नई दिल्ली.   जय हिन्द, जय हिन्द की सेना. आज भारत की सुरक्षा हमेशा की तरह भारत की सेना के हाथों में है. आज दुश्मन चीन को भारत की बहादुर सेना ने सोचने पर मजबूर किया हुआ है. चीन की सेना की जिद और अकड़ को जो सबक एक छोटी सी झड़प से मिला है, संभवतः वियतनाम युद्ध में चीन की पराजय की वह एक छोटी झलकी है.  किन्तु आज एक बात बिलकुल साफ है हमें अपनी सेना को विशेष दर्जा देकर उसे अपनी विशेष पूंजी बनाना होगा जिस पर हम अभिमान करें और हमारी सेना इस अभिमान का अनुभव करे.


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बड़े स्तर पर कमांडो फोर्सेज़ तैयार की जायें 


कमान्डो फोर्सेज अब और अधिक संख्या में तैयार की जानी चाहिये. और सीमा पर नियुक्त किये जाने वाले सैनिकों की पहली लाइन पूरी सुरक्षा के साथ कमान्डोज़ की होनी चाहिये जो कि सामने से आने वाली शत्रु सेना के सैनिकों में दहशत पैदा कर सकें और सीमा पार से होने वाले आतंकवाद की आपूर्ति को सीमा पर ही यमलोक पहुंचा सके. वैसे भी 15 जून के धोखेबाजी वाले चीनी हमले को नजर में रख कर हमें कमांडोज़ की संख्या अधिकतम स्तर तक बढ़ानी होगी जिनका जमीनी युद्ध में खास तरीके से इस्तेमाल किया जाये और इसकी रणनीति भी विकसित की जाये.



 


 


सेना का लड़ाकू मूड बना रखा जाये


सेना कुश्ती लड़ने या धक्का-मुक्की करने वाले ऊंची इमारतों के गार्ड्स की भूमिका न निभाये. सेना का मनोबल ऊंचा रहे और उसका जंगी मूड बना रहे - ऐसे में न केवल असली या नकली अवसर पैदा किये जायें, अपितु इस तरह का ट्रीटमेन्ट भी सेना को दिया जाये कि वह एक गंभीर योद्धा की मनःस्थिति विकसित करे और उसमें ही जिये.. जय हिन्द की सेना कभी पत्थर न खाये और देश के भीतर या बाहर कहीं भी पत्थर चलने की हालत में पत्थर का जवाब हमारा जवान गोली से दे- इसका विशेषाधिकार सेना को दिया जाये. और इसकी जानकारी हर सीमावर्ती देश को भी दी जाये कि भारत की सीमा पर पैर रखा तो बोली नहीं गोली चलेगी. .सेना को हर पल यह महसूस कराया जाना चाहिये कि वह शक्ति है और इस शक्ति के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ नाकाबिले बरदाश्त होगी.


 



 


आम आदमी को सेना से जोड़ा जाये


भारत के लोगों में देशभक्ति का जबर्दस्त जज़्बा है. जब भी देश पर किसी तरह का खतरा देखा जाता है, भारत के देशभक्त नागरिक एक हो जाते हैं. इन नागरिकों को भी सेना में सेवा देने और अपने जीवन के उत्सर्ग का अवसर अधिकतम मिल सके - इसके लिये नई योजनाओं की आवश्यकता है. दूसरे शब्दों में, सेना में प्रवेश की नियमित परीक्षाओं के अतिरिक्त भी आम आदमी को सेना में जोड़ने के लिये नये द्वार खुलने चाहिये भले ही उसकी सेना में अवधि कम हो या उसे मिलने वाला पैसा कम हो. उसे स्वैच्छिक तौर पर ही एक निश्चित अवधि के लिए सेना से जोड़ लिया जाए - इस तरह की भी योजनाएं शुरू करनी होंगी. 


(इस आलेख के लेखक सशस्त्र अमेरीकी सेना के अंग रह चुके हैं और अमेरिकन नेवी एवियेशन के एयर रेस्क्यू डाइवर (ARD) पद से ऑनरेबल डिस्चार्ज (1995) प्राप्त एक्स-सर्विसमैन हैं.)

 


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