मलप्पुरमः एक गांव ऐसा जहां टीना और मीना, शकील और अकील की पहचान आप नहीं कर सकेंगे. जिसे आप टीना समझेंगे वो मीना भी हो सकती है या क्या पता मीना समझ ली गई बच्ची दरअसल टीना हो. शकील-अकील के बीच भी ऐसा कुछ नहीं जिसके ज़रिये दोनों की पहचान की जा सके.


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हंसने, रोने और बोलने तक के अंदाज़ में,एक-एक हाव-भाव मिलते जुलते हैं. गलियों में, खेल के मैदानों और स्कूल की क्लास तक, उनके होने ने दुनिया भर को हैरत में डाल रखा है. दुनिया के बड़े-बड़े राज़ से चुटकियों में पर्दा उठा देने वाला विज्ञान भी जिसके रहस्य को सुलझा नहीं पा रहा है, जिसे कहा जाता है हिंदुस्तान का 'हमशक्ल गांव'


यहां है हिन्दुस्तान का हमशक्ल गांव ?
देश की राजधानी दिल्ली से 2,522 किलोमीटर दूर. केरल के मल्लपुरम जिले में बसा है कोडिन्ही गांव. जिसे हमशक्ल गांव के नाम से जाना जाता है. कोडिन्ही को हमशक्ल इसलिए कहा जाने लगा क्योंकि दो हज़ार की आबादी वाले इस गांव में 200 जोड़ी जुड़वा हैं.



यानी, कुल मिलाकर इस गांव में 400 इंसानों की शक्ल एक-दूसरे से मिलती-जुलती है. यहां आपको बच्चे तो बच्चे, बड़े और बुजुर्ग भी जुड़वा दिख जाएंगे. अपनी इसी अजब-गज़ब पहचान के दम पर कोडिन्ही गांव का नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है.


​हमशक्ल गांव के जुड़वा भाईयों का किस्सा
कोडिन्ही गांव में रहने वाले दो भाईयों में एक का नाम अभि है और दूसरे का अनु. दोनों के चलने का अंदाज़ एक सा,नैन-नक्श भी एक से हैं, इतने कि स्कूल में अक्सर अभि को अनु और अनु को अभि समझने की भूल कर दी जाती थी. इसलिए थोड़ा अलग दिखने के लिए इन्होंने अपने हेयर स्टाइल में फर्क़ कर लिया. अब बालों से ही पहचाना जाता है कि कौन अनु है और कौन अभि.


​हमशक्ल गांव में कब से जन्म ले रहे हैं जुड़वा ?
बताया जाता है कि अपनी ज़मीन पर कोडिन्ही वालों ने ये करिश्मा पहली दफ़ा साल 1949 में देखा, जब एक सी सूरत की दो ज़िंदगियों ने जन्म लिया. 2000 लोगों की आबादी वाले इस गांव में 10 फीसदी तो ट्वीन्स हैं. हर साल 15 बच्चों की जोड़ी हमशक्ल ही पैदा होती है.



ये सब जानने के बाद आपके दिमाग़ में भी वही सवाल आ रहा होगा जिसने कोडिन्ही गांव के बारे में पता लगने पर हमें भी बेचैन किया. यही कि आख़िर इस गांव में इतनी बड़ी तादाद में हमशक्ल बच्चे पैदा होने का राज़ क्या है ? क्या इसका जवाब विज्ञान के पास है ? ये कुदरत का कमाल है या फिर किसी चमत्कारी शक्ति का करिश्मा ? 



आख़िर, क्या है 400 जुड़वा बच्चों का राज़ ?
400 जुड़वां बच्चों के राज जानने के लिए इस गांव में आए दिन देश-विदेश से वैज्ञानिकों का तांता लगा रहता है. इस गांव की ज़मीन, पानी और हवा उनके लिए प्रयोगशाला है. कितने हार मानकर लौट जाते हैं, कितने इस हमशक्ल गांव की असलियत का पता लगाने के लिए यही के हो कर रह जाते हैं. विज्ञान अपनी जगह है. आस्था अपनी. विज्ञान तर्क से, तथ्य से काम करता है. जबकि, आस्था में विश्वास ही काफ़ी है.



कोडिन्ही वालों को भरोसा है उनके गांव पर ख़ुदा की नेमत है और इसी का असर है कि कोडिन्ही को हमशक्ल गांव कहा जाने लगा. अब इस गांव को किस तरह से देखा जाए.वैज्ञानिक नज़रिये से या फिर चमत्कार को नमस्कार करने वाली उस मानसिकता से जो किसी अद्श्य शक्ति पर बिना किसी सवाल-जवाब के यक़ीन कर लेने में देर नहीं लगाती. 


तर्क और वितर्क
कहते हैं कि गांव के खाने-पीने की वजह से यहां हमशक्ल बच्चे पैदा होते हैं, लेकिन इस तर्क को खारिज करने में भी देर नहीं लगती क्योंकि केरल के लगभग हर गांव में ऐसा ही खाना-पीना होता है जैसा कोडिन्ही में है. जब यह कहा कि गांव की हवा के चलते बच्चे हमशक्ल पैदा हो रहे हैं, लेकिन जो लड़कियां गांव से बाहर ब्याह दी गईं, उनकी औलादें भी जुड़वा ही पैदा होती रही हैं. 


​दुनिया में जुड़वा, कोडिन्ही में ख़ास क्या ?
जुड़वा बच्चों का पैदा होना कोई नई बात नहीं. लेकिन कोडिन्ही में जो हो रहा है उसके चलते इस हमशक्ल गांव में वैज्ञानिकों की दिलचस्पी इसलिए भी बनी हुई है क्योंकि दुनिया की जनसंख्या का कुल 1.2 फीसद हिस्सा ही जुड़वा है. जबकि 2000 की आबादी वाले इस गांव में 10 फीसदी जुड़वा हैं. भारत में एक हज़ार बच्चों में 4 बच्चे हमशक्ल पैदा होते हैं, जबकि केरल के इस गांव में एक हज़ार बच्चों पर ये दर 45 है. यही वजह है कि वैज्ञानिक आज भी इस गांव में आ कर रिसर्च के लिए यहां की मिट्टी, पानी और बच्चों के डीएनए तक साथ ले जाते हैं. ये जानने की कोशिशें लगातार जारी है कि आख़िर क्यों बन गया कोडिन्ही 'हमशक्ल गांव'.


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