नई दिल्ली: मिस्र यानि इजिप्ट (Egypt) की पहचान हैं, वहां के पिरामिड और उसमें दफन ममियां (Preserved dead bodies). इसके साथ भारी मात्रा में खजाना भी दफन होता है. अक्सर एक पिरामिड में चंद ममियां ही दफन मिलती हैं. लेकिन मिस्र के सक्कारा (sakkara) और गीजा (Giza) के पास ममियों की पूरी बस्ती मिली है. जिसे लेकर कई तरह की अफवाहों का बाजार गर्म है.
एक साथ मिली दर्जनों ममियां
मिस्र की राजधानी काहिरा के दक्षिण में दो शहर बसे हैं सक्कारा और गीजा. जो अपने पिरामिडों (Piramid) के लिए प्रसिद्ध हैं. वहां के फेमस पिरामिडों से 10 मील की दूरी पर ममीज की पूरी बस्ती मिली है. जिसे देखकर पुरातत्वविद भौचक्के रह गए हैं. लोगों को किसी तरह की महामारी फैलने का डर सता रहा है. उन्हें लगता है कि कोई पुराना श्राप सच हो सकता है. जिसकी वजह से बड़ी संख्या में जानें जा सकती हैं.
सक्कारा में पुरातत्वविदों को एक कुएंनुमा जगह की खुदाई में 13 ताबूत मिले. लेकिन जैसे जैसे खुदाई का काम आगे बढ़ता गया ताबूतों का शहर सामने आता गया. शुरुआत में 36 फीट खुदाई की गई जिसमें 13 ताबूत मिले. उसके बाद 32 फीट और खुदाई करने पर 21 ताबूत बरामद किए गए. लेकिन मामला यहीं नहीं थमा. इसके बाद करीब 39 फीट की खुदाई करने पर 25 और ताबूत पुरातत्वविदों ने खोज निकाले.
ममी के श्राप का डर
एक साथ इतनी बड़ी संख्या में ताबूतों की मौजूदगी हैरान करने वाली है. एक ही जगह पर इतनी सारी ममी आज से पहले कभी नहीं मिली थीं. इतनी बड़ी संख्या में ममीज़ ने लोगों के मन में डर भर दिया है. लोगों का कहना है कि यहां पर ममी बने हुए सभी लोगों की मौत किसी श्राप के चलते हुई थी. और अब उसी श्राप का डर मिस्र के 10 करोड़ लोगों को सता रहा है.
मिस्र के लोगों को लगने लगा है कि ये सभी ममीज एक ही समय की हैं और इन भी की मौत भी एक ही तरीके से हुई होगी. इन सभी को एक ही वक्त में दफनाया गया होगा. इस उम्मीद के साथ कि ये एक बार फिर दुनिया में वापस लौटेंगे.
इतनी सारी ममीज एक साथ क्यों हैं? इन सभी की मौत कैसे हुई? क्या ये सभी मौत एक ही वक्त में हुईं या फिर अलग अलग वक्त में ये ममीज बनाई गईं? इन सभी सवालों के जवाब न तो पुरातत्वविदों के पास हैं और न ही सरकार के पास.
बेहद विशिष्ट हैं इन ममियों के ताबूत
पुरातात्विदों को 59 ममी तो मिल गईं लेकिन अभी सैकड़ों ममी और मिलनी बाकी हैं. इन ममियों के ताबूतों को करीने से तराशा गया था और इनमें रंग भी भरे गए थे. हजारों साल बाद भी ताबूत में भरे गए रंगों का सही सलामत होना भी हैरान करता है.
इन 59 ताबूतों में 40 को खोलकर देखा गया है. लेकिन ताबूतों को खोलने से मिस्र के लोग बेहद डरे हुए हैं. इन ताबूतों में कपड़े में लिपटी ममी मिली हैं और माना जा रहा है कि ये सभी ताबूत प्राचीन पुजारियों के हैं. जिन्हें काहन कहते थे. मान्यता है कि इन पुजारियों यानी काहन का प्राचीन मिस्र की सभ्यता में अहम स्थान था और वो पूजा पाठ के अलावा राज्य का काम काज भी संभालते थे. बताया जा रहा है कि लोहे के हुक से सभी के दिमाग को बाहर निकाल लिया गया था.
एक ममी है सबसे अलग
यहां मिले ज्यादातर ताबूत पुजारियों के कहे जा रहे हैं. लेकिन एक ताबूत ऐसा भी है जो पुरातत्वविदों को भी हैरत में डाल रहा है. ये ताबूत न तो बाकी ताबूतों से मिलता जुलता है और न ही इस ताबूत में किसी पुजारी की ममी है. हैरत की बात ये है कि इस ताबूत में एक लड़की की ममी मिली है और इससे भी बड़ी हैरत की बात ये है कि इस ममी के साथ अजीबोगरीब जेवरात मिले हैं.
जहां बाकी ताबूतों के 2600 साल पुराना होने का अनुमान है. लेकिन लड़की का यह ताबूत साढ़े तीन हजार साल पुराना बताया जा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि जेवर देखकर लगता है कि लड़की अमीर घर से ताल्लुक रखती होगी. लेकिन हैरानी इस बात की है कि उसका ताबूत बेहद सामान्य सा बनाया गया है.
इस लड़की की ममी के गले में रंग बिरंगे मोतियों वाले चार बड़े हार मिले हैं जो अट्ठाइस इंच तक लम्बे हैं. उसने कांच की बनी अंगूठियां पहनी हुई थीं. कानों में झुमके पहने हुए थे जिन पर तांबे की परत चढ़ी हुई थी.
लड़की के ताबूत के पास ही दूसरे ताबूतों में बिल्लियों की ममी मिली हैं. मिट्टी के ताबूतों में चमड़े के सैंडल और चमड़े की दो गेंद मिली हैं. लड़की के कपड़े पूरी तरह सुरक्षित मिले हैं लेकिन हैरानी की बात ये है कि लड़की के शरीर को सही तरह से प्रिजर्व नहीं किया गया था. इन सभी 59 ममीज को संग्रहालय में रखने की योजना है.
ऐसे बनाई जाती थी ममी
मिस्र में मृतकों की लाशों को ममी बनाकर सुरक्षित रखने की परंपरा 5 हजार साल पुरानी है. तब से अब तक ये ममीज पूरी तरह सुरक्षित हैं. ये एक बड़ा राज है. आम तौर प अमीर लोगों और राजपरिवार से ताल्लुक रखने वाले लोगों की ममी पिरामिड बनाकर संजोई जाती थीं. पिरामिड में मृतक के साथ ही उसके पालतू जानवर और उसकी रोजमर्रा की जरूरत की चीजें भी रखी जाती थीं. ममी बनाई हुई ये सभी लाशें अब तक सुरक्षित हैं.
शोधकर्ताओं का कहना है कि मिस्र के गर्म तापमान में हवा में नमी न के बराबर होती है और बिना नमी के शरीर को गलाने वाले बैक्टीरिया भी पनप नहीं पाते. इसलिए ममीज़ पांच हजार साल से सुरक्षित हैं.
ममी बनाने के लिए लाश से सबसे पहले दिमाग को हुक के जरिए बाहर निकालते थे और फिर पेट को चीरकर सभी अंगों को बाहर निकाल लिया जाता था. ये काम पुजारी यानी काहन करते थे जिन्हें मानव शरीर और सर्जरी की थोड़ी बहुत जानकारी होती थी.
मृतक के शरीर के सभी अंगों को अलग अलग डिब्बों में बंद कर ममी के साथ ही रखा जाता था. इसके बाद शव की नमी सोखने के लिए खास तरह के नेट्रॉन नमक का लेप शरीर पर लगाया जाता था. दो से तीन बार नमक का लेप लगाने के बाद नमी पूरी तरह खत्म हो जाती थी और फिर शरीर को सॉफ्ट बनाने के लिए रेजिन और ऑयल यानि तेल का मिक्सचर लगाया जाता था.
मृतक शरीर पर कई बार कपड़ों को लपेटा जाता था और शव को ताबूत में बंद कर दिया जाता था. ये ताबूत एयरटाइट होते ते. यानी इसमे हवा भी प्रवेश नहीं कर पाती थी.
आखिर लाशों को ममी बनाने की जरुरत क्यों पड़ी
दरअसल मिस्र के लोग मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास करते थे. उन्हें लगता था कि सभी मरे हुए लोग किसी खास दिन जीवित होंगे. उस समय तक उनके शरीर को सुरक्षित रखा जाना चाहिए. जिससे उनकी आत्मा वापस अपने शरीर में प्रवेश कर सके और फिर से पहले की तरह जीवन व्यतीत कर सके.
इसीलिए लाशों को ममी बनाए जाने के साथ साथ उनके प्रतिदन की जरुरत के सभी सामान यानी बर्तन, जेवरात वगैरह को भी दफन किया जाता था. यही वजह है कि ममियों के साथ उनके पालतू पशु को भी ममी बनाकर दफन किए जाने की परंपरा थी.
माना जाता है कि मिस्र के हजारों सालों के इतिहास में करीब 7 करोड़ लोगों की ममी बनाई गई थी. ममी बनाने का ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सिखाया जाता था. हाल के दिनों में मिली 59 ममीज़ के बाद पूरे इलाके में खोज जारी है और कहा जा रहा है कि इस इलाके में अभी सैकड़ों ममीज़ मिलना बाकी है.
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