नई दिल्ली: क्या आप जानना नहीं चाहेंगे 30 हज़ार साल पुराने भारत के ऐसे रहस्य के बारे में. तो चलिए आपको बताते हैं रहस्यमयी नॉर्थ  सेंटिनल आईलैंड के बारे में. जहां हजारों साल पुराने कबीले के लोग मौजूद हैं. उनकी रहस्यमय परंपराएं आज भी बाकी दुनिया के लिए रहस्य हैं. 


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वहां जो गया वापस नहीं आया
कहा जाता है कि अंडमान निकोबार के नॉर्थ सेंटिनेल द्वीप पर आज तक जो भी गया है वो वापस नहीं आया. इक्का-दुक्का उदाहरणों को छोड़ दें तो वहां की कोई भी तस्वीर किसी के पास नहीं है. उस जगह पर सेना ये पुलिस का भी कोई अस्तित्व नहीं है.



माना जाता है कि वहां का अपना नियम है अपने कानून है. भारत का हिस्सा होने के बावजूद वहां कोई भारतीय कानून लागू नहीं होता. वहां के निवासी ना बाहर आते हैं और ना ही वहां किसी बाहरी को जाने की इजाजत है.


पाषाण काल से पुरानी सभ्यता आज भी जिंदा
वैज्ञानिकों की रिसर्च और कार्बन डेटिंग के मुताबिक इन द्वीपों पर सेंटिनली जनजाति के लोगों की उपस्थिति 2,000 साल से भी पुरानी है. वहीं जीनोम के अध्ययन के मुताबिक ,ऐसा हो सकता है कि ये जनजाति 30 हजार साल पहले भी अंडमान द्वीप पर रहती हो.


यहां रहने वाले लोग सेंटिनलीज़ भाषा बोलते हैं.सबसे हैरानी इस बात कि है कि यहां मौजूद लोग आज भी पाषाण काल के सामानों का इस्तेमाल करते हैं. ये हथियारों के अलावा किसी चीज़ में धातु का उपयोग आज भी नहीं करते.


अंडमान का रहस्यमयी द्वीप
 ये रहस्यमयी द्वीप बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान द्वीप समूह का छोटा सा हिस्सा है. चारों ओर से समुद्र से घिरा है. द्वीप पर चारों ओर केवल जंगल ही जंगल नज़र आता है.कहने को पूरा इलाका दक्षिण अंडमान प्रशासनिक जिले के अंतर्गत आता है.



यहां पर रहने वाले लोग निग्रिटो (अश्वेत तथा छोटे कद वाले) समुदाय के हैं. ये आदिवासी बाहरी लोगों को अपना दुश्मन मानते हैं. शोधकर्त्ताओं के मुताबिक, ये लोग शारीरिक बनावट और भाषा के आधार पर जारवा समुदाय से जुड़े हुए हैं. 


बिना किसी बाहरी मदद के हजारों साल से मौजूद
सेंटिनली उन जनजातियों में से है जो 2004 के सुनामी से बाहरी दुनिया की मदद के बिना सुरक्षित बचने में सफल रही. भारत सरकार ने इस पूरे द्वीप को संरक्षित इलाका घोषित कर रखा है और आदिवासियों के लिए इसको हमेशा के लिए रिजर्व कर रखा है.



इसीलिए इस इलाके में प्राधिकरण के अधिकारियों अलावा किसी की भी प्रवेश वर्जित है. ये अधिकारी भी द्वीप के बाहरी इलाकों तक ही घुसने की हिम्मत करते हैं.  


बाहरी लोगों की हुई हत्या
सेंटिनली लोगों का बाहरी लोगों को दुश्मन मानते हैं. लेकिन 1991 में उन्होंने भारतीय मानव विज्ञानविदों और प्रशासकों की एक टीम से कुछ नारियल स्वीकार किए थे. जिस दौरान उनकी कुछ तस्वीरें भी सामने आईं थीं. कुछ शोधकर्त्ताओं का मानना है कि सेंटिनली लोगों को औपनिवेशिक काल से ही अकेला छोड़ दिया गया था. 



क्योंकि अन्य जनजातियों जैसे कि ओंज, जारवा और ग्रेट अंडमानीज़ के विपरीत इस जनजाति ने जिस भूमि पर कब्ज़ा किया है, उसमें बाज़ार को भी दिलचस्पी नहीं है.यहां सेंटिनेलीज़ आदिवासियों की संख्या 40 से 400 तक मानी जाती है हालांकि सही आंकड़ा किसी के पास मौजूद नहीं है. एक अमेरिकन सैलानी की हत्या के बाद सेंटिनेल आदिवासी सुर्खियों में आए थे. 


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