रहस्य सुलझना बाकी है. 


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