नई दिल्लीः एक डिवाइस के जरिए और वन टच वन क्लिक के साथ पूरी दुनिया को एक ग्लोबल विलेज में Facebook ने ऐसा बदला कि अब सोशल मीडिया का यह प्लेटफॉर्म लोगों की जरूरत जैसा बन चुका है. एक तरह से आदत बन चुका Facebook हमारे जश्न, गम और हर हंसी-खुशी में शामिल है.  बीच में कई ऐसे मौके भी आए जब किसी अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने Facebook को पीछे भी छोड़ने लगे, तब इस सोशल मीडिया ने कई नीतियों और रणनीतियों को अपनाकर उन विकल्पों को या तो खुद में समेट लिया या फिर उन्हें मिटा दिया. Facebook की यही नीति उस पर भारी पड़ रही है. 


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दरअसल, Facebook के लिए कहा जाता है कि वह 'या तो बिक जाइए या फिर मिट जाइए' कि नीति पर कार्य करता रहा है. अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को इसी नीति के कारण चुनौती मिली है. हुआ यूं है कि अमेरिका में प्रतिस्पर्धा पर निगरानी रखने वाली सरकारी एजेंसी ने फेसबुक के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. 


सामने आया है कि फेडरल ट्रेड कमीशन (एफटीसी) के अलावा 48 राज्यों ने भी फेसबुक के खिलाफ ऐसा दावा ठोंका है. इन सभी का आरोप है कि फेसबुक ने अपनी मार्केट पावर का दुरुपयोग किया. फेसबुक ने एकाधिकार कायम रखने के लिए इंस्टाग्राम और व्हाट्सऐप जैसी छोटी प्रतिस्पर्धी कंपनियों को खरीदा. फेसबुक के इन कदमों से आम लोगों के सामने विकल्प घटे. नियामकों का यह भी आरोप है कि ऐसे सौदों से लोगों की निजता खतरे में पड़ी.


18 महीने लंबी चली जांच
करीब 18 महीने लंबी दो अलग-अलग जांचों के बाद यह मुकदमे दायर किए गए हैं. FTC के मुताबिक फेसबुक ने प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के लिए "योजनाबद्ध रणनीति" बनाई. उसने छोटी और तेजी से उभरती प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को खरीदा. 2012 में इंस्टाग्राम और 2014 में व्हाट्सऐप की खरीद इसी रणनीति के तहत की गई.



न्यूयॉर्क की अटॉर्नी जनरल लेटिटिया जेम्स ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "यह बहुत ही ज्यादा जरूरी है कि हम कंपनियों के किसी शिकारी की तरह होने वाले अधिग्रहण को ब्लॉक करें और बाजार पर भरोसा बहाल करें."


फेसबुक का जवाब
हालांकि Facebook इन सारे मसलों को अलग ही लिहाज से देखता है. आज की तारीख में Facebook के 2.7 अरब Users हैं. इस कंपनी ने सरकार के दावों को "संशोधनवादी इतिहास" बताया है. Facebook का आरोप है कि बरसों पहले FTC ने ही Instagram और Whatsapp के अधिग्रहण की मंजूरी दी थी. अब उसी मंजूरी के तहत हुए सौदों पर विवाद छेड़ा जा रहा है और सफल कारोबार को सजा देने की कोशिश की जा रही है.



Facebook की जनरल काउंसल जेनफिर न्यूस्टेड ने कंपनी का पक्ष रखते हुए एक बयान जारी किया, "सरकार अब फिर इसे करना चाहती है, वह अमेरिकी कारोबार को ये डरावनी चेतावनी दे रही है कि कोई भी बिक्री कभी फाइनल नहीं है." एंटीट्रस्ट के आलोचक टिक टॉक और स्नैपचैट की तरफ इशारा करते हुए कह रहे हैं कि वे Facebook जैसे पुराने प्लेटफॉर्म्स को पीछे छोड़ सकते हैं. फिलहाल Facebook दुनिया की सबसे बड़ी सोशल मीडिया कंपनी है. कंपनी की मार्केट वैल्यू 800 अरब डॉलर है. फेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग दुनिया के पांचवें सबसे अमीर व्यक्ति हैं. 


ऐसे शुरू हुई तकरार
Facebook की इतनी लोकप्रियता के बाद भी उसका एक दुख था. वह यह कि इतना बड़ा User Friendly होने के बावजूद Facebook पैसा नहीं कमा पा रहा था. कंपनी को एक बड़े बिजनेस मॉडल की तलाश थी.



जल्द ही Facebook को यह मॉडल मिला भी और यह था, यूजर्स का निजी Data. Users क्या देखते हैं, कितनी देर देखते हैं, उनकी आदतें क्या हैं, वे क्या शेयर करते हैं, क्या पढ़ना पसंद करते हैं, ये सारी जानकारी कंपनी के लिए बेशकीमती Data बन गई.


जब लीक होने लगा Data
फिर आया साल 2013-14. इस वक्त तक यह डाटा थर्ड पार्टी को लीक होने लगा. इस डाटा के जरिए कैम्ब्रिज एनालिटिका समेत कई कंपनियों ने दुनिया भर में राजनीतिक पार्टियों की मदद की. Users को खास किस्म की News Feed देने के आरोप लगने शुरू हुए.



यह रहस्य बहुत लंबा नहीं छिपा, बल्कि महज 3 सालों में ही इसका राजफाश हो गया कि कैसे Facebook के जरिए तीसरी पार्टी तक Data पहुंचता रहा था. इस दौरान दो सबसे बड़ी राजनीतिक घटनाओं में भी Facebook का हाथ दिखा. ब्रेग्जिट और अमेरिकी चुनावों पर Facebook के लीक Data का असर रहा.


Fake News की लहर सी चल पड़ी. Facebook पर एक आरोप यह भी है कि वह मोटा लाभ कमाने के चक्कर में इन पर Fake News पर रोक नहीं लगा रहा है, बल्कि Data लीक पर भी मौन रहा है. 



अब Facebook के सामने मुश्किल
2020 के इस साल में जहां सभी के साथ कुछ न कुछ बुरा हुआ है. Facebook के पल्ले भी साल की यह पनौती आई है. Data की निजता का पक्ष रखने वालों की आंखें Facebook पर टेढ़ी हुईं. नतीजा यह हुआ कि अमेरिका कांग्रेस समिति के सामने जुलाई 2020 में Facebook समेत Google, Apple जैसी आंखों का तारा रहीं कंपनियां भी सवालों के कठघरे में आईं. Facebook पर एक साथ 46 राज्यों ने मुकदमा ठोक दिया है. यह ऐसा मुकदमा है जिसमें हार मिली तो कंपनी को व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम बेचने को मजबूर होना पड़ सकता है. 



हार का मतलब है कंपनी को तोड़कर छोटा करने के प्रस्ताव को मंजूरी और इस तरह Facebook को अपने कई एसेट बेचने होंगे. हालांकि अभी मामला कोर्ट में चलेगा. जानकारी के मुताबिक संघीय व्यापार आयोग के साथ ही अमेरिका के 50 में से 46 राज्यों ने फेसबुक पर एक साथ मुकदमा ठोका है.  


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