COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

नई दिल्ली. कोरोना संकट ने एक और समस्या को जन्म दिया है और यह समस्या मानसिक बीमारी के रूप में सामने आई है. कोरोना के इस साइड इफेक्ट के शिकार हो रहे हैं दुनिया भर के युवा और इसका भी फिलहाल कोई उपचार ढूंढा नहीं जा सका है.



 


पच्चीस प्रतिशत युवा हुए हैं रोगी 


कोरोना संकट के बीच  चुनौती बनकर उभरी मानसिक बीमारी ने किशोरों और युवाओं पर हमला बोलै है. और इसके आंकड़े चौंका देते हैं जब पता चलता है कि दुनिया भर प्रत्येक चार युवाओं में से एक युवा मानसिक बीमारियों से ग्रस्त होता देखा जा रहा है. दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया के पच्चीस प्रतिशत युवा इन बीमारियों के शिकार हो रहे हैं. इस स्थिति का कारण समझना भी मुश्किल नहीं है क्योंकि कोरोना-काल में बेरोजगारी. भविष्य की अनिश्चितता और नौकरियों से निकाले जाने के कारण युवा मानसिक तनाव व दबाव की गिरफ्त में आते जा रहे हैं. 


वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की है रिपोर्ट 


वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के मंच पर सामने आई है यह रिपोर्ट. फोरम में हुए हालिया शोध से पता चला है कि अधिकतर मानसिक बीमारियां बचपन बीतें के बाद किशोरावास्था के आने पर शुरू होती हैं. उसके बाद पंद्रह वर्ष की आयु से लेकर 25 वर्ष की आयुक्त तक कुल 75 फीसदी मानसिक बीमारियां उभरती हैं. फोरम ने बताया कि किशोरों और युवाओं के भीतर पैदा हो रही इन मानसिक बीमारियों के कारण उनको खुद तो नुकसान उठाना ही पड़ रहा है बल्कि उनके परिवार और समाज को तथा पूरे राष्ट्र उसकी भरपाई करनी पड़ती है. 



 


हार्वर्ड की रिपोर्ट ने भी दिए यही संकेत 


वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की भांति हार्वर्ड विश्वविद्यालय से आई एक रिपोर्ट ने भी ऐसे ही तथ्य प्रस्तुत किये हैं. उनकी रिपोर्ट के अनुसार युवाओं में मानसिक बीमारियों के कारण आर्थिक वैश्विक आउटपुट को सर्वाधिक हानि पहुँच रही है. रिपोर्ट कहती है कि अगले दस सालों में मानसिक बीमारियों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को सोलह ट्रिलियन डॉलर का नुकसान आशंकित है.


ये भी पढें. सच हो रही है कोरोना पर भारत के छोटे ज्योतिषी की बड़ी भविष्यवाणी