राम मंदिर फैसला: जरा याद कर लें इस मुद्दे को जिंदा करने वाले हिंदुत्व के पुरोधा को भी
राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया है. इसके साथ ही 491 साल पुराने इस विवाद का अंत हो चुका है. लेकिन सारे हंगामे के बीच खबरों से दूर बैठा है वह हिंदुत्व का पुरोधा, जिसने इस मुद्दे को जन आंदोलन में बदल दिया था. यह उनकी ही देन है कि आज राम मंदिर निर्माण का मिशन अपने अंजाम तक पहुंच पाया है.
नई दिल्ली: राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है. पूरे देश में उत्साह की लहर है. इसी बीच वरिष्ठ भाजपा नेत्री उमा भारती दिल्ली पहुंची. वह भाजपा के संस्थापक और हिंदुत्व के पुरोधा लाल कृष्ण आडवाणी से मिलने आई थीं. उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए आडवाणी जी के किए हुए कार्यों की याद दिलाई.
जन्मदिन के अगले ही दिन मिली अच्छी खबर
लाल कृष्ण आडवाणी ने अभी शुक्रवार को ही अपना जन्मदिन मनाया था. उनसे मिलने पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भी पहुंचे थे. आडवाणी की जन्मदिन के अगले ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने वो ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसके लिए उन्होंने पूरी जिंदगी संघर्ष किया.
जिस राम मंदिर पर फैसले की चहुंओर चर्चा चल रही है, उसकी नींव रखने वाले कोई और नहीं राजनीति के भीष्म पितामह लाल कृष्ण आडवाणी हैं. हिंदुत्ववाद के जिस विचारधारा पर सवार हो कर भाजपा अजेय बढ़त बनाती चली जा रही है, उसके नायक रहे हैं लाल कृष्ण आडवाणी. 15वीं शताब्दी में जिस भूमि पर राम मंदिर का विध्वंस कर बाबरी मस्जिद बनाया गया था, उसके तकरीबन 500 साल बाद राम मंदिर निर्माण आंदोलन की जमीन तैयार करने वाले लालकृष्ण आडवाणी ही थे.
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आडवाणी ने खड़ा किया था राम मंदिर आंदोलन
1980 का वह समय जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में बनी भारतीय जनसंघ को भारतीय जनता पार्टी का नया रूप दिया गया. उसकी कमान लालकृष्ण आडवाणी के हाथों सौंपी गई. उस वक्त तक दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के स्टार चेहरे हुआ करते थे. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में 426 सीटें जीत कर आई कांग्रेस ने लगभग सभी दलों का सूपड़ा साफ कर दिया था. भाजपा भी मात्र दो सीटों पर सिमट गई थी. लेकिन 1989 के बाद का चुनाव भाजपा के लिए लगातार बढ़ता ग्राफ दिखा रहा था. इसकी नींव रखने वाले अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी ही थे.
राम मंदिर के लिए आडवाणी ने पूरे देश में की थी यात्रा
दरअसल, 1990 में भाजपा ने वो बड़ा दांव खेला जिसके बाद हिंदुत्ववाद की राजनीति को मुख्यधारा में लाने की जमीन तैयार हो चुकी थी, अब बस उसे लगातार मांजते रहने की जरूरत थी. 1990 में लालकृष्ण आडवाणी ने कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक रथयात्रा करनी शुरु की ताकि मंदिर निर्माण का रास्ता तय हो सके. हालांकि, इस रथयात्रा का मुख्य उद्देश्य हिंदुत्ववाद को देशव्यापी एक सूत्र में पिरोने का था. भाजपा के लौहपुरूष लालकृष्ण आडवाणी इसके मुख्य चेहरे थे. इस रथयात्रा से आडवाणी ने देश में हिंदुत्ववाद के लहर का प्रसार-प्रचार करना शुरू कर दिया था. लेकिन बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने न सिर्फ इस रथयात्रा को रोका बल्कि आडवाणी को गिरफ्तार भी करा दिया.
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आडवाणी की मेहनत से भाजपा को मिली राजनीतिक सफलता
तब तक आडवाणी के रथयात्रा का जादू चल चुका था. बाद के दिनों में जब 1996 में चुनाव हुए और भाजपा 161 सीटें जीत सबसे बड़ी पार्टी बन कर आई तो उसके असर को महसूस किया जाने लगा था. 1996 में लालकृष्ण आडवाणी के संघर्ष को बेहतर परिणाम मिले और देश में पहली बार भाजपा से प्रधानमंत्री बने अटल बिहारी वाजपेयी. हालांकि, बहुमत तब भी नहीं थी तो सरकार भी गिर गई. 1998 में फिर चुनाव हुए. भाजपा को फिर बहुमत नहीं मिल सका लेकिन आडवाणी के प्रयासों और वाजपेयीजी के व्यक्तित्व के बदौलत NDA सरकार फिर बनी जो 13 महीने तक ही रह सकी. 1999 में फिर चुनाव हुआ, भाजपा 180 सीटें जीत फिर सबसे बड़ी पार्टी बनी और इस दफा सहयोगी दलों के साथ सामंजस्य बिठाकर अपना कार्यकाल पूरा करने वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी. प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका पूरा श्रेय लालकृष्ण आडवाणी को दिया जो सहयोगी दलों को मैनेज किए रखते थे.
सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसले के पीछे है आडवाणी की मेहनत
92 साल का वयोवृद्ध हिंदुत्व का पुरोधा आज नेपथ्य में है. बढ़ती उम्र ने उन्हें विवश कर दिया है. लेकिन आज की जो पीढ़ी सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जश्न मना रही है, उसके पीछे आडवाणी जी की कड़ी मेहनत छिपी हुई है. उमा भारती इसीलिए आडवाणी को धन्यवाद देने उनके घर पहुंची थीं.